नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की आठवीं क्लास की समाजिक विज्ञान की नई किताब में ‘मराठों का उदय’ नामक अध्याय में बताया गया है कि शिवाजी ने मुगलों के दुश्मन कैंप पर आधी रात को जो हमला किया था, वह आज के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसा था.
इस किताब में मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी को एक “रणनीतिकार और दूरदर्शी नेता” के रूप में दिखाया गया है, जबकि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर को “निर्दयी और क्रूर आक्रमणकारी” बताया गया है, जिसने शहरों की आबादी का कत्लेआम किया.
मराठा शासकों को “स्वराज स्थापित करने वाले शासक” बताया गया है.
शिवाजी के बारे में किताब में लिखा है, “उनके जीवनकाल में ही उनकी बहादुरी के चर्चे पूरे भारत में और भारत के बाहर तक प्रसिद्ध हो गए थे.”
अध्याय ‘मराठों का उदय’ में यह भी लिखा है, “शिवाजी ने रात के समय बहुत कम सैनिकों के साथ दुश्मन के खेमे पर हमला किया था. यह साहसिक हमला आज के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसा है. किताब में ‘सर्जिकल स्ट्राइक शब्द को बैंगनी रंग’ में हाईलाइट किया गया है.”
एक और अध्याय ‘भारत का नया राजनीतिक नक्शा’ बताता है कि जब बाबर समरकंद (आज के उज्बेकिस्तान) से निकाला गया, तो वह भारत आया और ‘महिलाओं को गुलाम बनाया’ और ‘लूटे गए शहरों के लोगों की खोपड़ियों से मीनारें बनाईं’.
पहले, मुगल और दिल्ली सल्तनत को सातवीं क्लास की समाजिक विज्ञान की किताबों में पढ़ाया जाता था, लेकिन अब एनसीईआरटी ने उन्हें हटाकर नए अध्याय जोड़े हैं, जिनमें मगध साम्राज्य, मौर्य वंश, शुंग वंश और सातवाहन वंश को शामिल किया गया है.
अब आठवीं क्लास की सामाजिक विज्ञान की किताब में छात्रों को दिल्ली सल्तनत, मुगलों और मराठों के बारे में पढ़ाया जा रहा है. इस किताब का नाम है ‘समाज की खोज: भारत और इसके पार (Exploring Society: India and Beyond)’, जिसमें एनसीईआरटी ने एक हिस्सा जोड़ा है जिसका शीर्षक है – ‘इतिहास के कुछ काले दौर पर टिप्पणी’, साथ ही एक डिस्क्लेमर (स्पष्टीकरण) भी दिया गया है.
इस नोट में लिखा है: “क्रूर हिंसा, अत्याचारी शासन या सत्ता की गलत महत्वाकांक्षाओं की ऐतिहासिक जड़ को समझना ही बीते समय को ठीक करने और ऐसा भविष्य बनाने का सबसे अच्छा तरीका है, जिसमें इनकी कोई जगह न हो.”
डिस्क्लेमर में कहा गया है: “बीते समय की घटनाओं के लिए आज किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए.”
दिप्रिंट ने इस पर प्रतिक्रिया के लिए एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी से कॉल और मैसेज के ज़रिए संपर्क करने की कोशिश की. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
दिप्रिंट से बात करते हुए प्राचीन और मध्यकालीन भारत के इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि इतिहास केवल तथ्यों पर आधारित होता है, धर्म पर नहीं और सिर्फ पाठ्यक्रम से हिस्से हटाकर अतीत को बदला नहीं जा सकता.
हबीब ने कहा कि उस दौर में संविधान जैसा कुछ नहीं था, इसलिए हर शासक तलवार के दम पर राज करता था.
उन्होंने इन बदलावों को राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बताया और कहा, “राजपूत भी उतने ही क्रूर थे. इतिहास को धर्म के चश्मे से देखने की कोई ज़रूरत नहीं है.”
उन्होंने यह भी कहा, “अगर शासक रणनीतिकार या योद्धा अच्छे नहीं होते, तो उनके वंश टिक ही नहीं पाते.”
हबीब ने कहा, “इतिहास में इस तरह बदलाव करना एक गलत और मज़ाकिया तरीका है. इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करना उसे पौराणिक कथा (मिथक) में बदलने की कोशिश है.”
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शिवाजी धार्मिक स्थलों पर हमला करने से बचते थे
एनसीईआरटी की किताब में दावा किया गया है कि शिवाजी हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि किसी भी धार्मिक स्थल पर हमला न किया जाए. किताब में सूरत पर किए गए एक हमले का ज़िक्र है, जिसे मुगल साम्राज्य की ताकत और प्रतिष्ठा के लिए “एक बड़ा अपमान” बताया गया है. किताब इसे “जवाबी कार्रवाई” कहती है.
इसके विपरीत, सल्तनत काल को किताब में राजनीतिक अस्थिरता और मंदिरों व शिक्षा केंद्रों के विध्वंस का दौर बताया गया है. किताब के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी के युद्ध अभियानों के दौरान “श्रीरंगम, मदुरै, चिदंबरम और संभवतः रामेश्वरम जैसे हिंदू धार्मिक केंद्रों पर हमले किए गए थे.”
मुगल काल के बारे में बात करते हुए किताब में कहा गया है कि चित्तौड़ पर हमले के समय अकबर ने राजपूतों को डराने की कोशिश की और ऐलान किया कि “उसने पहले ही कई ‘काफिरों के किले और शहर’ जीत लिए हैं और वहां इस्लाम स्थापित कर दिया है.”
कभी इतिहास की किताबों में ‘अकबर महान’ कहे जाने वाले अकबर के बारे में अब किताब में लिखा गया है कि “अकबर का शासन क्रूरता और सहनशीलता के मेल से भरा था. हालांकि, अकबर धीरे-धीरे विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णु होते गए, फिर भी प्रशासन के ऊपरी स्तरों पर गैर-मुस्लिमों की संख्या बहुत कम थी.”
‘इतिहास में किसी को चुनकर महिमामंडित नहीं किया जा सकता’
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के सेवानिवृत्त इतिहास प्रोफेसर अरविंद सिन्हा ने दिप्रिंट से कहा कि इतिहास एक ऐसा विषय है जिसे निष्पक्षता के आधार पर पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर पूर्वाग्रह से इतिहास लिखा जाएगा तो तथ्यों की गलत तस्वीर पेश होगी और युवाओं के मन पर इसका बुरा असर पड़ेगा.
उन्होंने कहा, “आप इतिहास में किसी को चुनकर हीरो नहीं बना सकते या विलेन नहीं कह सकते. उदाहरण के तौर पर, शिवाजी को सिर्फ नायक के रूप में देखना सही नहीं होगा जब तक कि उनके समय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, जैसे औरंगज़ेब का संदर्भ, समझा न जाए. हर शासक अपने समय और परिस्थितियों के अनुसार फैसले लेता है, उसे समझा जाना चाहिए, न कि सिर्फ आंका जाए.”
उन्होंने पाकिस्तान की किताबों का भी उदाहरण दिया, जहां आदर्शवादी ढंग से इतिहास पेश करने से छात्रों की सोच संकीर्ण हो जाती है.
उन्होंने कहा, “अगर आप तथ्यों को छिपाते हैं या उन्हें किसी विशेष सोच के अनुसार तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं, तो आप इतिहास नहीं पढ़ा रहे, बल्कि प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं.”
सिन्हा ने यह भी कहा, “यह समस्या किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं है. इतिहास की किताबों में चाहे वामपंथी (मार्क्सवादी) प्रभाव हो या दक्षिणपंथी, किसी भी तरह की विचारधारा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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