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नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के आर्यभट्टा कॉलेज के एकेडमिक कॉरिडोर्स में एक अनोखा प्रोजेक्ट चल रहा है. यूनिवर्सिटी के एकेडमिशियंस का एक ग्रुप प्राचीन भारतीय विद्वानों के योगदान को दोबारा जीवित करने और नए ढंग से समझने पर काम कर रहे हैं, जो मैथ्स और एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में सबसे मशहूर रहे हैं.
साउथ कैंपस के इस कॉलेज में विद्वान प्राचीन भारतीय गणित के बड़े ग्रंथों का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि यह समझा जा सके कि गणित की अवधारणाएं कहां से शुरू हुईं. इनमें शामिल हैं—ब्रहमगुप्त (628 ई.) का ब्राह्मस्फुटसिद्धांत, शुल्बसूत्र (8वीं–2वीं सदी ई.पू.) जिसमें यज्ञ वेदी बनाने की ज्यामिति है, आर्यभट का आर्यभटीय और ज्येष्ठदेव (1530 ई.) का गणितयुक्तिभाषा, जो केरल स्कूल ऑफ़ गणित का आधारभूत ग्रंथ माना जाता है.
आर्यभट्ट कॉलेज में चल रही यह कवायद, और देश के अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में भी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) कार्यक्रम का हिस्सा है, जो शिक्षा को भारतीय मूल्यों पर आधारित करने पर जोर देता है.
नीति ने गणित, खगोलशास्त्र, दर्शनशास्त्र, योग, वास्तुकला, चिकित्सा, कृषि, इंजीनियरिंग, भाषा-विज्ञान, साहित्य, खेल-कूद आदि क्षेत्रों में भारत के पारंपरिक ज्ञान को “सही और वैज्ञानिक तरीके से” पाठ्यक्रम में शामिल करने की सिफारिश की.
अब तक 50 से अधिक सरकारी वित्तपोषित IKS केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं.
प्राचीन गणित के बाद, आर्यभट्ट कॉलेज का IKS केंद्र भारतीय खगोलशास्त्र पर अपना अगला बड़ा प्रोजेक्ट शुरू करने वाला है. इसी तरह के प्रयास 49 अन्य सरकारी संस्थानों और शोध केंद्रों, जिनमें कई IIT भी शामिल हैं, में जारी हैं.
जैसे उदाहरण के तौर पर, IIT मंडी का IKS केंद्र पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पर काम कर रहा है. IIT तिरुपति का केंद्र कलमकारी कला, प्राकृतिक खेती और पुराने जमाने की खाद्य संरक्षण तकनीकों पर काम कर रहा है. वहीं IIT मद्रास का केंद्र भारत की वैज्ञानिक विरासत पर शोध कर रहा है.
2023 में स्थापित इस केंद्र का तीन गुना उद्देश्य है—IKS पर शैक्षणिक पाठ्यक्रम विकसित करना, उन्हें ऑनलाइन व्याख्यान के रूप में रिकॉर्ड और प्रसारित करना, और शिक्षकों के लिए फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम (FDP) आयोजित करना.
उन्होंने कहा, “हमारे प्राचीन ग्रंथों में वैज्ञानिक और गणितीय ज्ञान का विशाल खजाना है, जिसे या तो नज़रअंदाज़ किया गया है या पश्चिम के नाम कर दिया गया. उदाहरण के लिए, जिसे दुनिया ‘पाइथागोरस प्रमेय’ कहती है, वह हज़ार साल पहले बौधायन शुल्ब सूत्र में दर्ज है. दुर्भाग्य से यह सिर्फ एक उदाहरण है जहां भारतीय योगदान की पहचान नहीं हुई या गलत श्रेय दिया गया.”
केंद्र के व्यापक मिशन पर जगवानी ने कहा, “वेदों, उपवेदों और अन्य प्राचीन भारतीय साहित्य में कई उन्नत विचार हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं. इस केंद्र के माध्यम से हम उनका अकादमिक और वैज्ञानिक अध्ययन करना चाहते हैं ताकि दुनिया भर में भारत के योगदान को सही तरीके से स्वीकार किया जा सके.”
पिछले पांच वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार ने IKS को मुख्यधारा में लाने के लिए अहम कदम उठाए हैं. 2020 में इसके लिए एक अलग प्रभाग स्थापित किया गया, उच्च शिक्षा संस्थानों को IKS-आधारित पाठ्यक्रम विकसित करने के दिशानिर्देश दिए गए. नए स्कूल पाठ्यपुस्तकों में भी प्राचीन भारतीय ज्ञान के तत्व शामिल किए गए.
इस साल IKS के बजट में भारी 400 प्रतिशत की वृद्धि की गई है—2024–25 के 10 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2025–26 में 50 करोड़ रुपये कर दिया गया. सरकार ने इस साल के बजट में ज्ञान साझा करने के लिए एक नेशनल रिपॉज़िटरी की स्थापना की भी घोषणा की.
इसके अलावा, शिक्षा मंत्रालय ने पिछले साल IKS प्रभाग के लिए पांच साल में 405 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया.
IKS के राष्ट्रीय समन्वयक गांती एस. मूर्ति के अनुसार, पिछले पांच साल में कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि इसके प्रति अकादमिक गंभीरता बढ़ी है. उन्होंने कहा, “पहली बात, अब देशभर में IKS के बारे में व्यापक जागरूकता है. दूसरी बात, बातचीत का स्वर बदल गया है—सतही या हाशिए पर रहने वाली बहसों से गंभीर शैक्षणिक चर्चाओं की ओर. यह बहुत उत्साहजनक है.”
हालांकि, इस पहल को लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा है. पिछले साल ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क (AIPSN), जो वैज्ञानिकों का एक समूह है, ने एक बयान जारी कर उच्च शिक्षा में IKS के दुरुपयोग का आरोप लगाया और इन पाठ्यक्रमों में “स्यूडो साइंटिफिक क्लैम” (छद्मवैज्ञानिक दावों) को शामिल करने के खिलाफ चेतावनी दी.
स्वदेशी ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए अलग विभाग
एनईपी 2020 के लॉन्च के तीन महीने बाद, शिक्षा मंत्रालय ने आधुनिक संदर्भ में भारत की प्राचीन बौद्धिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) प्रभाग की स्थापना की. नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) में यह प्रभाग स्थापित किया गया था.
इसका मकसद था कि स्वदेशी ज्ञान पर आधारित अलग-अलग विषयों को जोड़कर रिसर्च को बढ़ावा दिया जाए.
यह विभाग लगातार अपना दायरा बढ़ा रहा है—जैसे रिसर्च प्रोग्राम को सपोर्ट करना, खास केंद्र खोलना, इंटर्नशिप शुरू करना और नए एकेडमिक कोर्स तैयार करना.
पिछले पांच वर्षों में, इस प्रभाग ने लगभग 100 प्रोजेक्ट्स को फंड किया है, प्रत्येक को अधिकतम 20 लाख रुपये की ग्रांट दी गई. इसके अलावा, यह 27 शोध केंद्रों, 17 शिक्षक प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम विकास केंद्रों और सात भाषा केंद्रों का समर्थन करता है. प्रत्येक केंद्र को 18 लाख रुपये से 40 लाख रुपये तक मिले. अब तक 6,800 से अधिक छात्र पेड इंटर्नशिप में शामिल हुए हैं.
इन 100 से ज्यादा सरकारी फंड वाले प्रोजेक्ट्स में ऐसे टॉपिक शामिल हैं—सात्त्विक खाना आंतों की सेहत पर कैसे असर डालता है, प्राण-आधारित वैदिक तरीके से आत्महत्या की प्रवृत्ति कैसे कम हो सकती है, भारतीय शास्त्रीय रागों का दिमागी कामकाज पर क्या असर होता है, और चरक संहिता के कृमिघ्न गण से गायों में मैस्टाइटिस के इलाज की कितनी असरदार तरीके से जांच हो सकती है.
मूर्ति ने कहा कि वक्त के साथ IKS के तहत चल रही भारतीय ज्ञान संवर्धन योजना (कॉम्पिटिटिव ग्रांट स्कीम) में आने वाले रिसर्च प्रपोज़ल्स की क्वालिटी बेहतर हुई है और अलग-अलग विषयों के विद्वानों की रुचि भी बढ़ी है.
प्रभाग के विभिन्न केंद्रों के जरिए फिलहाल लगभग 40 ऑनलाइन और हाइब्रिड कोर्स ऑफर किए जा रहे हैं. इनमें विषय हैं—आयुर्वेदिक ड्रग डिज़ाइन, फूड साइंस, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण, भगवद गीता, और योगसूत्र. ये कोर्स छात्र और शिक्षक दोनों कर सकते हैं.
मूर्ति ने यह भी कहा कि बढ़ती संख्या में संस्थान अब IKS कोर्स खुद से ऑफर कर रहे हैं और सेमिनार-लेक्चर आयोजित कर रहे हैं, बिना प्रभाग पर निर्भर हुए.
IKS को शिक्षा में शामिल करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने 2023 में दिशा-निर्देश जारी किए थे. इसके बाद कई संस्थानों ने इससे जुड़े कोर्स शुरू किए, जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय भी शामिल है.
पिछले साल IIT मंडी को आलोचना झेलनी पड़ी जब उसने पहले वर्ष के इंजीनियरिंग छात्रों के लिए इंट्रोडक्शन टू कॉन्शियसनेस एंड वेलबीइंग नाम का अनिवार्य IKS कोर्स शुरू किया, जिसमें “पुनर्जन्म” जैसे विषय शामिल थे.
प्रभाग जल्द ही 17 माइनर कोर्स भी शुरू करने वाला है. मूर्ति ने कहा, “IKS में पूरा अंडरग्रेजुएट डिग्री प्रोग्राम देना सही नहीं है. इसलिए हम माइनर कोर्स तैयार कर रहे हैं जिन्हें छात्र अपनी मुख्य पढ़ाई के साथ कर सकते हैं. जैसे कि अर्थशास्त्र पढ़ने वाला छात्र ‘भारतीय अर्थशास्त्र’ में माइनर कर सकेगा.”
भारत के प्राचीन ज्ञान पर शोध करने वाले केंद्र
27 शोध केंद्रों में से एक, IIT BHU वाराणसी का IKS केंद्र पारंपरिक ज्ञान को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसे भारत सरकार से 40 लाख रुपये का फंड मिला है.
प्रोफेसर वी. रमणाथन, प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर ने बताया कि इसके प्रमुख प्रोजेक्ट्स में लिक्विड क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री (LCMS) तकनीक से हर्बल मोनोग्राफ तैयार करना शामिल है ताकि आयुर्वेदिक प्रैक्टिस को आधुनिक विश्लेषणात्मक तकनीकों से समझाया जा सके.
केमिस्ट्री और पुरातत्व के क्षेत्र में, केंद्र ने भारतीय रॉक आर्ट पर दो किताबें पब्लिश की हैं. इसमें रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी और एक्स-रे फ्लोरेसेंस (XRF) जैसी एडवांस टेक्निक का इस्तेमाल कर कल्चर से जुड़ी धरोहर को सुरक्षित रखा गया है.
मैथ्स और एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में, केंद्र ने मकरंदोपपत्ति नाम की पुरानी पांडुलिपि का खास एडिशन पब्लिश किया है. फिलॉसफी में, इसने ऐसे रिसर्च पेपर्स पब्लिश किए हैं जिनमें यूनानी Ship of Theseus वाले आइडिया और उसके भारतीय समानांतर पर बात की गई है.
प्रोफेसर रमणाथन ने कहा, “हमारा केंद्र कड़े शोध पर जोर देता है. बिना प्रमाण के ऊंचे दावे करना आसान है. हमारा लक्ष्य है कि भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों को शोध और प्रमाणित डाटा के साथ प्रस्तुत किया जाए.”
IIT कानपुर का IKS केंद्र स्कूल लेवल के लिए IKS बेस्ड करिकुलम कंटेंट तैयार कर रहा है. प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर अर्नब भट्टाचार्य ने कहा, “हम स्कूल शिक्षा को टारगेट कर रहे हैं क्योंकि नई किताबों में पहले से ही IKS कंटेंट शामिल है. हमने काफी कंटेंट इकट्ठा किया है और अब स्लाइड्स, उदाहरण और प्रैक्टिस प्रश्न जैसे संसाधन विकसित कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि स्कूल, कॉलेज या ग्रेजुएट स्तर पर IKS पढ़ाई के लिए मजबूत कंटेंट तैयार हो—किताबें, लेक्चर स्लाइड्स और टीचिंग एड्स. ताकि कोई भी शिक्षक इन्हें आसानी से इस्तेमाल कर सके. हमें औपनिवेशिक शिक्षा ढांचे से आगे बढ़ना होगा और IKS इसके लिए आदर्श आधार देता है.”
इसी बीच, 2022 में स्थापित IIT मद्रास का IKS केंद्र चार क्षेत्रों पर केंद्रित है—भारतीय वैज्ञानिक धरोहर पर शोध, IKS संबंधित कोर्स डिज़ाइन, सोशल मीडिया के जरिए जनसंपर्क और भावी विद्वानों को प्रशिक्षण. यह केंद्र फिलहाल नौ कोर्स ऑफर करता है, जिनमें विषय हैं—भारत में मैथ्स, भारत में एस्ट्रोनॉमी, इंडियन कल्चरल स्टडीज़ और ट्रेडिशनल अप्रोच से टेक्सटाइल्स.
स्कूल की किताबों में अधिक भारतीय सामग्री
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) — जो भारत के स्कूलों में सिलेबस, किताबें और पढ़ाने के तरीके तय करती है — 2023 में नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत जारी हुई. इसमें कहा गया है कि अलग-अलग विषयों में भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) के तत्व जोड़े जाएं, ताकि स्टूडेंट्स में गर्व की भावना आए और पढ़ाई भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत से जुड़कर और समृद्ध बने.
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने उसी साल 19 सदस्यीय पैनल बनाया ताकि नई किताबों में IKS को शामिल किया जा सके.
पिछले साल और इस साल जारी NCERT की नई किताबों में पहले से कहीं ज्यादा प्राचीन भारतीय उपलब्धियों और व्यक्तित्वों का जिक्र किया गया है. संस्कृत शब्दों का भी उल्लेख बढ़ा है. उदाहरण के लिए, कक्षा 6 और 7 की अंग्रेजी की किताबों में भारतीय लेखकों की ज्यादा कविताएँ और गद्य शामिल हैं, साथ ही भारतीय संस्कृति और विरासत के संदर्भ भी बढ़ाए गए हैं.
IIT गांधीनगर के विजिटिंग प्रोफेसर और NCERT की नई सोशल साइंस की किताबें बनाने वाली समिति के अध्यक्ष मिशेल दानीनो ने कहा कि भारत का पारंपरिक ज्ञान लंबे समय से स्कूल के पाठ्यक्रम में कम दिखाया गया है, जबकि 1986 की NEP और 2005 की NCF में इसकी सिफारिश की गई थी.
उन्होंने कहा, “इस वजह से कई पीढ़ियों के युवाओं को भारत की उपलब्धियों के बारे में बहुत कम जानकारी रही. इंटरनेट और सोशल मीडिया के साथ, यह खाली जगह अजीब और भ्रमित करने वाले विचारों से भर गई. लोग जल्दी गर्व या सनसनी की तलाश करते हैं, लेकिन असली ज्ञान की ठोस नींव के बिना.”
जब पूछा गया कि यह बदलाव लंबे समय में भारत की शिक्षा प्रणाली को कैसे मदद करेगा, तो दानीनो ने कहा कि यह अकेले शिक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए काफी नहीं है, क्योंकि इसमें गहरे ढांचे और शिक्षण से जुड़े दोष हैं. “लेकिन यह छात्रों की रुचि जगाएगा, उनके ज्ञान को समृद्ध करेगा और बिना किसी उपदेश के उन्हें भारतीय लोकाचार के श्रेष्ठ मूल्यों से संवेदनशील बनाएगा.”
नई किताबों में अब भारत को “भारत” भी कहा जाने लगा है. उदाहरण के लिए, कक्षा 6 की सामाजिक विज्ञान की किताब बताती है कि “इंडिया, दैट इज भारत” के इतिहास में कई नाम रहे—जैसे ‘जम्बूद्वीप’ और ‘भारत’. इसमें कहा गया है कि विदेशी यात्री या आक्रमणकारी ज्यादातर नाम सिंधु नदी से जोड़कर इस्तेमाल करते थे, जैसे ‘हिंदू’, ‘इंडोई’ और आखिरकार ‘इंडिया’.
किताब में वैदिक विचारधाराओं और उपनिषदों की कहानियों पर भी हिस्से शामिल हैं.
हालांकि, कुछ स्कूल प्रिंसिपलों का मानना है कि विज्ञान और गणित की किताबों में संस्कृत शब्द जोड़ने से छात्रों को उलझन होती है. दिल्ली के एक CBSE स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा, “छात्र और शिक्षक जानते हैं कि ये परीक्षा में नहीं आएंगे, इसलिए वे इन्हें गंभीरता से नहीं लेते. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान को दिखाना अच्छा कदम है.”
इरादों पर चिंता
कुछ स्कॉलर्स ने शिक्षा में IKS पर बढ़ते जोर को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि यह “शैक्षणिक आधार” पर नहीं, बल्कि “वैचारिक एजेंडे” से प्रेरित है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस की एसोसिएट प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा कि यूनिवर्सिटी ने वैल्यू-ऐडेड कोर्स के नाम पर वैदिक गणित, द गीता फॉर होलिस्टिक लाइफ, लीडरशिप एक्सीलेंस थ्रू द गीता, द गीता फॉर अ सस्टेनेबल यूनिवर्स जैसे कोर्स शुरू किए हैं.
उन्होंने कहा, “IKS सिर्फ आरएसएस का एजेंडा है. इसके तहत जो कोर्स कराए जा रहे हैं, वे एक ही विचारधारा और खास धार्मिक मान्यताओं को बढ़ावा देते हैं. हमारा सिलेबस पहले प्रगतिशील था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह काफी बदल गया है.”
ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के अध्यक्ष सत्यजीत राठ ने कहा कि भारत के प्राचीन योगदानों को पढ़ाना गलत नहीं है, समस्या इस बात में है कि इसे किस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “भारत की ऐतिहासिक उपलब्धियों को पढ़ाना गलत नहीं है. दिक्कत तब है जब इसमें वैचारिक महिमामंडन जोड़ दिया जाता है. असली चिंता यही है कि मकसद क्या है.”
उन्होंने कहा, “यह सोचना कि ‘हमारे पूर्वज सब कुछ जानते थे’, गलत है. किसी भी सभ्यता के पूर्वज आज से ज्यादा नहीं जानते थे. हमें हमेशा पढ़ाया गया है कि शून्य भारत की खोज थी, और आर्यभट, ब्रह्मगुप्त या सिंधु घाटी सभ्यता ने बड़ी प्रगति की थी. लेकिन हमें यह नहीं पढ़ाया गया—और नहीं पढ़ाना चाहिए—कि हमारे पूर्वज सब से श्रेष्ठ थे. इस पहल का उद्देश्य यह नहीं होना चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा, “इस सबको सख्त और आलोचनात्मक सोच के साथ देखना चाहिए. अभी जो योगदान दिखाए जा रहे हैं, वे ज्यादातर वैदिक और पौराणिक हैं, जो केवल ब्राह्मणिक परंपरा को दर्शाते हैं. क्या इसका मतलब है कि और किसी ने योगदान नहीं दिया?”
इस बीच, IKS के राष्ट्रीय समन्वयक मूर्ति ने कहा कि यह प्रभाग अलग-अलग पक्षों से बातचीत कर रहा है ताकि पहल को लेकर गलतफहमियां दूर की जा सकें.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “यहां दुश्मनी के लिए कोई जगह नहीं है. ज्यादातर लोग IKS से वैचारिक तौर पर नहीं, बल्कि सामान्य रूप से जुड़े हैं. अब लोग समझने लगे हैं कि हम यह नहीं कह रहे कि जैसे 2,000 साल पहले रहते थे वैसे ही जियो. हम बस इतना कह रहे हैं—2,000 साल पहले का कीमती ज्ञान मत छोड़ो. धीरे-धीरे लोग इसे समझने लगे हैं.”
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