नई दिल्ली: शिक्षा सत्र 2021 के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों में, आवेदन की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, और भारतीय छात्र जो अमेरिका, कनाडा, यूके, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का एक बड़ा हिस्सा हैं, कोविड-19 के मंडराते ख़ौफ के बावजूद, आवेदन करने के लिए उतने ही उत्सुक हैं, जितने हर साल होते हैं.
दुनिया भर की बहुत सी यूनिवर्सिटियों ने, अपने फॉल सेमेस्टर (सितंबर 2021 से शुरू होने वाले) के लिए आवेदन खोल दिए हैं. लेकिन वो अभी तक फैसला नहीं कर पाई हैं, कि अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को यूनिवर्सिटी कैंपस में आने की अनुमति दें या नहीं. ये फैसला पूरी तरह संबंधित मुल्कों के यात्रा नियमों, और कोविड से जुड़े प्रतिबंधों पर निर्भर करता है.
तमाम अनिश्चितताओं के बावजूद छात्र देश से बाहर उच्च शिक्षा हासिल करने को लेकर अडिग नज़र आ रहे हैं.
लेकिन अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा क्षेत्र के एक्सपर्ट्स को लगता है, कि 2021 में छात्रों को ज़्यादा कड़ा मुक़ाबला झेलना पड़ सकता है, क्योंकि जिन लोगों ने 2020 में अपना विदेशी सपना छोड़ दिया था, वो भी 2021 के लिए आवेदन कर रहे हैं, जिससे अवेदकों की संख्या बढ़ रही है.
‘इस साल ज़्यादा छात्र आवेदन कर रहे हैं’
विदेशी पढ़ाई का सपना साकार करने में सहायता करने वाले, एक एड-टेक प्लेटफॉर्म ‘गैल्वनाइज़ टेस्ट प्रेप’ की संस्थापक पवित्रा श्रीनिवासन ने कहा, ‘जब लोगों को समझ आ गया कि ये चीज़ (कोविड-19) अभी रहने वाली है, और वो अपने लक्ष्यों को पूरी तरह छोड़ नहीं सकते, तो अगस्त से हम देख रहे हैं कि हमारे साथ पंजीकरण कराने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है. इसका मतलब है कि बाहर पढ़ने को लेकर, उनमें उतनी ही दिलचस्पी है जितनी पिछले साल थी.
उन्होंने आगे कहा, ‘बल्कि, ऐसा लगता है कि साल 2021 दिलचस्प रहने वाला है, चूंकि इस साल ज़्यादा छात्र आवेदन कर रहे हैं, जिनमें वो छात्र भी शामिल हैं जिन्होंने महामारी की वजह से, 2020 के अपने प्लान त्याग दिए थे. छात्र सोच रहे हैं कि एडमीशन ऑफर उनके हाथ में आ जाएं, ज़रूरत पड़ने पर वो उसे टालेंगे या नहीं, ये फैसला वो बाद में करना चाहते हैं’.
गैल्वनाइज़ ने नवंबर में प्लेटफॉर्म के साथ पंजीकृत, 2,400 छात्रों की प्राथमिकताएं समझने के लिए उन पर एक सर्वे किया था, जिसमें 89 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि वो, विदेश में पढ़ने की अपनी योजना को आगे बढ़ाना चाहते हैं. केवल 11 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा, कि उन्होंने अपना प्लान पूरी तरह तर्क कर दिया है.
2021 शिक्षा सत्र के लिए बढ़े हुए मुक़ाबले की बात करते हुए, दिल्ली स्थित फ्रीलांस शिक्षा सलाहकार रचना दुआ ने कहा, ‘छात्रों को डर है कि 2021 में ज़्यादा कड़ा मुक़ाबला होगा, चूंकि जिन लोगों ने 2020 में अपने प्लान त्याग दिए थे, वो भी अगले साल के लिए आवेदन कर रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने देखा है कि इस डर की वजह से, छात्र कहीं अधिक यूनिवर्सिटियों में आवेदन कर रहे हैं. सेफ साइड पर रहने के लिए, वो स्टेट यूनिवर्सिटियों और कॉलेजों में भी आवेदन कर रहे हैं, जो ज़्यादा जाने पहचाने नहीं हैं’.
‘विदेश में पढ़ने जाने के लिए, छात्र सक्रिय क़दम उठा रहे हैं’
टोफ़ल (विदेशी भाषा के तौर पर अंग्रेज़ी का टेस्ट) और जीआरई (ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्ज़ामिनेशन) टेस्ट आयोजित कराने वाली एजेंसी, एजुकेशन टेस्टिंग सर्विस की जन संपर्क प्रबंधक, स्टीफेनी विंटर्स भी इस बात को मानती हैं कि छात्रों के आवेदनों में इज़ाफा देखा जा रहा है. इन दोनों टेस्टों को अमेरिका और अन्य देशों में दाख़िले के लिए स्वीकार किया जाता है.
उन्होंने कहा कि जीआरई और टोफ़ल टेस्ट देने वाले छात्रों की संख्या से विदेशों में पढ़ने के इरादे का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
विंटर्स ने कहा, ‘आठ महीने पहले जब ये शुरू हुए, तब से टेस्ट लेने वाले 4,00,000 से अधिक उम्मीदवारों ने ‘टोफ़ल आईबीटी होम एडीशन’ (घर पर लिया जाने वाला टोफल), और घर पर जीआरई जनरल टेस्ट के लिए पंजीकरण कराया है, जिनमें से हज़ारों उम्मीदवार भारत से हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘ये एक पॉज़िटिव संकेत है कि छात्र विदेशों में पढ़ने जाने के लिए, सक्रिय क़दम उठा रहे हैं…’
उन्होंने ये भी कहा कि हालांकि महामारी ने, छात्रों के विदेश में पढ़ने की योजनाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं, लेकिन ‘सवाल हमेशा ये नहीं होता कि क्या उन्हें जाना चाहिए, बल्कि ये होता है कि उन्हें कहां, और कब जाना चाहिए’.
उन्होंने कहा कि महामारी ने हर जगह काफी असर डाला है, लेकिन पढ़ाई की हर मंज़िल और वहां मौजूद संस्थान, उससे अपने तरीक़े से निपट रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘भारतीय छात्र आज भी विदेशी शिक्षा बाज़ार का एक स्थिर हिस्सा हैं, और आगे भी रहेंगे- दुनिया भर के अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में भारत सबसे बड़े स्रोत देशों में से है, चीन के बाद दूसरा.
एक और इंडस्ट्री एक्सपर्ट भी सहमत थे, कि विदेशी यूनिवर्सिटियों के उम्मीदवारों की संख्या में, महामारी की वजह से कोई गिरावट नहीं आई है.
विदेशी यूनिवर्सिटियों के आवेदनों में छात्रों की सहायता करने वाले, एड टेक प्लेटफॉर्म ‘यॉकेट’ के सह-संस्थापक और उच्च शिक्षा एक्सपर्ट, सुमीत जैन ने कहा, ‘हमने महामारी की वजह से छात्रों की रूचि कम होते हुए नहीं देखी. हुआ ये है कि छात्रों ने अपने आवेदनों के लिए, तैयारी ज़रा देर से शुरू की है…आमतौर से 2021 के आवेदन के लिए, वो महीनों पहले तैयारी शुरू कर देते, लेकिन इस साल अनिश्चितता की वजह से, बहुत से छात्रों ने अपनी तैयारी सितंबर में शुरू की’.
‘देश अब धीरे-धीरे खुल रहे हैं’
दिप्रिंट से बात करने वाले कुछ छात्रों ने भी कहा, कि शुरू में वो इंतज़ार करो-और देखो-की नीति पर चल रहे थे, लेकिन फिर अंत में, उन्होंने अपने आवेदनों को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया.
दिल्ली स्थित एक छात्रा सना ज़हरा, जो अमेरिका में एक पब्लिक पॉलिसी प्रोग्राम के लिए आवेदन कर रही हैं, ने कहा, ‘मैं 2021 में यूनिवर्सिटी जाने का लक्ष्य बना रही हूं…अभी तक मैं अवेदन प्रक्रिया शुरू करने को लेकर उलझन में थी, लेकिन आख़िरकार मैंने कर लिया. मुल्क धीरे धीरे खुल रहे हैं, और सितंबर में जब तक मैं जाउंगी, तब तक चीज़ें बेहतर हो जानी चाहिएं…उम्मीद तो यही है.
आकाश द्विवेदी ने, जिनके पास तीन साल के काम का अनुभव है, एमबीए के लिए कनाडा की यूनिवर्सिटियों में आवेदन किया है, और 2021 में स्कूल ज्वॉयन करने के अपने लक्ष्य पर टिके हुए हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने लिए एक लक्ष्य तय किया है, और अगर मेरी पसंद की कोई यूनिवर्सिटी मुझे स्वीकार ले लेती है, तो मैं उसे ले लूंगा, चाहे मुझे किसी हाइब्रिड मॉडल से पढ़ना पड़े, या वर्चुल तरीक़े से’.
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