scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमएजुकेशनभारत में इंजीनियरिंग की सीटें 10 साल के निचले स्तर पर, मैनेजमेंट की सीटों में 5 वर्षों में दिख रही है वृद्धि

भारत में इंजीनियरिंग की सीटें 10 साल के निचले स्तर पर, मैनेजमेंट की सीटों में 5 वर्षों में दिख रही है वृद्धि

वर्ष 2021-22 में पूरे देश में 23.6 लाख इंजीनियरिंग सीटें उपलब्ध थीं, जो 2012-13 के बाद सबसे कम थीं. वहीं प्रबंधन के लिए उपलब्ध सीटें 4.04 लाख के करीब थीं जो पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021-22 में देश में इंजीनियरिंग सीटों की कुल संख्या पिछले 10 वर्षों में सबसे कम रही है.

वहीं, दिप्रिंट की तरफ से जुटाए गए आंकड़े बताते हैं कि हाल के वर्षों में प्रबंधन पाठ्यक्रमों में सीटों में अच्छी-खासी वृद्धि हुई है.

तकनीकी शिक्षण संस्थानों के नियामक प्राधिकरण एआईसीटीई के मुताबिक, 2021-22 के सत्र के लिए देशभर में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में कुल 23.6 लाख सीटें उपलब्ध थीं. यह संख्या 2012-13 के बाद सबसे कम है, जब 26.9 लाख सीटें उपलब्ध थीं. पिछले दस सालों में शीर्ष स्थिति 2014-15 में आई थी, जब इंजीनियरिंग कॉलेजों की तरफ से 31.8 लाख सीटों की पेशकश की गई थी. हालांकि, तब से सीटों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है.

इस बीच, 2019-20 के बाद से प्रबंधन पाठ्यक्रमों के लिए सीटों में लगातार वृद्धि नजर आई है, जिसमें 2021-22 में प्रस्तावित सीटें—4.04 लाख—पिछले पांच सालों में सबसे अधिक रही हैं.

प्रबंधन पाठ्यक्रमों पर पिछले 10 वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इन पाठ्यक्रमों के लिए सीटों की संख्या में 2012-13 से 2014-15 तक वृद्धि देखी गई, लेकिन उसके बाद गिरावट आई. 2017-18 में सीटों की कुल संख्या बढ़कर 3.94 लाख पर पहुंच गई थी, लेकिन फिर 2018-19 में घटकर 3.74 लाख और 2019-20 में 3.73 रह गई. हालांकि, इसके बाद से यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

2017-18 से 2020-21 तक के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि प्रबंधन पाठ्यक्रमों की तुलना में पिछले पांच वर्षों में इंजीनियरिंग कॉलेजों में अधिक सीटें खाली बची रही हैं.

इस अवधि के दौरान प्रबंधन संस्थानों में रिक्त सीटों का प्रतिशत 34 से 37 के बीच था. इसकी तुलना में पिछले पांच वर्षों में इंजीनियरिंग कॉलेजों में खाली बची रही सीटों की संख्या 45 से 48 प्रतिशत के बीच थी.


यह भी पढ़ेंः NIRF रैंकिंग- IIT मद्रास भारत में नंबर-1, विश्वविद्यालयों में JNU, DU दूसरे और BHU तीसरे स्थान पर


इंजीनियरिंग शिक्षा की मांग में कमी

प्रबंधन क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक, डाटा में रेखांकित दो ट्रेंड एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, और इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि इंजीनियरिंग शिक्षा की मांग में कमी ने प्रबंधन की शिक्षा की मांग बढ़ाने का काम किया है.

मणिपाल में टीए पाई प्रबंधन संस्थान के निदेशक प्रो. मधु वीरराघवन ने कहा, ‘समस्या इंजीनियरों की बेरोजगारी के कारण हुई है…इंजीनियरों को ग्रेजुएशन के बाद नौकरी नहीं मिल रही, इसलिए वे एमबीए की तरफ जा रहे हैं. सिविल, मैकेनिकल और अन्य इंजीनियरिंग ग्रेजुएट को अपने मूल क्षेत्र में नौकरियां नहीं मिल पाती है, इसलिए उन्हें लगता है कि उन्हें कॉरपोरेट की ओर जाना चाहिए.’

वीरराघवन ने दिप्रिंट से कहा, ‘इंजीनियरिंग की सीटों में गिरावट और प्रबंधन की सीटें बढ़ने के बीच निश्चित तौर पर एक सीधा संबंध है.’ हालांकि, उन्होंने कहा कि इंजीनियरिंग और प्रबंधन दोनों के ही ग्रेजुएट में कौशल को लेकर एक समस्या है.

वीरराघवन ने कहा, ‘स्किल इंडिया की ताजा रिपोर्ट बताती है कि केवल 40 प्रतिशत के करीब एमबीए ग्रेजुएट ही रोजगार योग्य होते हैं, और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट के मामले में भी आंकड़ा कुछ इसी तरह है. देश के शिक्षण संस्थानों को अपना पाठ्यक्रम अपग्रेड करने और यह समझने की जरूरत है कि बाजार को क्या चाहिए.’

इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2021 में इस बात को रेखांकित किया गया है कि बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी (बीटेक) और बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई) करने वाले छात्रों में अधिकतम 46.82 प्रतिशत को रोजगार योग्य पाया गया. इसी तरह, एमबीए के छात्रों ने 46.59 प्रतिशत रोजगार क्षमता दर्शाई.

विभिन्न डोमेन में भारतीय ग्रेजुएट की रोजगार योग्यताओं के बारे में आकलन करने वाली यह रिपोर्ट एक ऑनलाइन टैलेंट असेसमेंट प्लेटफॉर्म व्हीबॉक्स ने एआईसीटीई और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) जैसे उद्योग संगठनों के साथ मिलकर तैयार की थी.

प्रबंधन से अच्छे वेतन वाली नौकरियां मिल रहीं

थाडोमल शाहनी सेंटर फॉर मैनेजमेंट के प्रबंध निदेशक डॉ. अखिल शाहनी के मुताबिक, देश के तमाम इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थानों ने ऐसे ग्रेजुएट तैयार किए हैं जो रोजगार के लायक नहीं हैं.

शाहनी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले दशक के दौरान देशभर में कई शिक्षा उद्यमियों ने इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थान खोले लिए क्योंकि उन्हें लगा कि उद्योगों की तरफ से तकनीकी और प्रबंधन कौशल की बढ़ती मांग को देखते हुए बड़ी संख्या में छात्रों को आकर्षित कर सकते हैं और उनसे अच्छी-खासी फीस ले सकते हैं. हालांकि, इनमें से कई नए कॉलेजों में शिक्षा का स्तर बहुत घटिया रहा और बड़ी संख्या में बेरोजगार ग्रेजुएट तैयार हो गए.’

उन्होंने कहा, ‘आईटी उद्योग में ऐसे निम्न गुणवत्ता वाले इंजीनियरिंग ग्रेजुएट की भर्ती की मांग घटने के कारण तमाम इंजीनियरिंग कॉलेज पर्याप्त संख्या में छात्रों को आकर्षित नहीं कर सके और उन्हें बंद करना पड़ा.’

शाहनी ने कहा, ‘कंपनियां प्रबंधन स्नातकों को बेहतर वेतन वाली नौकरियों की पेशकश कर रही हैं और नौकरी देने के बाद भी उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए तैयार हैं. इसलिए प्रबंधन की डिग्री के लिए छात्रों की मांग अभी भी मजबूत है और अधिक क्षेत्रीय प्रबंधन कॉलेज उभर रहे हैं.’

विशेषज्ञों की राय में इंजीनियरिंग सीटों की संख्या में कमी की वजह यह भी हो सकती है कि इंजीनियरिंग के परंपरागत विषयों में नौकरियों की संभावना घटना के कारण इसकी मांग कम हुई हो.

एसपी जैन स्कूल ऑफ ग्लोबल मैनेजमेंट के दुबई कैंपस के सीईओ और प्रमुख डॉ क्रिस्टोफर अब्राहम ने कहा, ‘पिछले कुछ समय में एक सामान्य ट्रेंड बन गया है कि इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करो और फिर प्रबंधन प्रोग्राम में पोस्टग्रेजुएट करो, और मुझे लगता है कि यह ट्रेंड अभी जारी रहेगा.’


यह भी पढ़ेंः JEE घोटाला और NEET पर पाबंदी मौजूदा व्यवस्था की नाकामियां हैं, असली चुनौतियां तो अभी बाकी हैं


 

share & View comments