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Friday, 29 March, 2024
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यूक्रेन के रक्षा उद्योग स्थलों पर रूसी हमले भारतीय नौसेना और IAF के लिए चिंता की वजह क्यों हैं

भारतीय नौसेना गैस टरबाइन इंजन के लिए यूक्रेन पर बहुत ज्यादा निर्भर है, जबकि भारतीय वायुसेना एंटोनोव एएन-32 का इस्तेमाल करती है. इनके स्पेयर पार्ट्स का स्टॉक तो है, लेकिन आगे चलकर यूक्रेन से आपूर्ति प्रभावित हो सकती है.

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नई दिल्ली: ऐसी तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, जिसमें यूक्रेन में रूसी मिसाइलों और तोपों के हमलों के बाद विमान निर्माता एंटोनोव और गैस टरबाइन निर्माता जोराया-माशप्रोएक्ट की फैक्ट्रियों में आग लगी नजर आ रही है. यह हमला भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के लिए चिंता का सबब बन सकता है. हालांकि, ये अभी तक तो यूक्रेन पर लगातार जारी हमलों के प्रभाव से अछूती हैं, लेकिन आने वाले समय में इसका असर नजर आ सकता है.

भारत सशस्त्र बलों के इस्तेमाल में आने वाली तमाम रूसी प्रणालियों के कई कल-पुर्जों की खरीद यूक्रेन से करता है. दरअसल, जब यूएसएसआर का विघटन हुआ था, तो इसके कई रक्षा निर्माण केंद्र यूक्रेन में ही रह गए थे.

भारतीय वायु सेना एंटोनोव द्वारा निर्मित 100 से अधिक एएन-32 विमानों का संचालन करती है. सेना की रीढ़ बने ये परिवहन विमान फिलहाल अपग्रेडेशन के अंतिम चरण में हैं.

इसी तरह, भारतीय नौसेना तलवार-श्रेणी की स्टील्थ फ्रिगेट और दिल्ली-श्रेणी के विध्वंसक सहित अपने कई सरफे शिप के बेड़े की पॉवर के लिए जोरया-माशप्रोएक्ट पर निर्भर है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि चिंता की बात यह है कि यद्यपि तत्काल रखरखाव और रिफिट साइकिल के लिए स्पेयर पार्ट्स और अन्य सिस्टम का स्टॉक किया जाता है, लेकिन भविष्य में यूक्रेन से उनकी आपूर्ति प्रभावित हो सकती है.

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यह चिंता पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (सेवानिवृत्त) ने भी जाहिर की है, जिन्होंने यह कहते हुए ट्वीट किया कि ‘भारतीय नौसेना की यूक्रेनी समुद्री गैस टर्बाइनों पर बड़ी निर्भरता को देखते हुए—जो भारतीय विध्वंसक, फ्रिगेट और कोरवेट्स को पॉवर देते हैं—गंभीरता से यह विचार करने का उपयुक्त क्षण है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल)/जोरया माशप्रोएक्ट इसे संयुक्त उद्यम के तहत भारत में बनाएं.’

एडमिरल अरुण प्रकाश ने कहा कि सोवियत संघ के बिखरने के समय भारत मौका चूक गया, जब वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी दोनों इसके लिए उपलब्ध थे.

सूत्रों ने बताया कि वायुसेना की यूक्रेनी फर्मों पर निर्भरता तो एएन-32 और कुछ मिसाइलों तक ही सीमित है, लेकिन नौसेना उस पर बहुत ज्यादा निर्भर है.

यहां तक कि एडमिरल ग्रिगोरोविच-क्लास की दो गाइडेड-मिसाइल स्टील्थ फ्रिगेट्स, जिसे 2.5 बिलियन डॉलर सौदे के तहत एक रूसी शिपयार्ड की तरफ से भारतीय नौसेना के लिए निर्मित किया जा रहा है, के लिए नई दिल्ली को पहले यूक्रेन से गैस टर्बाइनों की खरीद करनी थी और फिर उन्हें रूस को सौंपा जाना था.


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रक्षा-औद्योगिक प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहा रूस

रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि वे अभी भारतीय सेना पर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पड़ने वाले असर का व्यापक स्तर पर अध्ययन किया जा रह है.

उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि रूस खासकर यूक्रेन के रक्षा-औद्योगिक प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं, और यह स्थिति आने वाले समय में आखिरकार भारत को प्रभावित कर सकती है.

सूत्रों ने साथ ही कहा कि यूक्रेन भी भारत के साथ अपने रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए उत्सुक था, लेकिन यह जंग उन योजनाओं के लिए एक बड़ा झटका साबित होगी.

दिप्रिंट ने पहले बताया था कि भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान रूसी हमले के दीर्घकालिक असर को लेकर सबसे अधिक चिंतित हैं.

इसमें रूसी उपकरणों की खरीद के लिए सौदेबाजी की प्रक्रिया, अनुबंध के तहत सिस्टम, स्पेयर पार्ट्स की डिलीवरी आदि प्रभावित होने के साथ ही एक बड़ा खतरा यह भी है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी गतिरोध के बीच चीन इस संघर्ष से क्या सबक लेता है.

विभिन्न देशों की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों ने रूस के साथ अनुबंधन के तहत उपकरणों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भुगतान प्रक्रिया को भी प्रभावित किया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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