नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मंगलवार को, देशभर के संस्थानों में शैक्षिक अनुसंधान की अच्छी परिपाटी का ढांचा मुहैया कराने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए. इनमें जानकारी दी गई है, कि शोध का विषय कैसे चुनें, डेटा कैसे जमा करें, निष्कर्षों पर कैसे पहुंचें, और साहित्यिक चोरी से कैसे बचें.
‘गाइडेंस डॉक्युमेंट- गुड अकैडेमिक रिसर्च प्रेक्टिसेज़’, शीर्षक नाम के इस दस्तावेज़ में, ये भी मांग की गई है कि हर संस्थान में, एक ऑफिस ऑफ रिसर्च इंटेग्रिटी (ओआरआई) बनाया जाए, जिससे अच्छे आचरण का पालन सुनिश्चित किया जा सके.
दस्तावेज़ में कहा गया है, “हर संस्थान अलग होता है, और वो इस ढांचे को इस्तेमाल कर सकता है, क्योंकि ये उसके लिए प्रासंगिक होता है”.
अपने उपाध्यक्ष भूषण पटवर्धन और शिक्षाविदों की अगुवाई में, यूजीसी भारतीय विश्वविद्यालयों में रिसर्च के स्तर सुधारने की कोशिश में लगा है. ये ताज़ा दस्तावेज़ उसी दिशा में एक प्रयास है.
क्या कहती हैं गाइडलाइन्स
गाइडलाइन्स के मुताबिक़, शोधकर्ताओं को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए, कि अपने शोध में वो क्या सवाल पूछ रहे हैं, और रिसर्च की उनकी योजना के पीछे औचित्य क्या है.
दस्तावेज़ में कहा गया है, ‘रिसर्च का अनुवाद तो बाद में आता है, लेकिन रिसर्चर्स को अपने शोध के प्रभाव के बारे में, सक्रियता से विचार करना चाहिए. क्या उसका प्रोजेक्ट संभावित रूप से, समाज, उद्योग, देश या ईकोसिस्टम के लिए कोई सकारात्मक निष्कर्ष लेकर आएगा?’
दस्तावेज़ में वो तरीक़े भी सुझाए गए हैं, जिनसे कोई रिसर्चर अपने डेटा जमा कर सकता है. इसमें लिखा है, “एक शोधकर्ता को सुनिश्चित करना होगा- डेटा का स्वामित्व और जवाबदेही स्पष्ट हो; मूल डेटा की कॉपी के इस्तेमाल में डेटा की ईमानदारी; अन्य बातों के अलावा डेटा कलेक्शन, स्टोरेज और रिट्रीवल में एहतियात और विश्वसनीयता”.
दस्तावेज़ में ये भी कहा गया कि जो डेटा आसानी से, दोबारा तैयार न किया जा सके, उसे अनिश्चित काल के लिए रखा जाना चाहिए.
दस्तावेज़ में शोध की नैतिकता पर भी रोशनी डाली गई है, और ‘गढ़ने’ – डेटा या नतीजे बना लेना- ‘साहित्यिक चोरी’- किसी और व्यक्ति के विचारों, प्रक्रियाओं, निष्कर्षों या शब्दों को, उसे उचित श्रेय दिए बिना काम में ले आना, और ‘जालसाज़ी’- शोध सामग्री, उपकरणों या प्रक्रियाओं में हेराफेरी करना, और आंकड़ों या निष्कर्षों को इस तरह बदलना या छोड़ना, कि रिकॉर्ड में रिसर्च का सही प्रतिनिधित्व ही न हो पाए- के बीच अंतर को समझाया गया है.
गाइडलाइन्स में शोधकर्ताओं को कहा गया है, कि ऐसे भ्रष्ट कार्यों से दूर रहें, और सुनिश्चत करें कि उनका काम मौलिक है, गढ़ा हुआ नहीं है.
इसमें ये भी समझाया गया है कि शोध के नतीजों को, वास्तविक जीवन में उपयोग किया जा सकता है, अगर शोधकर्ता वास्तविक जीवन की समस्याओं से जुड़े विषयों पर फोकस करे; व्यापक रूप से उपलब्ध साज़ो सामान व पुर्ज़े इस्तेमाल करे, जो बड़े पैमाने पर संभव हैं, जो जीवन और पर्यावरण के लिए कम से कम ख़तरा पेश करते हैं, और मैन्युफेक्चरिंग को बढ़ावा देते हैं; और अपने सभी प्रयोगों और सर्वेक्षणों का पूरा रिकॉर्ड रखें, जिससे टेक्नोलॉजीज़ के स्तर को, विश्वसनीयता और निपुणता के साथ ऊपर उठाया जा सके.
गाइडलाइन्स में ये भी बताया गया है, कि अपनी रिसर्च को प्रकाशित करने के लिए, रिसर्चर किस तरह उचित पत्रिका का चयन कर सकता है.
पत्रिका का चयन करते समय शोधकर्ता को, इन बातों का ध्यान रखना चाहिए- क्या पत्रिका का उद्देश्य और कार्यक्षेत्र, रिसर्च से मेल खाते हैं; क्या पत्रिका ने इस तरह के लेख, पहले भी प्रकाशित किए हैं; पत्रिका में पियर रिव्यू प्रक्रिया क्या है; और, क्या पत्रिका अपने प्रासंगिक पाठकों तक पहुंचती है.
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