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Friday, 22 November, 2024
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फोकस ग्रुप, रिकवरी कोर्स, सर्वे— कैसे कोविड के कारण बच्चों की पढ़ाई को पहुंचे नुकसान की भरपाई करेंगे राज्य

राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से पिछले महीने लर्निंग गैप का पता लगाने और उसे दूर करने की अपनी योजनाओं को साझा किए जाने के बाद शिक्षा मंत्रालय ने बजट निर्धारित करना शुरू कर दिया है.

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नई दिल्ली: बच्चों को उनके लर्निंग लेवल के आधार पर समूहों में बांटने से लेकर रिकवरी कोर्स शुरू करने तक, विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने महामारी के कारण स्कूलों में पढ़ाई के नुकसान से उबरने के उपाय करने शुरू कर दिए हैं. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

पिछले महीने के नेशनल अचीवमेंट सर्वे—जो शिक्षा मंत्रालय की तरफ से हर तीन साल पर पढ़ाई के नतीजों के आकलन के लिए किया जाता है—के नतीजे बताते हैं कि कोविड के कारण स्कूलों के बंद रहने का बच्चों के सीखने-समझते की क्षमता पर गहरा असर पड़ा है.

ताजा घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ शिक्षा अधिकारी ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया कि मंत्रालय ने बजट तय करना शुरू कर दिया है क्योंकि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पिछले महीने लर्निंग गैप की पहचान करने और उसे दूर करने की अपनी योजनाओं को उसके साथ साझा किया है.

अधिकारी ने आगे कहा कि राज्य जुलाई में शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले ‘ऑउट ऑफ स्कूल’ बच्चों और साथ ही ड्रॉपआउट की भी पहचान के लिए एक सर्वेक्षण करेंगे.

‘ऑउट ऑफ स्कूल’ से आशय उन बच्चों से है जो स्कूल जाने की उम्र के हैं लेकिन उनका कभी दाखिला ही नहीं हुआ, जबकि पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने वाले ड्रॉपआउट होते हैं.

अधिकारी ने कहा कि कोशिश यह है कि स्कूल छोड़ने वालों को फिर से स्कूल सिस्टम में वापस लाया जा सके. हालांकि, अधिकारी ने माना कि छात्रों को महामारी से पहले वाले लर्निंग लेवल तक पहुंचाने में कम से कम दो साल लग सकते हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘आउट ऑफ स्कूल’ बच्चों के लिए राज्यों ने एक ब्रिज कोर्स की योजना बनाई है. उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम का उद्देश्य यह है कि ऐसे बच्चों को उनकी उम्र के अनुकूल शिक्षा देने की व्यवस्था करने से पहले उन्हें यह बताया जाए कि आखिर स्कूल और लर्निंग है क्या.

ये सब उस विस्तृत योजना का ही हिस्सा है जिसे शिक्षा मंत्रालय ने इस साल के शुरू में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया था ताकि महामारी के कारण बच्चों की पढ़ाई को पहुंचे नुकसान का आकलन किया जा सके.

योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना था. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मूलत: अप्रैल-मई तक अपना सर्वेक्षण करना था और इस काम में कुछ वजहों से देरी हुई, जो फिलहाल स्पष्ट नहीं हो पाए हैं.

केंद्र सरकार ने जो कदम उठाने की योजना बनाई, उनमें बच्चों के बीच एक ओरल रीडिंग फ्लूएंसी (ओआरएफ) सर्वेक्षण शामिल था ताकि ये पता लगाया जा सके कि वे पढ़ने के कौशल में कहां खड़े हैं, सरकारी और निजी स्कूलों को क्लस्टर में जोड़ने और छात्रों को क्लासरूम लर्निंग में मदद के लिए भी योजनाएं हैं.


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राज्य मदद की जरूरत वाले छात्रों की पहचान कैसे कर रहे

शिक्षा अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य उचित हस्तक्षेप निर्धारित करने के लिए छात्रों के लर्निंग लेवल का पता लगाने में मदद करने के लिए टेस्ट करा रहे हैं.

उदाहरण के तौर पर कर्नाटक अपने यहां छात्रों को उनके लर्निंग लेवल के अनुकूल समूहों में विभाजित करके उनके गणितीय और साक्षरता कौशल में सुधार लाने पर काम कर रहा है. अधिकारी ने कहा कि राज्य अपने नियमित पाठ्यक्रम पर लौटने से पहले छात्रों की दो साल का अंतर पाटने में मदद करेगा.

गुजरात की योजनाएं भी इसी तरह की हैं. राज्य सरकार के एक शिक्षा सलाहकार ने दिप्रिंट को बताया कि अप्रैल के अंत में स्कूलों में एक परीक्षा आयोजित की गई थी ताकि उन छात्रों की सूची बनाई जा सके जिन्हें इस तरह की किसी मदद की आवश्यकता है.

सलाहकार ने कहा, ‘(हमने सूची बनाई है) वे (छात्र) गणित में कमजोर हैं या फिर भाषा या रीडिंग में. यह बात उनके माता-पिता और शिक्षकों को बताई गई है जो उन्हें इससे उबारने में मदद कर रहे हैं.’

इस बीच, जम्मू-कश्मीर शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र शासित प्रदेश के स्कूलों ने उन छात्रों की पहचान करना शुरू कर दिया है, जिन्हें मदद की जरूरत है. और ऐसे छात्रों की मदद के लिए वे शिक्षकों को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं.

जैसा कि शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी ने पूर्व में दिप्रिंट को बताया था, मध्य प्रदेश और हरियाणा में भी इसी तरह की योजनाएं बनाई हैं.

अधिकारी ने कहा कि केंद्र की योजना के मुताबिक, राज्यों से उम्मीद की जाती है कि वे ‘आउट ऑफ स्कूल’ बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में लाना शुरू कर दें और यह सुनिश्चित करें कि सभी छात्रों के पास किताबें और यूनिफॉर्म हों.

उन्होंने कहा कि स्कूलों से पूरे साल पैरेंट-टीचर मीटिंग आयोजित करने और हर हफ्ते छात्रों की लर्निंग के नतीजे का ब्योरा रखने की उम्मीद की जाती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढने के लिए यहां क्लिक करें)


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