नई दिल्ली: पूर्वी यूपी के जौनपुर जिले स्थित पकरी गोडम गांव में पली-बढ़ी अंशिका पटेल के लिए कभी दुनिया का नक्शा एक अबूझ पहेली की तरह होता था. ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देश उसकी अपनी छोटी-सी दुनिया से इतने दूर थे कि वहां तक पहुंचने की सोच पाना भी आसान काम नहीं था.
लेकिन, आज 18 वर्षीय अंशिका पटेल के हाथ में विमान का टिकट और पूरी छात्रवृत्ति है और वह एक बड़ा लक्ष्य हासिल करने के लिए तैयार है. उसने दिप्रिंट को फोन पर बताया, ‘मैं अमेरिका में रहने और पढ़ने जा रही हूं…यह मेरे लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं है.’
वह इस गुरुवार को एक प्रतिष्ठित लिबरल आर्ट्स कॉलेज वाशिंगटन एंड ली यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स में स्नातक कोर्स के लिए वर्जीनिया के लेक्सिंगटन रवाना हो रही है.
अंशिका की मां एक दर्जी हैं और पिता एक मेडिकल स्टोर में काम करते हैं लेकिन अपने बच्चों के लिए इस परिवार के सपने हमेशा बड़े रहे हैं.
उसने बताया, ‘मेरे परिवार ने आर्थिक स्थिति के मामले में तमाम उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन मेरे माता-पिता ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि मेरे भाई-बहन और मुझे सबसे अच्छी शिक्षा मिले.’
अंशिका पटेल ने पकरी गोडम के एक सरकारी स्कूल में कक्षा 5 तक पढ़ाई की है लेकिन उसके लिए टर्निंग पॉइंट तब आया जब उसने यूपी की विद्याज्ञान रूरल लीडरशिप एकेडमी के लिए प्रवेश परीक्षा पास की. यह एक पूरी तरह से वित्त पोषित आवासीय स्कूल है, जिसका उद्देश्य वंचित छात्रों की प्रतिभा को निखारना है.
शिव नादर फाउंडेशन की तरफ से 2009 में स्थापित इस संस्थान के बुलंदशहर (जहां अंशिका ने पढ़ाई की) और सीतापुर स्थित दो कैंपस में आज 1,000 से अधिक स्टूडेंट रहते हैं.
पटेल ने बताया कि इसमें एडमिशन लेना बस नियति की बात है. उसने बताया, ‘कक्षा 5 के बाद मैं नवोदय विद्यालय में प्रवेश की तैयारी कर रही थी और साथ ही विद्याज्ञान के लिए भी प्रवेश परीक्षा दे दी. सौभाग्य से, मैंने दोनों परीक्षाओं को पास कर लिया और विद्याज्ञान ज्वाइन करने का फैसला किया. तब से मेरे लिए स्थितियां पूरी तरह बदल गईं.’
अमेरिका के कॉलेज के लिए उसका रास्ता खुलना भी अप्रत्याशित ही था— किसी विशिष्ट आवेदन के आधार पर नहीं, बल्कि उसे अकादमी में बनाए अपने ‘प्रोफाइल’ के कारण चुना गया है.
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‘मुझे तो लगा पत्र फर्जी है’
अपने उत्साहित भाई-बहनों से घिरी अंशिका अब अपनी उपलब्धि से बेहद खुश है लेकिन जब उसे पहली बार कॉलेज की तरफ से यह जानकारी दी गई तो उसे भरोसा ही नहीं हो रहा था.
उसने बताया, ‘मुझे विश्वास नहीं हुआ जब मुझे बताया गया कि मुझे चुना गया है. मैंने टीचर से मेल की जांच करने और यह सुनिश्चित करने को कहा कि यह नकली तो नहीं है.’
चूंकि पटेल ने सैट की परीक्षा नहीं दी थी, जो किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी में स्नातक प्रवेश के लिए एक मानक परीक्षा है, इसलिए वह किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी के पत्र की कोई उम्मीद नहीं कर रही थी.
पटेल ने बताया, ‘पिछले कुछ वर्षों में मैंने जो प्रोफाइल विकसित की है, उसके आधार पर मेरा चयन किया गया है. विद्याज्ञान में नामांकन के बाद से मैं सामाजिक कार्य से संबंधित प्रोजेक्ट में काफी सक्रियता से शामिल रही हूं.’
उसने आगे बताया, ‘मुझे 2019 में अमेरिकी विदेश विभाग के स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए चुना गया था और जब मैं दसवीं कक्षा में थी तब वाशिंगटन गई थी. मैंने पिछले दो वर्षों में उन लोगों के लिए चंदा अभियान चलाया है, जिन्होंने कोविड के दौरान अपनी नौकरी खो दी और दसवीं के बाद अपने गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू कर दिया.’
एक नई उड़ान भरने के लिए तैयार अंशिका पटेल की प्रेरणा उसकी अपनी मां हैं, जो एक दर्जी हैं और स्थानीय महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए कढ़ाई और सिलाई सिखाती हैं.
उसने कहा, ‘अगर मेरी मां इकोनॉमिक्स पढ़े बिना ही समाज में परिवर्तन ला सकती हैं, तो मैं इस विषय पर गहरी जानकारी हासिल करने के बाद और भी बहुत कुछ कर सकती हूं.’
अंशिका का कहना है कि उसकी महत्वाकांक्षा एक अर्थशास्त्री बनने की है जो सामाजिक विकास के क्षेत्र में काम करे ताकि दुनिया में सामाजिक आर्थिक असमानताओं का समाधान निकालने में मदद कर सके.
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