scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमएजुकेशनIIM की स्वायत्तता कम करने वाला विधेयक लोकसभा में पेश- राष्ट्रपति को निदेशक की नियुक्ति, हटाने की शक्ति

IIM की स्वायत्तता कम करने वाला विधेयक लोकसभा में पेश- राष्ट्रपति को निदेशक की नियुक्ति, हटाने की शक्ति

विधेयक में मूल अधिनियम में नई धारा जोड़कर भारत के राष्ट्रपति को प्रत्येक आईआईएम का 'विजिटर' नियुक्त करने का प्रस्ताव है. इससे केंद्र सरकार को आईआईएम के बारे में निर्णय लेने में अधिकार मिल जाएगा.

Text Size:

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने शुक्रवार को आईआईएम (संशोधन) विधेयक, 2023 लोकसभा में पेश किया. सरकार के इस कदम को देश के प्रमुख बिजनेस स्कूलों में से एक भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) की स्वायत्तता को कम करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो भारत के राष्ट्रपति को न केवल प्रत्येक आईआईएम के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के अध्यक्ष नियुक्त करने का पावर मिल जाएगा, बल्कि इन संस्थानों के निदेशक को नियुक्त करने के साथ-साथ उन्हें हटाने का पावर मिल जाएगा.

शिक्षा मंत्रालय द्वारा लाया गया यह विधेयक आईआईएम एक्ट, 2017 की जगह पर काम करेगा, जिसे मोदी सरकार द्वारा ही लाया गया था और 2018 में लागू हुआ था. इसमें भारत के राष्ट्रपति को प्रत्येक आईआईएम के “विजिटर” के रूप में नियुक्त करने का प्रस्ताव था. 

बीओजी, आईआईएम का सबसे बड़ा कार्यकारी निकाय है. यह संस्थानों के कामकाज को कंट्रोल करता है. अध्यक्ष के अलावा इसमें केंद्र सरकार का एक नामित व्यक्ति और संबंधित राज्य सरकारों का एक नामित व्यक्ति शामिल होता है.

आईआईएम एक्ट, 2017 के तहत, बीओजी के पास उद्योग, शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, सार्वजनिक प्रशासन या किसी अन्य क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने की शक्ति थी. 

विधेयक विज़िटर को आईआईएम के निदेशक की नियुक्ति में अंतिम निर्णय लेने का पावर भी देता है. यह 2017 एक्ट की तुलना में एक बड़ा बदलाव है, जिसके तहत निदेशक, जो संस्थान के सीईओ भी होते हैं, को बीओजी द्वारा गठित चयन समिति द्वारा सुझाए गए नामों में से नियुक्त किया जाता है.

हालांकि, बीओजी के मुखिया की अध्यक्षता वाली चयन समिति अभी भी वहीं रहेगी. लेकिन संशोधित विधेयक में, निदेशक की नियुक्ति विजिटर की अनुमति मिलने के बाद बीओजी द्वारा की जाएगी.

एक अन्य बड़े बदलाव में, संशोधित विधेयक ने आईआईएम एक्ट की धारा 17 को हटा दिया है जो आवश्यकता पड़ने पर बोर्ड को आईआईएम के कामकाज में जांच शुरू करने की शक्ति देता था. यह जांच हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज को करनी होगी, जिसके आधार पर बोर्ड फैसला लेगा.

संशोधित विधेयक में, भारत के राष्ट्रपति को आईआईएम के काम की समीक्षा करने और बाद में आवश्यकता पड़ने पर कार्रवाई करने की शक्ति भी दी गई है. बिल में लिखा है, “विजिटर किसी भी संस्थान के काम और प्रगति की समीक्षा करने तथा उसके मामलों की जांच करने और उस पर रिपोर्ट करने के लिए एक या एक से अधिक व्यक्तियों को नियुक्त कर सकता है, या फिर इसके लिए आदेश दे सकता है.”

नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए एक आईआईएम के निदेशक ने कहा कि यह संशोधन मूल एक्ट की भावना के बिल्कुल उलट है.

उन्होंने कहा, “संशोधन निश्चित रूप से एक बड़ा बदलाव है, जिसने बोर्ड की जवाबदेही तय की गई है और उसे स्वायत्तता दी गई है. संशोधन बोर्ड को सरकार सहित हितधारकों के प्रति सीधे जवाबदेह बनाने के लिए है.”

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, यह बोर्ड को सीधी जवाबदेही लेने की बात तो करता है, लेकिन यह आईआईएम के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान नहीं करता है.”

शिक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र सरकार को पिछले कुछ समय से बीओजी की शक्तियों में कटौती करने की जरूरत महसूस हो रही है, जिसका आईआईएम विरोध कर रहे थे. एक सूत्र ने कहा, “शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में बैठकें की थी.”

हालांकि, नए संशोधित विधेयक आईआईएम की फीस पर चुप है. आईआईएम एक्ट 2017 के तहत आईआईएम अपनी फीस खुद तय कर सकते हैं. 

राष्ट्रपति ‘समन्वय मंच’ के अध्यक्ष की नियुक्ति करेंगे

संशोधित विधेयक राष्ट्रपति को समन्वय मंच का अध्यक्ष नियुक्त करने का भी अधिकार देता है. यह पद उद्योग जगत के किसी प्रतिष्ठित हस्ती को दिया जाएगा. 

आईआईएम एक्ट, 2017 ने एक समन्वय मंच की स्थापना को अनिवार्य कर दिया जिसमें प्रत्येक आईआईएम के सदस्यों को उपस्थित होना था. इसका कार्य सभी संस्थानों के प्रदर्शन को बढ़ाने और संस्थानों के सामान्य हित के मामलों पर विचार-विमर्श करने के उद्देश्य से अनुभवों, विचारों और चिंताओं को साझा करने की सुविधा प्रदान करना है.

फोरम को साल में कम से कम एक बार बैठक करनी होती है और अपने कार्यों पर एक रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपनी होती है. इसमें सभी आईआईएम के निदेशक और उच्च शिक्षा सचिव सहित मानव संसाधन विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं.


यह भी पढ़ें: 2022-23 में 19 वेटलैंड्स घोषित हुए रामसर साइट, मोदी सरकार ने इनके रखरखाव पर संसद में क्या कहा


‘आईआईएम में स्वायत्तता हमेशा दोधारी तलवार रही है’

दिप्रिंट से बात करते हुए, आईआईएम-बैंगलोर के प्रोफेसर दीपक मालघन ने कहा, “आईआईएम में स्वायत्तता हमेशा दोधारी तलवार रही है.”

उन्होंने 2017 के प्रमुख एक्ट के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा, “2017 एक्ट ने अनिवार्य रूप से स्व-स्थायी बोर्ड बनाए. आईआईएम सार्वजनिक संस्थान हैं, और स्व-स्थायी बोर्डों ने किसी भी सार्वजनिक संस्थान के अंतर्गत आने वाले सामाजिक अनुबंध को कमजोर करने में तेजी ला दी है.”

उन्होंने आगे कहा कि नए संशोधन केवल वैचारिक निष्ठा को सुरक्षित करने के उपकरण बन सकते हैं. उन्होंन बताया, “मुझे चिंता है कि नए संशोधन वैचारिक निष्ठा हासिल करने के बारे में अधिक हैं. वैचारिक निष्ठा की ऐसी मांग मौजूदा व्यवस्था से पहले की है. हालांकि, वर्तमान सरकार अपने पूर्ववर्तियों से इस मायने में भिन्न है कि वैचारिक निष्ठा संस्थागत लीडर्स की नियुक्ति जैसी चीजों में किसी भी वास्तविक शैक्षणिक विचार को मात देती है.”

मालघन ने आगे कहा कि इस संशोधन से पहले भी, आईआईएम में पिछली कुछ निदेशक की नियुक्तियों को अगर देखा जाए तो साफ दिखता है कि “हिंदुत्व एजेंडे के प्रति वैचारिक को आगे बढ़ाया गया है”.

उन्होंने आगे कहा: “नाममात्र के स्वतंत्र बोर्ड तीन कारणों से इस वैचारिक हमले का सामना करने में असमर्थ रहे हैं. सबसे पहले, इन बोर्डों का नेतृत्व इंडस्ट्री के लीडर्स द्वारा किया जाता है जिन्हें सार्वजनिक विश्वविद्यालय के मिशन की बहुत कम समझ होती है. दूसरा, पिछले दशक में भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र का पतन शर्मनाक रहा है. ‘जब मुझे झुकने के लिए कहा जाएगा तो मैं रेंगूंगा’ समर्पण इस बात को दर्शाता है कि कैसे आईआईएम बोर्ड सरकारी धौंस के सामने खड़े होने में असमर्थ रहे हैं.”

मालघन ने कहा, तीसरा कारक यह है कि आईआईएम संकाय सदस्यों ने “स्वयं-प्रशंसा के लिए स्वायत्तता का उपयोग किया है जो सार्वजनिक जांच में खड़ा नहीं होगा”.

यूके में जन्मे और सार्वजनिक नीति तथा पारिस्थितिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर ने कहा, “यह सार्वजनिक संस्थानों के रूप में आईआईएम की अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करने की क्षमता से समझौता करता है.”

मुंबई में नया आईआईएम

संशोधित विधेयक में राष्ट्रीय औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान (एनआईआईई) मुंबई का नाम बदलकर ‘भारतीय प्रबंधन संस्थान, मुंबई’ कर दिया गया है. एनआईआईई को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए सहायता अनुदान के रूप में 65 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. विधेयक में कहा गया है कि आईआईएम, मुंबई बनने के बाद इसे एक वर्ष की अवधि के लिए 80 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता प्रदान की जाएगी.

देश में फिलहाल 20 आईआईएम हैं, जिनमें से सात पहली पीढ़ी के आईआईएम हैं. इनमें अहमदाबाद, बेंगलुरु, कलकत्ता, लखनऊ, इंदौर, कोझिकोड, शिलांग शामिल हैं.

दूसरी पीढ़ी के IIM में रोहतक, रायपुर, रांची, तिरुचिपल्ली, काशीपुर और उदयपुर शामिल हैं.

अमृतसर, बोधगया, जम्मू, नागपुर, संबलपुर, सिरमौर और विशाखापत्तनम तीसरी पीढ़ी के आईआईएम हैं.

इस साल, शिक्षा मंत्रालय ने आईआईएम की फंडिंग को पिछले वित्तीय वर्ष के संशोधित अनुमान (आरई) 608.23 करोड़ रुपये से आधा घटाकर 300 करोड़ रुपये कर दिया, जो 50.67 प्रतिशत की गिरावट है. हालांकि इसका पहली और दूसरी पीढ़ी के आईआईएम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन पिछले 10 वर्षों में स्थापित तीसरी पीढ़ी के आईआईएम पर इसका प्रभाव पड़ने की संभावना है.

मंत्रालय ने इससे पहले, 2018 में, दूसरी पीढ़ी के आईआईटी की फंडिंग रोक दी थी, जो 2008-09 में यूपीए सरकार के तहत गठित की गई थी. प्रत्येक आईआईएम को अपने स्थायी परिसरों के निर्माण के लिए 333 करोड़ रुपये आवंटित करने के बाद, सरकार अब चाहती है कि वे किसी भी अतिरिक्त धनराशि को अपने संसाधनों या ऋण के माध्यम से पूरा करें.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: सफाई कर्मचारी से लेकर किसानों और घर खरीदारों तक, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बना विरोध प्रदर्शन का नया केंद्र


 

share & View comments