राजगीर: म्यानमार की एक छात्रा पारंपरिक मोमबत्ती डांस कर रही है, और परिदृश्य में एक बहुत बड़े स्क्रीन पर, क्षितिज तक फैले धान के खेत लहलहा रहे हैं.
पारंपरिक पोशाक पहने छात्रों का एक और समूह –जो भूटान से है- मंत्रों का जाप कर रहा है, और पृष्ठभूमि में पारो की प्रसिद्ध तकसांग मोनास्ट्री नज़र आ रही है. भारतीय छात्रों का एक ग्रुप एक हिंदी गाने के सुर में सुर मिला रहा है.
ये सभी प्रदर्शन नालंदा विश्वविद्यालय में भारत के 75वें स्वाधीनता दिवस समारोह के सिलसिले में आयोजित किए गए थे- जिसकी विरासत का सिलसिला शिक्षा के प्राचीन केंद्र नालंदा से मिलता है.
विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय चरित्र का प्रदर्शन करते हुए, विभिन्न राष्ट्रीयताओं के छात्र 25 फरवरी को, ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के लिए ऑडिटोरियम में एकत्र हुए थे- केंद्र सरकार का एक कार्यक्रम जिसमें इस ऐतिहासिक घटना को यादगार बनाने के लिए, पूरे साल सिलसिलेवार कार्यक्रम आयोजित किए गए जा रहे हैं.
अपने प्राचीन स्वरूप की तरह- पूरे एशिया में प्रसिद्ध बौध विश्वविद्यालय जो पंद्रह सौ साल पहले सक्रिय था- नालंदा विश्वविद्यालय की परिकल्पना एक अंतर्राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी के तौर पर की है, जो दक्षिणी और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के छात्रों को आपस में जोड़ती है.
प्राचीन मगध के शिक्षा केंद्र को पुनर्जीवित करने का फैसला, मूल रूप से 2010 में शुरू हुआ था, जब संसद के एक अधिनियम के ज़रिए, इसकी नींव रखी गई थी.
शुरुआती समस्याओं से उबरने के बाद, छात्रों का पहला बैच जिसकी संख्या केवल 12 थी, 2014 में दाख़िल किया गया.
यूनिवर्सिटी शुरू के वर्षों में, दिल्ली के एक परिसर से काम कर रही थी, फिर इसे बिहार में राजगीर के एक अस्थायी परिसर से संचालित किया गया, जिसके बाद आख़िरकार 2019 में जाकर इसने अपने नए परिसर से काम करना शुरू किया.
विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड्स के अनुसार, भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की कुल संख्या फिलहाल 500 पहुंच गई है. नालंदा यूनिवर्सिटी अब छह स्कूलों से कई शैक्षणिक कार्यक्रम पेश करती है.
शुरुआती विवाद
यूनिवर्सिटी ने इनफ्रास्ट्रक्चर और शैक्षणिक कार्य, दोनों मामलों में अब रफ्तार पकड़ ली है, लेकिन शुरू में इसकी स्थिति को लेकर काफी आलोचनाएं हुईं थीं.
2007 में, यूनिवर्सिटी के लॉन्च किए जाने से तीन साल पहले, इसके गठन का मार्गदर्शन करने के लिए, अर्थशास्त्री और नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की अध्यक्षता में, एक सलाहकार समूह का गठन किया गया.
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कई विस्तार दिए जाने के बाद, समूह ने 2010 से लेकर 2016 तक गवर्निंग बॉडी के रूप में काम किया. नवंबर 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उसे भंग कर दिया, जिससे कुछ सदस्यों में नाराज़गी फैल गई.
मेघनाद देसाई ने ईमेल पर दिप्रिंट से कहा, ‘नालंदा में अमर्त्य सेन की परिकल्पना में बदलाव किया जाना था, इसी कारण से हम सब को बदला गया’.
अमर्त्य सेन के वेतन को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ था.
2015 में, बीजेपी सांसद सुब्राह्मण्यम ने दावा किया, कि अमर्त्य सेन को यूनिवर्सिटी के चांसलर के नाते 50 लाख रुपए सालाना वेतन मिल रहा था, बाद में जिसके जवाब में यूनिवर्सिटी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, कि प्रोफेसर सेन ने ‘यूनिवर्सिटी से कोई वेतन वसूल नहीं किया’.
उसी साल, मोदी सरकार के आलोचक सेन ने यूनिवर्सिटी के चांसलर के तौर पर, कार्यकाल की मंज़ूरी में देरी का आरोप लगाते हुए, दूसरे कार्यकाल से इनकार कर दिया. लेकिन विदेश मंत्रालय (एमईए) ने उनका दावे का खंडन करते हुए कहा, कि ‘डॉ सेन का कार्यकाल कम करने की कोई कोशिश नहीं हुई थी’.
दो साल बाद ऐसी ख़बरें आईं, कि छात्र अपने कोर्स बीच में ही छोड़ रहे थे, क्योंकि यूनिवर्सिटी में जिस शैक्षणिक अनुभव का वादा किया गया था, उन्हें वो नहीं मिल रहा था.
लेकिन, पूर्व राजस्व सचिव और 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह इससे सहमत नहीं हैं, कि यूनिवर्सिटी अपनी मूल परिकल्पना से हट गई थी.
सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरे विचार में यूनिवर्सिटी का विज़न, और दक्षिणपूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों के छात्रों के बीच पुल का काम करने की इसकी मूल अवधारणा, अभी भी उसका सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘प्रशासनिक स्तर पर बदलाव हुए हैं, लेकिन विज़न वही बरक़रार रहा है. उसके अलावा, आज के समय में विश्वविद्यालय का महत्व कहीं अधिक सुस्पष्ट है, क्योंकि ये कूटनीति के लिए सॉफ्ट पावर का काम कर सकता है’.
एक बिल्कुल नए परिसर के साथ, नालंदा विश्वविद्यालय की वाइस-चांसलर सुनैना सिंह और टीचिंग स्टाफ को उम्मीद है, कि पुराने विवाद को पीछे छोड़कर, अब वो शैक्षणिक उत्कृष्टता की ओर क़दम बढ़ाएंगे.
मूल नालंदा के मॉडल पर बना है नया परिसर
पिछले महीने, विश्वविद्यालय प्रशासन ने, नव-निर्मित परिसर की एक झलक बाहरी दुनिया के साथ साझा की.
यूनिवर्सिटी द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, मुख्य परिसर के निर्माण में तेज़ी लाई गई थी- 2017 में जहां केवल 0.28 प्रतिशत निर्माण हुआ था, वहीं 2021 तक 80 प्रतिशत से अधिक निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया था.
क़रीब 200 स्ट्रक्चर्स, जिनमें एक एम्फीथिएटर, एक ध्यान कक्ष, शैक्षणिक ब्लॉक्स, और प्रशासनिक ब्लॉक शामिल हैं, 443 एकड़ के विशाल परिसर में फैले हुए हैं.
परिसर में दाख़िल होते ही जो चीज़ सबसे पहले ध्यान आकर्षित करती है, वो है बन रही इमारतों की ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी की भव्य संरचनाओं के साथ समानता, जो राजगीर के वर्तमान परिसर से 10 किलोमीटर दूर, खण्डहरों की शक्ल में मौजूद हैं.
पुराना विश्वविद्यालय परिसर जिसे अब नालंदा खंडहर कहा जाता है, युनेस्को का एक विश्व विरासत स्थल और पर्यटन आकर्षण है, जहां महामारी से पहले हर दिन 2,000 से 4,000 दर्शक आते थे.
नालंदा यूनिवर्सिटी की अधिकारिक वेबसाइट के इतिहास खंड के अनुसार, ‘वो (मूल यूनिवर्सिटी) पूरी तरह से आवासीय विश्वविद्यालय थी, जहां माना जाता है कि 2,000 शिक्षक, और 10,000 छात्र हुआ करते थे’.
इसमें कहा गया है, ‘उसमें चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, टर्की, श्रीलंका, और दक्षिणपूर्व एशिया से छात्र आकर्षित होते थे. उन विद्वानों ने इस अनोखे विश्वविद्यालय के माहौल, वास्तुकला, और शिक्षा के बारे में रिकॉर्ड्स छोड़े हैं’.
खंड में आगे कहा गया है कि सबसे विस्तृत ब्योरा चीनी विद्वानों से मिला है, और उनमें सबसे प्रसिद्ध जुआनजांग था, जो अपने साथ सैकड़ों ग्रंथ लेकर गया, जिनका बाद में चीनी भाषा में अनुवाद किया गया’.
नालंदा विश्वविद्यालय में अतीत फिर से जीवित हो उठता है. नई यूनिवर्सिटी की वास्तुकला का डिज़ाइन तैयार करने में, पुराने नालंदा के विषयगत डिज़ाइन का पूरा ध्यान रखा गया है.
यूनिवर्सिटी की ये जगह भी प्रारंभिक भारतीय इतिहास के साथ जुड़ी हुई है. राजगीर पहाड़ियों से घिरा इसका परिसर एक शानदार दृश्य पेश करता है.
मनोरंजन क्षेत्र दो विशाल जलाशयों से घिरा है, और व्यवसायिक परिसर अभी निर्माणाधीन है, जबकि प्रशासनिक ब्लॉक, शिक्षण ब्लॉक, फैकल्टी बिल्डिंग और ऑडिटोरियम कुछ ऐसी इमारतें हैं, जो पहले ही तैयार होकर इस्तेमाल में आ रहीं हैं.
इमारतों की दीवारें मोटी हैं और इनकी छतें बहुत ऊंची हैं, जिनमें प्राचीन भारत के निर्माण मानदंडों की नक़ल की गई है.
कक्षाएं भी इस तरह से डिज़ाइन की गईं हैं, कि दोनों ओर खुली जगह है ताकि लेक्चर्स के बीच में चर्चा और वाद-विवाद को प्रोत्साहित किया जा सके. यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ने कहा कि ये भी एक ऐसा विचार है, जिसे प्राचीन नालंदा से लिया गया है.
नए परिसर का डिज़ाइन वास्तुशिल्प कंसल्टेंट्स के आर्किटेक्ट राजीव कथपालिया और उनकी टीम ने तैयार किया है. नए परिसर का वास्तुकला नक्शा बनाने के लिए, टीम ने नालंदा खण्डहरों के डिज़ाइनों का अध्ययन किया. आगे चलकर इसमें मनोरंजन सुविधाएं, एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, और फैकल्टी तथा छात्रों के लिए आवास का निर्माण किया जाएगा.
वाइस चांसलर सुनैना सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘2017 में जब मैं यहां आई, तो मेरा पहला काम ये देखना था, कि उस समय तक कितना काम हो चुका था, और अब वहां से कितना और हो सकता था’.
नई वीसी के कार्यभार संभालने के बाद से, नए परिसर का अधिकतर निर्माण कार्य पूरा किया जा चुका है. वो फैकल्टी की अकेली सदस्य हैं जो परिसर में ही रहती हैं.
‘प्राचीन नालंदा परंपरा के हिसाब से, यूनिवर्सिटी कोआवश्यक रूप से एक आवासीय परिसर बनना है. सभी छात्रों और फैकल्टी सदस्यों को परिसर में निवास करना है. मैं एक मिसाल क़ायम करना चाहती थी, इसलिए मैंने पहले ही परिसर में रहना शुरू कर दिया है…मैं उम्मीद कर रही हूं कि फैकल्टी आवास जल्द तैयार हो जाएंगे, ताकि दूसरे सदस्य भी आकर यहां ठहर सकेंगे’.
फिलहाल छात्र और फैकल्टी सदस्य राजगीर शहर में एक अस्थाई हॉस्टल में रह रहे हैं, जो परिसर से क़रीब 3 किलोमीटर दूर है. एक शटल सेवा उन्हें यूनिवर्सिटी से लाने-ले जाने का काम करती है.
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नालंदा यूनिवर्सिटी ने दो मास्टर्स कोर्सेज़ के साथ शुरूआत की थी- एक ‘पारिस्थितिकी और पर्यावरण’ तथा दूसरा ‘ऐतिहासिक अध्ययन’.
यूनिवर्सिटी में फिलहाल छह स्कूल हैं.
स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज़, फिलॉसफी, एंड कंपैरेटिव रिलीजन, इन तीनों विषयों में मास्टर्स और पीएचडी कार्यक्रम पेश करता है, और सनातन हिंदू स्टडी में एक मास्टर्स प्रोग्राम कराता है.
स्कूल ऑफ इकॉलजी और एनवायरमेंट स्टडीज़, और स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज़ दोनों में मास्टर्स प्रोग्राम्स कराए जाते हैं.
स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ एंड लिटरेचर/ह्यूमैनिटीज़ में विश्व साहित्य में मास्टर्स कोर्स, और कोरियाई, संस्कृत, अंग्रेज़ी, पाली, और तिब्बती भाषा में अल्प-कालिक कार्यक्रम कराए जाते हैं.
स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ में सतत विकास और प्रबंधन में एक एमबीए कोर्स कराया जाता है. अंत में है स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस.
तीन केंद्र – सेंटर फॉर बे ऑफ बंगाल स्टडीज़, कॉमन आर्काइवल रीसोर्स सेंटर, और सेंटर फॉर कनफ्लिक्ट रेज़ोल्यूशन एंड पीस स्टडीज़ भी यूनिवर्सिटी का हिस्सा हैं.
यूनिवर्सिटी ने एक ‘ग्लोबल पीएचडी’ प्रोग्राम भी शुरू किया है. वीसी ऑफिस द्वारा साझा की गई जानकारी के मुताबिक़, ग्लोबल पीएचडी प्रोग्राम के तहत पंजीकरण कराकर, शोध छात्र जिन विषयों में काम कर रहे हैं, वो हैं ‘बौद्ध धर्म में महिलाओं की छवि का ऐतिहासिक अध्ययन’, ‘ड्रुपका काजयू वंश के छिपे हुए रत्न’, और ‘प्रारंभिक भारत (8वीं-9वीं ईसवीं सदी) के महावीर’.
फिलहाल यूनिवर्सिटी में पेश किए जा रहे कोर्सेज़ के बारे में बात करते हुए, वीसी सिंह ने कहा, ‘जब मैंने वीसी का ज़िम्मा संभाला, तो मेरा पहला काम ये देखना था कि यहां पर क्या है और क्या नहीं है, और क्या जिए जाने की ज़रूरत है. उस समय तक जो कुछ किया जा चुका था, मैंने उसकी समीक्षा की, नीतियों और डॉकयुमेंट्स को देखा और मेरी समझ में आ गया, कि हमें अपने कोर्सेज़ की संख्या को, कई गुना बढ़ाने की ज़रूरत थी’.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं कहूंगी कि हमारे सभी कोर्स फ्लैगशिप प्रोग्राम हैं. यूनिवर्सिटी इस मामले में अनोखी है कि यहां किसी भी धारा के छात्र आवेदन कर सकते हैं…हम किसी भी पृष्ठभूमि के छात्र को, उसके क्षेत्र में आगे बढ़ने से नहीं रोकना चाहते’.
उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात का बहुत ध्यान रखती हूं, कि हम क्या कर रहे हैं. मैं सभी कोर्सेज़ का शैक्षणिक ऑडिट कराती हूं, और उनकी प्रासंगिकता को देखती हूं. मैं निश्चित होना चाहती हूं कि हम भविष्य की यूनिवर्सिटी बनें, और हमारे सभी कोर्स प्रासंगिक रहें’.
सिंह ने कहा कि इस समय नालंदा यूनिवर्सिटी में, 31 देशों के क़रीब 200 अंतर्राष्ट्रीय छात्र पंजीकृत हैं, जिनमें बांग्लादेश, भूटान, कम्बोडिया, कोलम्बिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, नेपाल, पेरू, श्रीलंका, थाईलैण्ड, सिंगापुर, वियतनाम, और मेक्सिको आदि शामिल हैं.
वीसी ने कहा कि बौद्ध तथा एतिहासिक अध्ययन के अलावा, छात्रों की सतत विकास और प्रबंधन में एमबीए कोर्स के लिए भी काफी रूचि है.
उन्होंने आगे कहा, ‘अधिकतर छात्र बौद्ध अध्ययन और हिंदू अध्ययन कार्यक्रमों में हैं…सांस्कृतिक लोकाचार इन छात्रों को यूनिवर्सिटी की ओर आकर्षित करता है’.
यूनिवर्सिटी राजस्थान में नीमराना के एक परिसर से भी, कुछ अंडरग्रेजुएट कोर्सेज़ शुरू करने की योजना बना रही है.
दिप्रिंट ने परिसर में कुछ छात्रों से बातचीत की- जिनमें से कुछ आज़ादी के अमृत महोत्सव समारोह के लिए रिहर्सल में व्यस्त थे, जबकि कुछ अन्य शैक्षणिक कार्य से ब्रेक लेकर लाइब्रेरी में थे.
दिप्रिंट से बात करने वाले ज़्यादातर छात्रों ने कहा, कि इतिहास और संस्कृति में गहरी रूचि के चलते ही वो नालंदा आए हैं.
अनुषा थाईलैण्ड से बिज़नेस मैनेजमेंट में स्नातक डिग्री पूरी करने के बाद, इतिहास से अपने लगाव को आगे बढ़ाने के लिए यूनिवर्सिटी आया थे. फिलहाल वो ऐतिहासिक अध्ययन में मास्टर्स कर रहा है.
उसने कहा, ‘मैं अपने बौद्ध धर्म के बारे में जानने के लिए हमेशा भारत आना चाहता था. बौद्ध धर्म से जुड़ी हर चीज़ यहीं घटित हुई…वो जगहें बहुत दूर नहीं हैं, मैं उन जगहों तक जा सकता हूं और वहां से सीख सकता हूं’.
भूटान से ऐतिहासिक अध्ययन की एक दूसरी मास्टर्स छात्रा ने कहा, कि वो एक छोटे से देश से थी और नालंदा यूनिवर्सिटी में उसे बहुत कुछ देखने को मिला है.
उसने आगे कहा, ‘शुरू शुरू में यहां पर एडजस्ट होने में दिक़्क़तें पेश आईं, लेकिन अब मुझे यहां अच्छा लगता है. यहां पर मैंने बहुत कुछ सीखा है, और विकसित हुई हूं…न केवल मैंने अपने कोर्स से सीखा, बल्कि जीवन कौशल और दूसरी संसंकृतियों के बारे में भी जाना. और आज हम भारत की आज़ादी के 75 वर्ष का जश्न मना रहे हैं, इसलिए बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है’.
यूपी के लखनऊ की मिताली दीक्षित ने ऐतिहासिक अध्ययन का कोर्स करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी, क्योंकि वो ‘हमेशा से यूनिवर्सिटी का हिस्सा बनना चाहती थी’.
उसने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरी हमेशा से संस्कृति और इतिहास में रूचि थी, जिसकी वजह से मैं यहां आई. यहां मैंने संस्कृति के बारे में बहुत कुछ जाना, और अलग अलग देशों से आए छात्रों के साथ बातचीत की’.
हालांकि दिप्रिंट से बात करने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों ने कहा, कि उन्हें यहां का शैक्षणिक माहौल पसंद है, लेकिन संस्कृति और भोजन के मामले में, यहां के नए वातावरण में ढलना उनके लिए एक चुनौती था.
बहुत से छात्रों को यहां के सब्ज़ियों पर ज़्यादा आधारित, और कम मीट वाले भोजन के साथ, ख़ुद को ढालने में मुश्किलें पेश आईं थीं.
भूटान के एक छात्र ने कहा, ‘हमें मांसाहारी भोजन मिलता है, लेकिन जिस तरह का मीट हम खाते हैं, वो हमें यहां नहीं मिलता…इसलिए शुरू में भोजन एक समस्या थी, लेकिन अब हमने ख़ुद को उसके हिसाब से ढाल लिया है’.
नालंदा यूनिवर्सिटी के अधिकारियों के अनुसार, कोर्सेज़ के अनोखे विकल्पों के अलावा यहां की फीस का ढांचा भी, इसे मास्टर्स डिग्री में दिलचस्पी रखने वाले विदेशी छात्रों की पसंद बना देता है.
यूनिवर्सिटी की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए मास्टर्स कोर्स की फीस 470 डॉलर प्रति सेमेस्टर- क़रीब 35,000 रुपए है.
भारतीय छात्रों के लिए प्रति सेमेस्टर 30,500 रुपए फीस है.
फैकल्टी सदस्य
यूनिवर्सिटी में फिलहाल 47 फैकल्टी सदस्य हैं, जिनमें से 17 विज़िटिंग लेक्चरर्स हैं.
वीसी सुनैना सिंह का कहना है कि जगह की वजह से, अच्छी फैकल्टी को आकर्षित करना एक चुनौतीपूर्ण काम रहा है.
उन्होंने कहा, ‘मेरे यहां आने के बाद से ये एक चुनौती रहा है, क्योंकि यहां पर इनफ्रास्ट्रक्चर उसी तरह का है. हम कोई महानगर नहीं हैं… यहां पर कोई मॉल्स या सिनेमा हॉल्स नहीं हैं…यहां पर आप बस प्रकृति की गोद में रहते हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘उससे निपटने के लिए मेरा एक लक्ष्य रहा है एक अच्छा इनफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना. हम अपने फैकल्टी सदस्यों को अच्छे आवास देते हैं…अगले क़रीब पांच सालों में हम इन चुनौतियों पर क़ाबू पाने में कामयाब हो जाएंगे’.
पूर्व आईएएस अधिकारी अरविंद शर्मा, जो कनाडा में मॉन्ट्रियल की मैकगिल यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं, अंतर्राष्ट्रीय फैकल्टी के सदस्यों में से एक हैं. वो यूनिवर्सिटी के गवर्निंग बोर्ड का भी हिस्सा हैं.
अंतर्राष्ट्रीय फैकल्टी के सदस्यों में इटली के रोम की सेपिएंज़ा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंतोनियो रेफॉन, ब्राउन यूनिवर्सिटी अमेरिका के यान पियरे मॉन्टेल, और श्रीलंका की कोलंबो यूनिवर्सिटी के असांगा तिलकरत्ने शामिल हैं.
यूनिवर्सिटी की शैक्षणिक परिषद में अन्य सदस्यों के अलावा, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़ के निदेशक माकरंड परांजपे, और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल स्टडीज़ के अध्यक्ष और प्रोफेसर हीरामन तिवारी शामिल हैं.
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