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Saturday, 21 December, 2024
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क्यों मिराज 2000 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने में हो रही है देरी

51 मिराज 2000 विमान को अपग्रेड करने का कॉन्ट्रेक्ट 2011 में हुआ था. अभी तक केवल 50 प्रतिशत के करीब अपग्रेड्स पूरे किए जा सके हैं. सूत्रों ने कहा कि कार्यक्रम पूरा होने में 2-3 साल और लग जाएंगे.

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नई दिल्ली: भारत के मिराज 2000 लड़ाकू विमानों को 2021 के अंत तक अपग्रेड करने की लगभग 2.5 अरब अमेरिकन डॉलर्स मूल्य की योजना में देरी हो सकती है, चूंकि अभी केवल आधे विमानों में ही ये प्रक्रिया पूरी हो पाई है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

51 मिराज 2000 विमान जिनका बालाकोट हवाई हमलों में इस्तेमाल किया गया था, उन्हें अपग्रेड करने का मेगा कॉन्ट्रेक्ट 2011 में साइन किया गया था और इसके पीछे मकसद ये था कि इन विमानों को, जो 1982-1985 के बीच खरीदे गए थे, आधुनिक बनाया जाए और बेहतर गोलाबारी क्षमता, नए सेंसर्स, अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम्स से लैस कर उनके काम करने की उम्र बढ़ाई जाए.

योजना के तहत मिराज की मूल फ्रांसीसी निर्माता कंपनी दसॉल्ट एविएशन को, दो विमान फ्रांस में अपग्रेड करने थे और फिर उसे दो और विमान भारत में, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बेंगलुरू स्थित कारखाने में करने थे. बाकी विमानों को एचएएल द्वारा टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत अपग्रेड किया जाना था.

इस अपग्रेड में अधिक मेमोरी वाला एक नया मिशन कंप्यूटर, नया रडार, उन्नत नेविगेशन और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम्स, उन्नत कम्यूनिकेशन व आईडेंटिफिकेशन सिस्टम्स आदि शामिल हैं.

अपग्रेड किए गए विमानों के कॉकपिट में भी काफी सुधार किया जाना है, जिसमें दो लेटरल डिसप्लेज़, ग्लास कॉकपिट्स, और हेलमेट-माउंटेड डिसप्लेज़ शामिल हैं.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार, अभी तक केवल 50 प्रतिशत के करीब अपग्रेड्स पूरे किए जा सके हैं. सूत्रों ने आगे कहा कि कार्यक्रम पूरा होने में 2-3 साल और लग जाएंगे.


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किस वजह से हुई देरी

योजना के अनुसार, पहले 16 विमान जिनमें दसॉल्ट एविएशन द्वारा थेल्स की सहायता से निर्मित 4 विमान भी शामिल थे, प्रारंभिक परिचालन मंजूरी (आईओसी) स्टेटस के साथ दिए जाने थे. बाकी 35 विमान अंतिम परिचालन मंजूरी (एफओसी) के साथ आने थे.

एचएएल सूत्रों ने कहा कि फरवरी 2019 में एक जानलेवा हादसा, जिसमें परीक्षण उड़ान के दौरान एक अपग्रेड किया हुआ मिराज दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उसके बाद कोविड-19 महामारी की वजह से कार्यक्रम में देरी हुई.

सूत्रों ने ये भी कहा कि भारतीय वायुसेना ने ओवरहॉल किए गए इंजन और कुछ दूसरे सिस्टम्स की डिलीवरी समय से नहीं ली, जिसकी वजह से कार्यक्रम में देरी हुई.

इस बीच वायुसेना का कहना है कि एफओसी वेरिएंट के साथ कुछ समस्याएं थीं, क्योंकि वो कुछ नए सिस्टम्स के इंटीग्रेशन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे.

संयोग से अपग्रेड किए गए पहले मिराज 2000 विमान की पहली उड़ान को दसॉल्ट एविएशन ने 5 अक्टूबर 2013 को पूरा किया, जिसके लिए उसने दो साल तक काम किया था.

इस फेज़ में थेल्स द्वारा उपलब्ध कराए गए नए सिस्टम्स का इंटीग्रेशन शामिल था, जिनमें रडार, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट और मिशन कंप्यूटर शामिल थे.

आईएएफ ने अपग्रेड किए हुए पहले दो मिराज 2000 आई/टीआई औपचारिक रूप से 2015 में प्राप्त कर लिए थे.


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अपग्रेड कार्यक्रम का बालाकोट कनेक्शन

संयोगवश, बालाकोट ऑपरेशन की योजना भी अपग्रेड किए हुए और बिना अपग्रेड हुए मिराज 2000 की क्षमताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई थी.

हालांकि कुल 16 मिराज 2000 विमान पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में दाखिल हुए और चार विमान बैकअप के लिए भारतीय हवाई क्षेत्र में ही बने रहे लेकिन स्पाइस 2000 बमों से लैस सिर्फ छह विमान, जिन्हें खैबर पख़्तूनख़्वा में जैश-ए-मोहम्मद कैंप को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया, वास्तव में बिना अपग्रेड किए हुए थे.

ऐसा इसलिए था कि अपग्रेड किए गए विमानों को तब तक इजरायली वैपन सिस्टम के साथ इंटीग्रेट नहीं किया था, जिन्हें पहली बार 2014-2015 के दौरान इंटीग्रेट किया गया था.

लेकिन, बिना अपग्रेड किए हुए विमानों को दुश्मन के इलाके में भेजने और उन्हें कवर देने के लिए अपग्रेड किए गए विमानों को आगे रखा गया और वही सबसे पहले पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में दाखिल हुए.


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मिराज अपग्रेड की ऊंची लागत

मिराज 2000 अपग्रेड प्रोग्राम की कुल लागत 17,000 करोड़ रुपए रखी गई थी और 2011 में इस समझौते पर दस्तखत के समय काफी बवाल मचा था.

इसका कारण ये था कि मिराज 2000 फाइटर्स की आखिरी खेप में, जिसके लिए 2000 में सौदा किया गया था, प्रति विमान 133 करोड़ रुपए कीमत अदा की गई थी. तब के रक्षा मंत्री ने 2013 में कहा था कि एक मिराज विमान को अपग्रेड करने की लागत 167 करोड़ रुपए आएगी.

उन्होंने तर्क दिया कि अगर मूल्य में हर साल 3.5 प्रतिशत वृद्धि का हिसाब लगाया जाए, तो 2000 में खरीदे गए विमान की कीमत 2011 में 195 करोड़ रुपए बैठेगी और इसलिए अपग्रेड लागत विमान की कीमत का 85 प्रतिशत थी.

लेकिन अपग्रेड की कुल लागत इससे ज़्यादा है. ऐसा इसलिए है कि हालांकि 2011 में भारत ने 10,947 करोड़ रुपए के सौदे पर दस्तखत किए थे, जिसमें फ्रांस और एचएएल दोनों के काम का हिस्सा शामिल था, 2012 में उसने फाइटर्स के लिए एमआईसीए एयर-टु-एयर मिसाइल्स की खरीद का एक और सौदा किया, जिसकी कीमत 6,600 करोड़ रुपए थी.

संयोग से, भारत दो बार विमान को देश में बनाने का अवसर खो चुका है. भारत ने फ्रांस से स्पेयर पार्ट्स के लिए इस्तेमाल से हटाए गए मिराज 2000 विमान नहीं खरीदे हैं, जो आने वाले वर्षों में काम आ सकते थे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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