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Thursday, 25 April, 2024
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क्या कोडिंग बच्चों को अरबपति बना सकती है? सरकार ने कहा- एड-टेक प्लेटफॉर्म के विज्ञापन भ्रामक

राज्य सभा में दिए एक जवाब में शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि राज्य सरकारों को ‘भ्रामक अपेक्षाएं’ बढ़ाने वाले झूठे विज्ञापनों और अव्यावहारिक दावों के बारे में संबंधित पक्षों को शिक्षित करना चाहिए.

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नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को संसद को बताया कि एड-टेक प्लेटफॉर्म कोडिंग लेसन पर बच्चों से ‘अव्यावहारिक आशाएं’ रखने वाले विज्ञापनों के जरिये लोगों को ‘गुमराह’ कर रहे हैं.

हालांकि, मंत्रालय ने बच्चों को कोडिंग सिखाने के खिलाफ जैसा कुछ नहीं कहा लेकिन स्पष्ट किया कि ‘लोगों को झूठे विज्ञापनों और अव्यावहारिक दावों के प्रति सचेत किया जाना चाहिए.’

राज्य सभा में इस लिखित प्रश्न कि, ‘क्या कुछ खास एड-टेक कंपनियों ने छोटे बच्चों से अव्यावहारिक और झूठी अपेक्षाएं रखने के साथ कोडिंग सिखाने को लेकर अत्यधिक भ्रामक विज्ञापन दिखाना शुरू कर दिए हैं?’ मंत्रालय ने कहा कि कुछ कंपनियां अपने विज्ञापनों के जरिये ‘लोगों को गुमराह कर रही हैं?’

मंत्रालय ने कहा कि ये विज्ञापन छोटे बच्चों को अव्यावहारिक और झूठी उम्मीदें रखने के साथ कोडिंग सिखाने से संबंधित थे.

सरल भाषा में कहें तो कोडिंग वह भाषा है जिसमें कंप्यूटर दिशा-निर्देश समझते हैं और उसके अनुरूप काम करते हैं. एक विषय के रूप में कोडिंग ने 2020 में लॉकडाउन के दौरान बच्चों के बीच लोकप्रियता हासिल की जब स्कूल बंद थे और पढ़ाई ऑनलाइन होने लगी थी.

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कोडिंग सिखाने पर अभिभावकों को खासा खर्च करना पड़ता है, संबंधित प्लेटफॉर्म की फीस के हिसाब से यह खर्च 12 ग्रुप क्लासेज के लिए 4,500-6,000 रुपये के बीच और 12 इंडीविजुअल क्लासेज के लिए 7,000-10,000 रुपये के बीच होता है. आमतौर पर कक्षाएं एक या डेढ़ घंटे तक चलती हैं और सप्ताह में एक या दो बार होती हैं.

कोडिंग सिखाने वाले कुछ एड-टेक प्लेटफॉर्म दावा करते हैं कि बच्चे सात-आठ साल की उम्र में इसे सीखकर गेम डेवलपर्स और भविष्य के उद्यमी बन सकते हैं.

बच्चों को कोडिंग सिखाने वाली एक स्टार्टअप कंपनी व्हाइटहैट जूनियर ने नवंबर में अपनी वेबसाइट पर चलाए गए एक विज्ञापन में कहा था कि ‘टेक्नोलॉजी की दुनिया में अगला बिलियन डॉलर आइडिया देने की अपने बच्चे की यात्रा शुरू करें.’

भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के निर्देशों के बाद इस विज्ञापन को हटा दिया गया है.

ये ऐसे विज्ञापन हैं जिनकी आलोचना शुरू हुई और इसने सरकार को तुरंत हरकत में ला दिया.


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राज्य सरकारों से लोगों को शिक्षित करने को कहा

सरकार ने राज्य सभा में अपने जवाब में बताया कि उसने ऐसी कंपनियों के दावों को लेकर लोगों को शिक्षित करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं और विज्ञापनों पर नजर रखने वाले वाचडॉग एएससीआई ने कंपनियों से ऐसे विज्ञापन हटाने के लिए कहा है.

जवाब में यह भी कहा गया है, ‘इस तरह के भ्रामक और अव्यावहारिक विज्ञापनों ने भारतीय विज्ञापन मानक परिषद की निर्धारित सीमाओं को तोड़ा है, जिसने संबंधित कंपनियों से उन विज्ञापनों को हटाने को कहा जो स्व-नियामक निकाय के मानकों का उल्लंघन करते हैं. एएससीआई ने शैक्षणिक संस्थानों और पाठ्यक्रमों के लिए विज्ञापन संबंधी दिशानिर्देश जारी किए हैं.’

मंत्रालय ने राज्य सरकारों को ऐसे पाठ्यक्रमों की व्यावहारिकता और संभावित क्षमताओं को लेकर लोगों को शिक्षित करने का भी निर्देश दिया है.

हालांकि, एड-टेक उद्योग इस बात से सहमत नहीं है कि सभी प्लेटफॉर्म भ्रामक हैं और उनका सुझाव है कि माता-पिता को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि वे क्या चुन रहे हैं.

‘सभी एड-टेक कंपनियां बच्चों को उद्यमी बनाने का दावा नहीं करतीं’

व्हाइटहैट जूनियर के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम एएससीआई के कोड का सम्मान करते हैं और उसका पूरी तरह पालन कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘पिछले कई महीनों से हमारे अभियान हमारे छात्रों की रचनात्मकता को उजागर करने पर केंद्रित हैं. व्हाइटहैट जूनियर के मौजूदा लाइव कैंपेन यानी #RealKidsOfWHJr और #YoungAchieversOfWHJr बताते हैं कि कैसे छात्रों ने कोडिंग के माध्यम से वास्तविक एप्लिकेशन तैयार किए हैं.’

एक अन्य कोडिंग प्लेटफॉर्म टिंकर कोडर्स के सीनियर मैनेजर (ब्रांड एंड स्ट्रैटेजी) अक्षय अग्रवाल ने कहा, ‘यह साबित हो चुका है कि 21वीं सदी में लॉजिकल थिंकिंग. क्रिएटिविटी, एनालिटिकल थिंकिंग, कंप्यूटेशनल थिंकिंग, क्रिटिकल थिंकिंग जैसी तमाम स्किल को बढ़ाने के लिए कोडिंग बेहद उपयोगी है.’

उन्होंने कहा, ‘एड-टेक कंपनियों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कोडिंग के मूल विचारों को छात्रों और अभिभावकों के बीच आसानी से कैसे पहुंचाया जा सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘कोडिंग और संबंधित कोर्स को प्रोमोट करने वाले पूरे एजेंडे से भ्रम की स्थिति बनी, जिसने कोडिंग को लेकर छात्रों और अभिभावकों की सोच को काफी प्रभावित किया. कई अभिभावकों और छात्रों को ऐसा लगा कि कोडिंग ही भविष्य बनने जा रही है और हर बच्चे को कंप्यूटर विज्ञान पेशेवर बनने के लिए कोडिंग सीखनी चाहिए जबकि बात ऐसी नहीं है.’

अग्रवाल ने कहा, ‘विज्ञापनों, अभियानों में कोडिंग को छात्रों के व्यक्तित्व और सोच-समझ में समग्र विकास करने वाले टूल के तौर पर बताया जाना चाहिए. यह छात्रों के लिए वास्तविक जीवन की समस्याएं सुलझाने में बेहतर तरीके से मदद करने वाले होने चाहिए.’

एक एड-टेक प्लेटफॉर्म से जुड़े कोडिंग शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘सभी एड-टेक कंपनियां उद्यमी (बच्चों को) बनाने का दावा नहीं करती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘कुछ खास कंपनियां ही ऐसा कर रही हैं और उन्हें इसे वापस लेने को कहा गया है. कोडिंग किसी के बच्चे को भविष्य का अरबपति बनाने के बारे में नहीं है, यह सिर्फ एक बुनियादी कम्प्यूटेशनल नॉलेज है और विज्ञापन में इसे उसी तरह दिखाया जाना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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