नई दिल्ली: अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) से जुड़े कम-प्रदर्शन करने वाले कम से कम 1,000 ग्रामीण इंजीनियरिंग कॉलेजों को अब बड़े बदलाव से गुज़ारा जाएगा. इसका मकसद है शिक्षण की गुणवत्ता सुधारना, नवाचार को बढ़ावा देना और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाना है. योजना से सीधे तौर पर 5 लाख से ज्यादा छात्र और 10,000 फैकल्टी सदस्य प्रभावित होंगे.
AICTE ने सेंटर फॉर रिसर्च इन स्कीम्स एंड पॉलिसीज़ (CRISP), आईआईटी मद्रास की पहल LEAP—जो प्रोजेक्ट-आधारित इंजीनियरिंग शिक्षा को बढ़ावा देती है और मेकर भवन फाउंडेशन (अमेरिका आधारित गैर-लाभकारी संस्था, जो भारतीय कॉलेजों में STEM शिक्षा पर काम करती है) के साथ मिलकर Project for Advancing Critical Thinking Industry Connect and Employability (PRACTICE) नाम से एक नई पहल शुरू की है.
AICTE अधिकारियों के मुताबिक, इस परियोजना की लागत 23 करोड़ रुपये है, जिसे परिषद और उसके साझेदार संस्थानों ने बराबर-बराबर वहन किया है. इसका लक्ष्य तकनीकी शिक्षा को बदलना है. इसके लिए नए कोर्स, फैकल्टी ट्रेनिंग प्रोग्राम, प्रोजेक्ट-आधारित लर्निंग, नवाचार, इंडस्ट्री कनेक्ट और प्रसिद्ध शिक्षाविदों से मेंटरशिप जैसे कदम उठाए जाएंगे.
इस योजना का मकसद है कि 2028 तक इन संस्थानों में औसत रोज़गार दर को दोगुना किया जाए.
AICTE के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “इस योजना को हमारे PRACTICE पार्टनर्स ने प्रस्तावित किया था. बुनियादी लक्ष्य है उन 1,000 से ज्यादा कॉलेजों को अपग्रेड करना, जो अभी छात्रों के प्रदर्शन और रोज़गार के लिहाज़ से सबसे नीचे हैं. हम चाहते हैं कि छात्र क्रिटिकल थिंकिंग विकसित करें, इंडस्ट्री से जुड़ें और फैकल्टी भी नई शिक्षण पद्धतियों में प्रशिक्षित हो.”
परियोजना के पहले चरण में देशभर के 500 से ज्यादा कॉलेजों का चयन किया गया है. इनमें सबसे ज्यादा तमिलनाडु (128), फिर केरल (60), हरियाणा (43), आंध्र प्रदेश (41), तेलंगाना (36), पंजाब (33), उत्तर प्रदेश (31), महाराष्ट्र (29), गुजरात (25), कर्नाटक (17), ओडिशा (16), उत्तराखंड (11), पश्चिम बंगाल (11) सहित कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं.
परियोजना के लक्ष्य
PRACTICE साझेदारों द्वारा तैयार एक दस्तावेज़ के अनुसार, कम से कम 85 प्रतिशत इंजीनियरिंग संस्थान जिनमें से ज़्यादातर ग्रामीण इलाकों में हैं पुराने कोर्स और कमज़ोर इंडस्ट्री संबंधों की समस्या से जूझ रहे हैं.
अपने विश्लेषण में PRACTICE साझेदारों ने एक बड़ा “रोज़गार अंतर” पाया.
दस्तावेज़ में कहा गया है, “हाल के अध्ययनों के अनुसार भारत के केवल आधे युवा ही रोज़गार योग्य माने जाते हैं. खासकर नई उभरती तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), डेटा साइंस और क्लाउड कंप्यूटिंग में बड़ी कमी है. पारंपरिक, रटने पर आधारित शिक्षा पद्धति और सीमित प्रैक्टिकल एक्सपोज़र के कारण कई ग्रेजुएट्स के पास ज़रूरी व्यावहारिक और प्रोफेशनल स्किल्स की कमी है.”
CRISP के सीईओ और पूर्व शिक्षा सचिव आर. सुब्रह्मण्यम ने दिप्रिंट को बताया, “यह भी पाया गया है कि अकादमिक संस्थानों और उद्योग के बीच दूरियां हैं. इसी वजह से इंटर्नशिप के अवसर और वास्तविक प्रशिक्षण बहुत सीमित हैं, खासकर छोटे शहरों में. अध्ययनों से पता चला है कि केवल 20-25 प्रतिशत तकनीकी संस्थानों के पास ही उद्योग से सार्थक जुड़ाव है. इससे टियर-2 और टियर-3 शहरों में इंटर्नशिप और एक्सपीरियंस-बेस्ड लर्निंग की संभावना बहुत घट जाती है.”
उन्होंने आगे कहा कि इन खामियों को दूर करने के लिए ही यह परियोजना शुरू की गई. “चूंकि, हमारा लक्ष्य विकास में एक बड़ा बदलाव लाना है, इसलिए हमें लगा कि सबसे पहले इस समस्या को दूर करना ज़रूरी है यानी इंजीनियरिंग शिक्षा को और अधिक उपयोगी और प्रैक्टिस-आधारित बनाना.”
प्रोजेक्ट लागू करना
यह परियोजना कमज़ोर प्रदर्शन करने वाले ग्रामीण इंजीनियरिंग कॉलेजों में शिक्षण की गुणवत्ता और छात्रों के नतीजों को बेहतर बनाने के लिए व्यापक और प्रैक्टिकल तरीका अपनाएगी.
1,000 कॉलेजों के 10,000 से ज़्यादा फैकल्टी सदस्यों को इंटरडिसिप्लिनरी और प्रैक्टिस-आधारित शिक्षण पद्धति में प्रशिक्षित किया जाएगा. इसके लिए मेंटॉर-मेंटी मॉडल लागू होगा, जिसमें 50 मेंटॉर संस्थान 950 मेंटी कॉलेजों के फैकल्टी को 5-दिन के इमर्सिव सेशंस के ज़रिए प्रशिक्षित करेंगे. इनका सर्टिफिकेशन आईआईटी मद्रास से होगा.
आर. सुब्रह्मण्यम ने बताया, “हम शीर्ष 50 संस्थानों के साथ काम करना चाहते हैं ताकि कम से कम 1,000 सबसे कमज़ोर कॉलेजों को मेंटॉर किया जा सके और उनके प्रदर्शन की कमियों को दूर करने में मदद मिले. ये संस्थान चुने गए कॉलेजों को अपनाकर उन्हें अपनी इनोवेशन इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच देंगे. यह हब-एंड-स्पोक मॉडल की तरह काम करेगा, जहां अच्छे संस्थान ‘हब’ बनकर कमज़ोर कॉलेजों (स्पोक्स) को मज़बूत करेंगे.”
उन्होंने बताया कि इस उद्देश्य से बनाई गई परियोजना को AICTE ने बराबर फंडिंग के आधार पर मंज़ूरी दे दी है. अमेरिका में बसे आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र, हेमंत कनाकिया की अगुवाई में, परियोजना की 50% लागत योगदान के रूप में दी जा रही है. यह परियोजना सितंबर में शुरू होने की उम्मीद है.
इसके अलावा, आईआईटी जम्मू में फैकल्टी के लिए 10-दिन का रेज़िडेंशियल इनोवेशन प्रोग्राम होगा, जिसमें डिज़ाइन थिंकिंग, प्रोटोटाइपिंग, आईपी फाइलिंग और इनोवेशन मेंटरिंग जैसे विषयों पर फोकस होगा ताकि फैकल्टी अपनी टीचिंग में रचनात्मकता और उद्योग से जुड़ाव ला सकें.
छात्रों के लिए योजनाओं में प्रत्येक संस्थान में 200 छात्रों (50 के 4 बैच) के लिए 4-दिन के बूटकैंप्स होंगे, जहां उन्हें असली इंजीनियरिंग चुनौतियों पर काम करने का अनुभव मिलेगा. 40 छात्रों के लिए 8-सप्ताह के प्रोजेक्ट-बेस्ड प्रोग्राम्स होंगे, जिनमें वे इनोवेटिव समाधान विकसित करेंगे और अपनी तकनीकी व सॉफ्ट स्किल्स को मज़बूत करेंगे. एडवांस छात्रों के लिए 20 छात्रों पर केंद्रित 8-सप्ताह का टेक्नोलॉजी-ड्रिवन डीप-डाइव प्रोग्राम होगा, जिसमें वे उद्योग की ख़ास चुनौतियों का समाधान करेंगे.
प्रोजेक्ट के तहत, छोटे इंटर्नशिप की जगह अब 6 महीने की व्यापक इंटर्नशिप होगी, जो एक अकादमिक सेमेस्टर और गर्मियों तक फैली होगी.
दस्तावेज़ में कहा गया, “उद्योग साझेदारों के लिए ये लंबी इंटर्नशिप छात्रों की क्षमताओं का अच्छी तरह आकलन करने का अवसर देंगी. इससे भर्ती जोखिम घटेंगे, कर्मचारी बने रहने की दर बढ़ेगी और हायरिंग लागत कम होगी.”
AICTE इस योजना की लगातार निगरानी करेगा और तीन साल बाद इसका असर मूल्यांकित करेगा.
एक अधिकारी ने कहा, “इस योजना को पिछले महीने AICTE ने मंज़ूरी दी है. हमें उम्मीद है कि आने वाले तीन सालों में ग्रामीण इलाक़ों के कई कॉलेज इससे विशेष रूप से लाभान्वित होंगे.”
AICTE अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय स्टीयरिंग कमेटी बनाई जाएगी, जो हर तीन महीने में बैठक करके परियोजना की प्रगति पर नज़र रखेगी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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