नई दिल्ली: वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2024 जिसे मंगलवार को जारी किया गया है, इसमें कहा गया है कि ग्रामीण भारत में 14-16 वर्ष की आयु के 82 प्रतिशत बच्चे स्मार्टफोन इस्तेमाल करना जानते हैं, लेकिन पिछले हफ्ते केवल 57 प्रतिशत ने ही पढ़ाई के लिए इसका इस्तेमाल किया है. इसके अलावा, इनमें से 76 प्रतिशत बच्चों ने इसी अवधि के दौरान सोशल मीडिया के लिए स्मार्टफोन यूज़ किया.
भारत के 605 ग्रामीण जिलों के 17,997 गांवों में 6,49,491 बच्चों तक पहुंचने वाले ग्रामीण घरेलू सर्वेक्षण पर आधारित वार्षिक रिपोर्ट में पहली बार 14-16 आयु वर्ग के बच्चों को लक्षित करते हुए डिजिटल साक्षरता पर एक खंड शामिल किया गया है. इस खंड में स्मार्टफोन की पहुंत, स्वामित्व और इस्तेमाल पर सेल्फ-रिपोर्ट किए गए डेटा के साथ-साथ बुनियादी डिजिटल कौशल का एक-एक करके मूल्यांकन शामिल है.
एएसईआर रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 90 प्रतिशत लड़के और लड़कियों ने बताया कि उनके घर में स्मार्टफोन है, लेकिन 14-16 वर्ष के बच्चों के बीच अपना स्मार्टफोन बहुत कम लोगों के पास है. हालांकि उम्र बढ़ने के साथ उन्हें फोन मिल जाता है.
रिपोर्ट अपना स्मार्टफोन होने में एक महत्वपूर्ण “लिंग अंतर” को उजागर करती है: “जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन हैं, उनमें से 14 वर्षीय बच्चों में से 27 प्रतिशत और 16 वर्षीय बच्चों में से 37.8 प्रतिशत ने बताया कि उनके पास अपना फोन है.”
इसके अलावा, जेंडर असमानता स्पष्ट है, 36.2 प्रतिशत लड़कों के पास स्मार्टफोन है जबकि केवल 26.9 प्रतिशत लड़कियों के पास केवल फोन मौजूद है — यह फर्क लगभग सभी राज्यों में एक जैसा है.
इस बात पर जोर देते हुए कि पढ़ाई से जुड़ी गतिविधियों के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल लड़कियों और लड़कों के बीच एक जैसा था. रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कियों में सोशल मीडिया यूज़ करने की संभावना लड़कों की तुलना में कम है (लड़कों में 78.8 प्रतिशत की तुलना में लड़कियों में 73.4 प्रतिशत).
रिपोर्ट में कहा गया है, “इस मामले में केरल सबसे आगे है, जहां 80 प्रतिशत से अधिक बच्चों ने बताया कि वह स्मार्टफोन का इस्तेमाल पढ़ाई से जुड़ी गतिविधियों के लिए करते हैं और 90 प्रतिशत से अधिक बच्चे इसका यूज़ सोशल मीडिया के लिए करते हैं.”
डिजिटल साक्षरता और स्किल में जेंडर गैप
ASER 2024 रिपोर्ट से पता चलता है कि लक्षित आयु वर्ग के लड़के लड़कियों की तुलना में साइबर सिक्योरिटी और डिजिटल स्किल के बारे में ज़्यादा जागरूक हैं. “सोशल मीडिया का यूज़ करने वाले बच्चों में, बुनियादी ऑनलाइन सिक्योरिटी उपायों की जानकारी अधिक थी — 62 प्रतिशत जानते थे कि प्रोफाइल को कैसे ब्लॉक या रिपोर्ट करना है, 55.2 प्रतिशत जानते थे कि प्रोफाइल को प्राइवेट कैसे रखते हैं और 57.7 प्रतिशत जानते थे कि पासवर्ड कैसे बदलते हैं.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कियों के मुकाबले लड़कों ने इन सुरक्षा सुविधाओं के बारे में काफी अधिक जागरूकता दिखाई और यह फर्क खासतौर से अधिकांश राज्यों में स्पष्ट था.
ASER रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण के दिन, 70.2 प्रतिशत लड़के और 62.2 प्रतिशत लड़कियां अलार्म सेट करने, जानकारी खोजने और YouTube वीडियो खोजने सहित डिजिटल काम को पूरा करने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना जानते थे.
तीन-चौथाई से ज़्यादा बच्चों ने इस काम को अच्छे से पूरा किया और जिन लोगों को वीडियो मिला उनमें से 90 प्रतिशत से ज़्यादा इसे शेयर करना जानते थे.
इसमें कहा गया है, “हालांकि, जेंडर गैप स्पष्ट था, अलार्म सेट करने में सबसे बड़ा फर्क था — 81.5 प्रतिशत लड़के बनाम 72.4 प्रतिशत लड़कियां.”
हालांकि, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में लड़कियों ने लड़कों के बराबर या उनसे बेहतर प्रदर्शन किया.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सर्वेक्षण किए गए घरों में से केवल 18 प्रतिशत में कम से कम एक सदस्य ऐसा था जो कंप्यूटर चलाना जानता था.
स्कूल जाने वाली माताओं का अनुपात बढ़ा
ASER 2024 की रिपोर्ट में स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली माताओं के प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाया गया है. दस साल पहले, 2014 में, 3-8 वर्ष की आयु के बच्चों की 43 प्रतिशत माताओं और 25 प्रतिशत पिताओं के पास कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा नहीं थी.
2024 तक, माताओं के लिए यह संख्या घटकर 24 प्रतिशत और पिताओं के लिए 16 प्रतिशत रह गई. इसी अवधि में, कम से कम प्राथमिक विद्यालय पूरा करने वाली माताओं का अनुपात 43 प्रतिशत से बढ़कर 64 प्रतिशत हो गया, जबकि पिताओं के लिए यह वृद्धि 61 प्रतिशत से बढ़कर 72 प्रतिशत हो गई.
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि परिवारों के भीतर मानव पूंजी में इस वृद्धि का प्रभावी ढंग से दोहन करना महत्वपूर्ण है.
रिपोर्ट में शैक्षणिक गैर-लाभकारी संस्था प्रथम के सह-संस्थापक और सीईओ माधव चव्हाण के हवाले से कहा गया है, “यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली माताओं का अनुपात काफी बढ़ रहा है. ये माताएं शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण हैं. स्थानीय आंगनवाड़ी केंद्रों में सुधार केवल आपूर्ति-आधारित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक मजबूत मांग पक्ष भी है. राष्ट्रीय नीति और मजबूत प्रारंभिक वर्षों की शिक्षा के लिए नागरिक समाज द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए प्रयासों से लोगों की मांगें पूरी हुई हैं, खासकर स्कूल जाने वाली माताओं की.”
स्कूल में उपस्थिति अभी भी चिंता का विषय
रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में छात्र और शिक्षक दोनों की उपस्थिति में 2018 से छोटे लेकिन लगातार सुधार हुए हैं. औसत छात्र उपस्थिति 2018 में 72.4 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 73 प्रतिशत हो गई, जो 2024 में 75.9 प्रतिशत तक पहुंच गई.
इसी तरह, शिक्षकों की औसत उपस्थिति 2018 में 85.1 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 86.8 प्रतिशत और 2024 में 87.5 प्रतिशत हो गई. यह सकारात्मक प्रवृत्ति मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में उपस्थिति में सुधार से प्रेरित है.
चव्हाण ने कहा, “एक गांव या समुदाय में कुछ बच्चे प्राइवेट स्कूल जाते हैं, कुछ सरकारी स्कूल में, अन्य प्राइवेट कोंचिंग या क्लास में और कुछ कभी भी स्कूल नहीं जाते हैं. यह गांव के स्तर पर और बड़े समुदाय के स्तर पर कुछ हद तक अराजक स्थिति है, जो स्कूलों में सीखने की गुणवत्ता को दर्शाती है.”
छोटे सरकारी स्कूल बढ़े, मल्टीग्रेड क्लास
ASER 2024 की रिपोर्ट में 60 से कम छात्रों वाले सरकारी प्राथमिक स्कूलों के अनुपात में तेज़ वृद्धि को दर्शाया गया है, जो 2022 में 44 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 52.1 प्रतिशत हो गया है.
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, नागालैंड और कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में 80 प्रतिशत से अधिक प्राथमिक स्कूलों को छोटे स्कूल माना जाता है. उल्लेखनीय रूप से, हिमाचल प्रदेश में छोटे उच्च प्राथमिक स्कूलों का अनुपात सबसे अधिक (75 प्रतिशत) है.
इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 और कक्षा 2 के लिए दो-तिहाई क्लास को मल्टीग्रेड कहा गया, जिसका मतलब है कि विभिन्न कक्षाओं के छात्रों को एक ही कक्षा में एक साथ पढ़ाया जाता था. यह ट्रेंड छोटे स्कूलों द्वारा एक ही स्थान पर विभिन्न आयु समूहों और सीखने के स्तरों को प्रबंधित करने में आने वाली चुनौतियों को दर्शाती है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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