नई दिल्ली: शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को संसद को बताया कि भगवद् गीता को भारतीय शिक्षा प्रणाली में स्कूलों-कॉलेजों के पाठ्यक्रम से लेकर तकनीकी शिक्षण संस्थानों तक विभिन्न स्तरों पर सिलेबस का हिस्सा बनाया गया है.
वह स्कूलों- कॉलेजों के पाठ्यक्रम में हिंदू धर्मग्रंथों को शामिल करने की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे में लोकसभा में पूछे गए एक लिखित प्रश्न का उत्तर दे रहे थे.
मंत्री ने जवाब में कहा, ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की तरफ से सूचित किया गया है कि ‘श्रीमद्भागवत गीता’ से संबंधित सामग्री पहले से ही कक्षा 11 और 12 की संस्कृत की पाठ्यपुस्तकों में शामिल है.’
इसमें आगे बताया गया है, ‘सामाजिक विज्ञान के तहत कक्षा छह के लिए एनसीईआरटी की इतिहास की पाठ्यपुस्तक ‘हमारा अतीत-1’ में भक्ति आंदोलन के संबंध में ‘व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री’ नाम के चैप्टर में श्रीमद्भागवत गीता का संदर्भ दिया गया है.’
प्रधान ने बताया कि सातवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक ‘हमारा अतीत-2’ में ‘ईश्वर को पाने का भक्ति मार्ग’ संबंधी पाठ में इस धर्मग्रंथ के अंश को भी शामिल किया गया है.
मंत्री ने आगे कहा कि जब बात उच्च शिक्षा की आती है तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने ‘योग’ विषय पर राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) में गीता के कुछ अंशों को शामिल किया है. नेट देश में यूनिवर्सिटी के शिक्षकों की योग्यता परखने की एक परीक्षा है.
प्रधान ने लोकसभा को बताया, ‘विश्वविद्यालयों का निर्माण/गठन संबंधित केंद्रीय/प्रांतीय/राज्य अधिनियम के तहत किया जाता है और ये स्वायत्त संस्थान होते हैं, जो अपने अधिनियमों, कानूनों और उसके तहत बनाए गए अध्यादेशों/विनियमों के आधार पर चलते हैं. इसलिए उन्हें किसी भी शिक्षण कार्यक्रम के लिए अपने सांविधिक निकायों की मंजूरी के आधार पर पाठ्यक्रम तय करने की स्वायत्तता हासिल है.’
उन्होंने संसद को बताया कि इसके अलावा तकनीकी शिक्षा नियामक—अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई)—ने 2018 में स्नातक इंजीनियरिंग के मॉडल पाठ्यक्रम में ‘भारत की पारंपरिक ज्ञान पद्धति’ नाम का एक कोर्स शुरू किया था जिसमें गीता के कुछ अंश भी शामिल किए गए हैं.
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हरियाणा, दिल्ली इसमें आगे रहे
‘भारतीय ज्ञान पद्धति’ पर आधारित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में कहा गया है कि ‘पूरे पाठ्यक्रम और शिक्षाशास्त्र को बुनियादी स्तर पर भारतीय और स्थानीय परिप्रेक्ष्य में संस्कृति, परंपरा, विरासत, रीति-रिवाज, भाषा, दर्शन, भूगोल, प्राचीन-समकालीन ज्ञान, सामाजिक और वैज्ञानिक जरूरतें, सीखने के प्राचीन और पारंपरिक तरीके आदि के संदर्भ से परिपूर्ण करने के लिए फिर से डिजाइन किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शिक्षण सामग्री हमारे छात्रों के लिए अधिक से अधिक सीधा जुड़ाव रखने वाली प्रासंगिक, दिलचस्प और प्रभावी हो.’
इसी बारे में एक संसदीय समिति ने कहा कि प्राचीन वेदों और शास्त्रों के ज्ञान को इतिहास की किताबों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
कुछ राज्यों ने खुद ही अपने स्कूल पाठ्यक्रमों में हिंदू धर्मग्रंथों को शामिल करने का फैसला किया है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पिछले हफ्ते कहा था कि राज्य के स्कूलों में गीता पढ़ाई जाएगी.
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने भी पिछले हफ्ते इसी संबंध में एक प्रस्ताव रखा था.
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने सितंबर में मांग की थी कि इस धार्मिक ग्रंथ को भारतीय शिक्षा प्रणाली का ‘अनिवार्य’ हिस्सा बनाया जाए और कहा कि इसे सभी को पढ़ाया जाना चाहिए.
विहिप के राष्ट्रीय सचिव आचार्य राधे कृष्ण मनोदी ने एक बयान में कहा था कि अल्पसंख्यक समुदायों के शिक्षकों को भी धर्मग्रंथ पढ़ाया जाना चाहिए और इसे शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने भी गीता को पढ़ाए जाने का समर्थन किया. इस महीने की शुरू में हरियाणा की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की तरफ से आयोजित ‘गीता संगोष्ठी’ को संबोधित करते हुए बिड़ला ने कहा था, ‘गीता का संबंध किसी भाषा विशेष, क्षेत्र या धर्म से नहीं है बल्कि यह पूरी मानवता से जुड़ी है.’
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