नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति पी.सी. जोशी ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से लागू डीयू का नया चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (एफवाईयूपी) 2013 के नाकाम प्रयास की तरह नहीं होगा.
जोशी के मुताबिक, नया एफवाईयूपी पाठ्यक्रम संरचना के मामले में छात्रों को कई सहूलियत देने वाला होगा. इसके अलावा, यूनिवर्सिटी के पास इस प्रोग्राम की रूपरेखा तय करने के लिए पूरे एक साल का समय है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसमें कोई जल्दबाजी न हो, जैसा कि कुछ शिक्षक आरोप लगा रहे है.
डीयू की अकादमिक परिषद ने इस सप्ताह के शुरू में नए एफवाईयूपी को मंजूरी दी थी.
2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत, एफवाईयूपी लर्निंग के मिले-जुले मोड (ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों) और एक क्रेडिट बैंक के साथ कई एंटी और एक्जिट प्वाइंट की सहूलियत देने वाला भी है. यह 2013 के प्रोग्राम के डिजाइन से अलग है, जिसे कड़ी आलोचना और छात्रों के विरोध के बीच नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के एक साल के भीतर ही बंद कर दिया गया था.
जोशी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर कोई 2013 की एफवाईयूपी की तुलना इस एफवाईयूपी से करने की कोशिश कर रहा है तो ऐसा करना अनुचित होगा. तब उस स्ट्रक्चर में छात्रों के पास कोई सहूलियत नहीं थी और यदि वे किसी तरह का बदलाव चाहते तो शायद 2013 के एफवाईयूपी में पूरी डिग्री ही गंवा देते.’
उन्होंने कहा, ‘अब उनके पास विकल्प है कि चाहे तो तीन साल ही इसका हिस्सा रहें या फिर यदि शोध-आधारित अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम चाहते हैं तो चार साल के प्रोग्राम का विकल्प अपना सकते हैं. वह एनईपी के प्रावधानों के तहत निर्णय लेने के लिए स्वतंत्रता होंगे.’
जोशी ने इस बात को रेखांकित किया कि नया पाठ्यक्रम ‘छात्र केंद्रित, बहु-आयामी और अपने-आप में समग्र’ है.
उन्होंने कहा, ‘छात्रों को अनावश्यक रूप से किसी विषय का अध्ययन नहीं करना पड़ेगा और वे अपनी पसंद के मुताबिक अपने विषयों में फेरबदल कर सकते हैं. उदाहरण के लिए यदि मुख्य तौर पर हिंदी का कोई छात्र अंग्रेजी के पेपर नहीं पढ़ना चाहता है, तो यूनिवर्सिटी की पूर्व अनुमति से अपने विषयों में फेरबदल कर सकता है.’
जोशी ने कहा, ‘हमारे पास पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने और उसके कार्यान्वयन की योजना बनाने के लिए एक वर्ष का समय है. अकादमिक परिषद की मंजूरी मिलने के बाद एफवाईयूपी को लागू करने की योजना को संबंधित विभागों के साथ साझा किया गया है. अब वही तय करेंगे कि कोर्सवर्क को कैसे बांटा जाए और किन विषयों को जोड़ा जाए.’
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जोशी बोले—शिक्षकों पर काम का बोझ बढ़ेगा ही
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के कई शिक्षकों ने बड़े पैमाने पर ओपन ऑनलाइन लर्निंग कोर्सेस पर आपत्ति जताई है, जिन्हें डीयू राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों के तहत मुहैया कराना चाहता है. उन्होंने इस पर जल्दबाजी में अमल किए जाने को लेकर भी चिंता जताई और बताया कि कैसे मल्टीपल एक्जिट रूट शिक्षक भर्ती में कमी का कारण बन सकता है.
डूटा के संयुक्त सचिव और प्रोफेसर प्रेम चंद ने पूर्व में दिप्रिंट से कहा था, ‘एफवाईयूपी के साथ कई समस्याएं हैं लेकिन सबसे बड़ी चिंता ‘ऑनर्स’ प्रोग्राम पर अमल को लेकर है. वाणिज्य जैसे मुख्यधारा के विषयों को लेकर वर्कलोड उसी तरह बना रहेगा जबकि हिंदी, अंग्रेजी साहित्य, राजनीति विज्ञान जैसे विषयों के शिक्षकों के लिए काम कम हो सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘इसके पीछे सबसे बड़ी वजह छात्रों को एक्जिट का विकल्प दिया जाना है, वे दो साल बाद इसे छोड़ने का विकल्प चुन सकते हैं. इससे शिक्षकों की संख्या सीमित हो सकती है.
कार्यवाहक कुलपति ने इन आशंकाओं को दरकिनार करते हुए कहा कि भले ही कुछ भी हो एफवाईयूपी पर अमल के साथ शिक्षकों का कामकाज बढ़ेगा ही.
उन्होंने कहा, ‘ऑनलाइन लर्निंग मॉड्यूल और विषयों में फेरबदल से शिक्षकों पर वर्कलोड कम नहीं होगा. हमने मौजूदा विषयों से किसी को भी बाहर नहीं किया है. इसके बजाये नए पाठ्यक्रम जैसे विदेशी भाषा, भावनात्मक शिक्षा आदि इस कार्यक्रम में जोड़े जाएंगे.’
प्रोफेसरों की इस शिकायत पर कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें शामिल नहीं किया गया और इस पर जल्दबाजी में अमल किया जा रहा है, जोशी ने कहा, ‘हमने इस दिशा में जो भी काम किया था उसे काफी समय पहले ही यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर डाल दिया था. इस पर खुले मंच पर चर्चा हुई, जिसमें सभी से सुझाव आमंत्रित किए गए. मुझे लगता है कि हमने बहुत ही निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से काम किया है.’
उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी ने इस मुद्दे को सोमवार को अकादमिक परिषद में ले जाने से पूर्व 10 घंटे लंबी स्थायी समिति की बैठक भी बुलाई.
नए विदेशी परिसर की योजना ठंडे बस्ते में
जोशी ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि दिल्ली यूनिवर्सिटी एनईपी प्रावधान के तहत दुबई (संयुक्त अरब अमीरात), सिंगापुर और मॉरीशस के साथ प्रतिष्ठित संस्थानों में एक विदेशी परिसर शुरू करने की योजना बना रही है.
कार्यवाहक कुलपति ने कहा कि हालांकि, दूसरी कोविड-19 लहर के कारण आई बाधाओं ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है.
उन्होंने कहा, ‘विदेशी परिसर स्थापित करने के लिए बहुत सारी शर्तें और मानदंड पूरे करने की जरूरत होती है. हमने महामारी के कारण कई झटकों का सामना किया है और अपना पूरा ध्यान देश के अंदर स्थित विश्वविद्यालयों को मजबूत करने पर ही केंद्रित कर दिया है.’
डीयू अब देश के अन्य विश्वविद्यालयों को सहायता और उपयोगी ज्ञान प्रदान करने के उद्देश्य से ‘विद्या विस्तार योजना’ के तहत देश भर की 40 अन्य यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर काम कर रहा है. यूनिवर्सिटी ने लद्दाख के नव-स्थापित यूनिवर्सिटी के साथ एक एमओयू पर भी हस्ताक्षर किए हैं.
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