नई दिल्ली: जब 19 वर्षीय कमलेश माली ने पिछले साल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-बॉम्बे के परिसर में प्रवेश किया, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. हिंदी पट्टी के एक गांव से ताजा-ताजा निकलकर वह चमकदार इमारतों और आत्मविश्वास से भरे शहर के उन लोगों के बीच वह डरा-डरा सा महसूस करते थे, जो जानते थे कि उन्हें सचमुच में क्या करना है.
मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री ले रहे माली ने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘मैं इस बड़े से परिसर में खो गया था. मुझे नहीं पता था कि मैं अपनी एडमिशन प्रोसेस को कैसे पूरा करूं, किस ऑफिस में जाऊं और कौन से डॉक्यूमेंट लेने और देने हैं. प्राप्त करूं, या किस कार्यालय में जाऊ.’
सौभाग्य से उसके लिए, अस्तव्यस्तता की यह भावना लंबे समय तक नहीं रही. मध्य प्रदेश के जूनापानी गांव में स्थित एक जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) के पूर्व छात्र के रूप में, माली के पास आगे की राह दिखाने और समर्थन के लिए एक मजबूत नेटवर्क था.
जहां तक आईआईटी के लिए होने वाली दुःसाध्य प्रवेश परीक्षा में सफल होने की बात आती है, तो जेएनवी – जो ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली छात्रों की बेहतरीन शिक्षा के लिए तैयार की गई केंद्रीय विद्यालयों की एक प्रणाली है – का एक प्रभावशाली रिकॉर्ड रहा है, लेकिन इन महानगरीय संस्कृति वाले विश्वविद्यालय के समावेश में सामंजस्य बिठा पाना उनमें से कई लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. इसी मोर्चे पर काम करते हुए सभी आईआईटी में फैला हुआ जेएनवी के पूर्व छात्रों का नेटवर्क नए नए आने वालों को कल्चरल शॉक से उबरने में मदद करता है.
उदाहरण के लिए, आईआईटी-बॉम्बे में, जेएनवी नेटवर्क से जुड़े वर्तमान में लगभग 250 छात्र हैं, जो व्हाट्सएप ग्रुप को अपने प्राथमिक संचार मंच के रूप में उपयोग करते हैं. जेएनवी के सभी फ्रेशर्स को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है.
बीटेक के चौथे वर्ष के छात्र आकाश कुंठे, जिन्होंने आईआईटी-बी में शामिल होने से पहले महाराष्ट्र के बुलढाणा के जेएनवी स्कूल में पढ़ाई की थी, ने कहा ‘हम आमतौर पर जेएनवी के अन्य छात्रों का एक ट्रीट के साथ स्वागत करते हैं और फिर एडमिशन में उनकी मदद करते हैं.’
कुंठे ने कहा, ‘चूंकि जेएनवी के ज्यादातर छात्र गांवों से आते हैं, अतः वे शहर के लोगों की तरह पॉलिश्ड (स्मार्ट) नहीं होते हैं. वे नहीं जानते हैं कि अन्य लोगों से बातचीत कैसे करें और आम तौर पर किस बारे में बात करनी है. हम उनके साथ अपने अनुभव साझा करते हैं और उन्हें आत्मसात होने में मदद करते हैं.’
आईआईटी-गांधीनगर में भी, एक जेएनवी नेटवर्क छात्रों को प्रवेश से लेकर प्लेसमेंट तक हर चीज में सहायता करने के लिए आगे आता है. मैकेनिकल इंजीनियरिंग के द्वितीय वर्ष के छात्र हर्षवर्धन परमार, जिन्होंने मध्य प्रदेश में जेवीयू शाजापुर से स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी, ने बताया कि सहपाठी होने की यह भावना अन्य मुद्दों तक भी फैली हुई है.
परमार कहते हैं, ‘हमारे एक सीनियर का भाई पिछले साल बहुत बीमार पड़ गया था, लेकिन उसका परिवार इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकता था. जेएनवी छात्रों के पूरे समूह उनके समर्थन में उतर आया और हम कैंपस में और इससे बाहर के अपने दोस्तों की मदद से लगभग 7 लाख रुपये का फंड जुटाने में सफल रहे.’
रुड़की, कानपुर और खड़गपुर स्थित आईआईटी में पढ़ने वाले जेएनवी के पूर्व छात्रों ने भी दिप्रिंट को इसी तरह की कहानियां सुनाईं कि कैसे उनके समर्थन नेटवर्क ने एक सामाजिक, भावनात्मक और व्यावहारिक सहायता प्रदान की. छात्रों ने कहा कि इनमें से प्रत्येक परिसर में लगभग 300 जेएनवी छात्र रहते हैं.
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‘कोटा के बराबर, बल्कि उससे कहीं बेहतर ‘
पिछले कुछ वर्षों में, जवाहर नवोदय विद्यालयों ने इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों के लिए होने वाली गलाकाट प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं को पास करने वाले छात्रों की अनुपात से काफी अधिक संख्या के साथ जुड़ी अकादमिक उपलब्धि के लिए प्रतिष्ठा हासिल की है.
साल 1989 में स्थापित और शिक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले एक स्वायत्त निकाय द्वारा संचालित जेएनवी नटवर्क में अब तक पूरे भारत में 661 आवासीय विद्यालय शामिल हैं, जो सभी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई ) से संबद्ध हैं. जेएनवी कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा प्रदान करते हैं और उन छात्रों को प्रवेश देते हैं जो कक्षा 5 में होने पर आयोजित चयन परीक्षा को पास करते हैं.
जब ये छात्र 10वीं कक्षा में होते हैं, तो उन्हें एक दूसरी चयन परीक्षा देनी होती है. यदि वे इसे पास कर लेते हैं, तो उन्हें आईआईटी संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई ) और मेडिकल कॉलेजों के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट-नीट ) के लिए विशेष रूप से चलाये जाने वाले कोचिंग कार्यक्रमों में नामांकित किया जाता है.
ये कोचिंग कार्यक्रम दक्षणा फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाए जाते हैं, जिसने साल 2006 में छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से जेवीयू की प्रशासनिक संस्था (गवर्निंग बॉडी) – नवोदय विद्यालय समिति – के साथ एक विशेष अनुबंध किया था.
दक्षणा सभी जेएनवी में एक परीक्षा आयोजित करती है और छात्र की योग्यता और वित्तीय स्थिति के आधार पर, पात्र पाए गए उम्मीदवारों को इस एनजीओ के छह परिसरों में से एक में दो साल के आवासीय कार्यक्रम के लिए चुना जाता है.
दक्षणा फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, कमांडर अरुण कुमार मिश्रा, जो खुद आईआईटी के पूर्व छात्र हैं, कहते हैं, ‘हम कोचिंग के कोटा मॉडल के बराबर हैं, बल्कि उससे कहीं बेहतर. हमारी सफलता दर 70 प्रतिशत है और हमारा लक्ष्य इसे और ऊपर ले जाना है. हम अपने छात्रों को 24 घंटे मानसिक और शैक्षणिक सहायता प्रदान करते हैं.’
इस एनजीओ का दावा है कि उसने साल 2007 के बाद से 6,400 छात्रों को प्रशिक्षित किया है और वर्तमान में इसके छह परिसरों में 1,400 छात्र पढ़ रहे हैं.
अब तक, इसके 3,015 छात्रों ने आईआईटी में सीटें हासिल की हैं और 1,080 ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश प्राप्त किया है.
दो साल के कार्यक्रम के अलावा, दक्षणा एक और साल भर चलने वाला काफी कठिन लेकिन एक्सीलेरेटेड मॉड्यूल चलाता है, जिसमें जवाहर नवोदय विद्यालयों के कक्षा 12 के उन छात्रों को कोचिंग दी जाती है जो इस तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए एक साल ड्रॉप करना चाहते हैं.
मिश्रा ने कहा, ‘हमारे पास काम करने की लगभग सेना जैसी सख्त शैली है, जिसके तहत सभी छात्रों को अकादमिक उत्कृष्टता हासिल करने के लिए प्रेरित किया जाता है. चूंकि ये छात्र समाज के निचले आर्थिक तबके से आते हैं, इसलिए वे अतिरिक्त परिश्रम करने और सफलता प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास करने को तैयार रहते हैं.’
हालांकि, भले ही वे अकादमिक रूप से तैयार हों, इन छात्रों को अक्सर आईआईटी में अन्य सामाजिक और भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना ही पड़ता है.
आईआईटी में व्याप्त सामाजिक विभाजन
परंपरागत रूप से, आईआईटी मध्यम वर्ग, उच्च जाति से आने वाले पुरुष छात्रों का इलाका रहा है. हालांकि महिलाओं और समाज के दबे-कुचले वर्गों के लिए आरक्षण जैसी सकारात्मक कार्रवाई वाली नीतियों ने इस विषमता को दूर करने का प्रयास किया है, मगर परिसर के भीतर का जीवन अभी भी कुछ समूहों के लिए दूसरों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
आईआईटी के छात्रों ने जिन कुछ सबसे आम समस्याओं की शिकायत की है उनमें जाति-आधारित भेदभाव, अभिजात वर्ग के दबदबे और शैक्षणिक प्रदर्शन का दबाव शामिल हैं.
पिछले साल शिक्षा मंत्रालय ने राज्यसभा में उठाये गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि शीर्ष सात आईआईटी से ड्रापआउट (बीच में पढाई छोड़ना) करने वालों में से 63 फीसदी आरक्षित वर्ग के थे.
इस मामले में आईआईटी-गुवाहाटी का सबसे खराब रिकॉर्ड था, जहां 88 प्रतिशत ड्रॉपआउट आरक्षित श्रेणियों से थे. आईआईटी-खड़गपुर में ड्रॉपआउट की संख्या सबसे अधिक थी और यहां के 79 छात्रों ने पांच साल की अवधि में संस्थान छोड़ दिया था. इनमें से 60 फीसदी से अधिक छात्र आरक्षित वर्ग के थे.
साल 2015 में, आईआईटी-बॉम्बे में एक सर्वेक्षण किया गया था ताकि यह जांचा जा सके कि क्या कुछ छात्र अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोलने में सक्षम नहीं होने के कारण हीन भावना का एहसास करते हैं. यह कदम एक ऐसे छात्र की आत्महत्या के बाद उठाया गया था, जो अंग्रेजी में बोलने और अकादमिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करने में असमर्थ रहने की जूझ रहा था.
साल 2013 की एक अन्य रिपोर्ट में पाया गया कि आईआईटी में छात्रों के बीच आर्थिक विभाजन काफी अधिक है और यह साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को जेईई में सफलता पाने में सक्षम बनाने के लिए संस्थानों द्वारा विशेष कदम उठाये जाने के बाद ही यह चलन शुरू हुआ.
दलित और आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लंबे समय से तर्क दिया है कि इन समुदायों के छात्रों द्वारा भेदभाव का सामना किया जाना अनुपात से बहुत अधिक रहा है.
हालांकि, आईआईटी के माहौल में दूसरे तबके के छात्रों के लिए भी नेविगेट करना कठिन हो सकता है. इससे पहले, एक आईआईटी के एक कैंपस काउंसलर ने उनका नाम न छापने की शर्त के तहत दिप्रिंट को बताया था कि आमतौर पर आईआईटी में आने वाले छात्र वे होते हैं जो अपने स्कूल की कक्षाओं में लगातार शीर्ष पर रहते हैं, मगर आईआईटी में आने के बाद वे कई अन्य समान रूप से प्रतिभाशाली छात्रों के बीच खोया-खोया सा महसूस कर सकते हैं.
काउंसलर ने आगे बताया, ‘बहुत सारे छात्र इस वजह से भी अवसाद डूब जाते हैं क्योंकि वे अब उस तरह से अकादमिक प्रतिभा का चेहरा नहीं रह जाते हैं, जिसके वे अभ्यस्त थे. वे अपने जैसे कई अन्य छात्रों के साथ एक ही कक्षा में बैठते हैं, जिससे उनके लिए प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाता है. घर से दूर रह रहे इन छात्रों को एक सपोर्ट सिस्टम (मदद करने वाली प्रणाली) की जरूरत होती है.’
यह चुनौती उन छात्रों के लिए बहुत कठिन है जो खुद को सामाजिक रूप से बेमेल महसूस कर सकते हैं. लेकिन जब वे एक साथ बंध जाते हैं, तो समुदाय की भावना न केवल सहजता बल्कि गर्व का स्रोत भी बन जाती है.
जैसा कि आईआईटी-गांधीनगर के परमार ने कहा: ‘जेएनवी का छात्र होना आईआईटी परिसरों में एक विशेष लाभ के रूप में देखा जाता है.’
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(अनुवाद: रामलाल खन्ना)
(संपादन: अलमिना खातून)
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