नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज यानी एआईयू में वैधानिक उपनियमों, लोकतांत्रिक शासन के सिद्धांतों और संस्थागत ईमानदारी के गंभीर और व्यवस्थित उल्लंघन का आरोप लगाया गया है. एआईयू देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों का समन्वय करने वाली एक प्रमुख राष्ट्रीय संस्था है.
संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि एआईयू के पूर्व अध्यक्ष ने प्रशासनिक निर्देशों का दुरुपयोग कर और अनिवार्य मंजूरी प्रक्रिया को दरकिनार कर तय कार्यकाल से आगे अवैध रूप से पद पर बने रहे.
यह जनहित याचिका आरटीआई कार्यकर्ता और व्हिसल ब्लोअर डॉ. जयपाल ने दायर की है. याचिका में उन्होंने कहा है कि इस मामले में उनका कोई व्यक्तिगत या आर्थिक हित नहीं है. याचिका के अनुसार, कथित अवैधता की शुरुआत तब हुई जब एआईयू के पूर्व अध्यक्ष ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप ढांचे में बदलाव का प्रस्ताव रखा, लेकिन इसके लिए न तो जनरल काउंसिल और न ही वार्षिक आम बैठक से मंजूरी ली गई, जबकि एआईयू के उपनियमों के तहत यही निकाय ऐसे फैसले लेने के लिए अधिकृत हैं.
याचिका में आगे कहा गया है कि इसी कथित अनधिकृत प्रस्ताव के आधार पर शिक्षा मंत्रालय ने 23 जून 2025 को एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया और छह महीने तक या समिति की सिफारिश आने तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया.
याचिका में दावा किया गया है कि यह यथास्थिति आदेश, जो संस्थागत स्थिरता के लिए था, पूर्व अध्यक्ष ने अपने कार्यकाल को अवैध रूप से बढ़ाने के औचित्य के रूप में इस्तेमाल किया.
जनहित याचिका के अनुसार, एआईयू उपनियमों की धारा 21 में अध्यक्ष के कार्यकाल की स्पष्ट सीमा तय है. 14 अप्रैल 2024 को गवर्निंग काउंसिल की बैठक में सर्वसम्मति से तय हुआ था कि 30 जून 2024 को अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 1 जुलाई 2024 से वरिष्ठतम कुलपति एक वर्ष के लिए अध्यक्ष का कार्यभार संभालेंगे.
इसके बावजूद, पूर्व अध्यक्ष पद पर बने रहे और बाद में उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की लिखित असहमति के बावजूद गवर्निंग काउंसिल से एक प्रस्ताव पारित कराकर अपने कार्यकाल को वैध ठहराने की कोशिश की गई.
याचिका में इस कथित विस्तार को स्पष्ट रूप से अवैध और सत्ता के दुरुपयोग वाला कदम बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि कार्यकाल बढ़ाने के लिए जनरल काउंसिल या आम सभा की स्पष्ट मंजूरी जरूरी थी, जो कभी ली ही नहीं गई.
याचिकाकर्ता का कहना है कि इससे एआईयू में लोकतांत्रिक व्यवस्था टूट गई और विरोध में उपाध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया, जिससे वह पद खाली हो गया.
डॉ. जयपाल ने कहा कि हाईकोर्ट जाने से पहले उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय, सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार, एआईयू जनरल काउंसिल और अन्य सदस्यों को लिखित शिकायतें दीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद अदालत का दरवाजा खटखटाना ही एकमात्र विकल्प बचा.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया है कि जब पदाधिकारी कानून के खिलाफ अपने पद पर बने रहते हैं, तो अदालतों का हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है.
याचिका में एआईयू की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यह संस्था देश की एक हजार से अधिक यूनिवर्सिटीज और अंतरराष्ट्रीय सहयोगी सदस्यों का समन्वय करती है. याचिका में पूर्व अध्यक्ष के कथित अवैध कार्यकाल को रद्द करने, उपनियमों का सख्ती से पालन कराने, लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल करने और अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने के निर्देश मांगे गए हैं.
यह जनहित याचिका एडवोकेट चिरंतन साहा के माध्यम से दायर की गई है और दिल्ली हाईकोर्ट में चिरंतन साहा एंड एसोसिएट्स याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रहे हैं.
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