नई दिल्ली: कोविड-19 की दूसरी ज़बरदस्त लहर के बीच जिस समय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देशभर के दूसरे शहर, ऑक्सीजन की कमी से दोचार हैं, ऐसे में देश में ही विकसित हल्के लड़ाकू विमान तेजस में इस्तेमाल की गई एक तकनीक बचाव के रूप में सामने आई है.
मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट (एमओपी) कही जाने वाली ये तकनीक, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने, तेजस से अंदर ही ऑक्सीजन बनाने के लिए विकसित की है.
रक्षा इकाई ने बुधवार को एक बयान में कहा कि पीएम केयर्स फंड इनीशिएटिव के अंतर्गत डीआरडीओ तीन महीने के अंदर देशभर में 500 मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट्स स्थापित करेगी.
डीआरडीओ सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि 10 मई तक एनसीआर में ऐसे कम से कम पांच प्लांट्स स्थापित कर दिए जाएंगे.
एमओपी तकनीक तेजस पर मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन पैदा करने के लिए ऑन-बोर्ड ऑक्सीजन जेनरेशन सिस्टम (ओबीओजीएस) प्रोजेक्ट की एक शाखा है. ये तकनीक विकसित करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश है.
वायुमंडलीय हवा से सीधे ऑक्सीजन पैदा करने के लिए इसमें प्रेशर स्विंग एडज़ॉर्पशन (पीएसए) तकनीक और मॉलिक्युलर छलनी का इस्तेमाल किया जाता है.
बयान में कहा गया कि कोविड संकट के बीच डीआरडीओ ने इस टेक्नोलॉजी को निजी कंपनियों, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड बेंगलुरू और ट्राइडेंट न्यूमैटिक्स प्रा. लि. कोयम्बटूर को हस्तांतरित किया है, जो 1,000 लीटर प्रति मिनट (एलपीएम) क्षमता के 380 प्लांट्स तैयार करेंगी, जिन्हें देशभर के अलग-अलग अस्पतालों में स्थापित किया जाएगा.
टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स 332 ऑर्डर्स की आपूर्ति करेगी, जबकि ट्राइडेंट 48 प्लांट्स तैयार करेगी.
इसके अलावा, कुछ अन्य औद्योगिक इकाइयां, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान देहरादून के साथ मिलकर, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत 500 एलपीएम क्षमता के 120 प्लांट्स तैयार करेंगी.
बयान में कहा गया कि ये सिस्टम्स 5 एलपीएम की प्रवाह गति पर, 190 मरीज़ों को ऑक्सीजन पहुंचा सकते हैं, और प्रतिदिन 195 सिलिंडर्स चार्ज कर सकते हैं.
एमओपी टेक्नोलॉजी 93±3 प्रतिशत कंसनट्रेशन के साथ, ऑक्सीजन पैदा करने में सक्षम है, जिसे सीधे अस्पतालों के बिस्तरों तक पहुंचाया जा सकता है या मेडिकल ऑक्सीजन सिलिंडर भरने में इस्तेमाल किया जा सकता है.
ये प्लांट्स उत्तरपूर्व और लेह-लद्दाख क्षेत्रों के कुछ सैन्य स्थलों पर पहले ही लगाए जा चुके हैं.
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ये कैसे काम करता है
एमओपी में एयर कंप्रेशर के ज़रिए ऑक्सीजन प्लांट को हवा सप्लाई की जाती है, जिसे एक एयर ड्रायर और फिल्ट्रेशन सिस्टम के ज़रिए छाना और सुखाया जाता है और उसके बाद ऑक्सीजन जेनरेटर में भेज दिया जाता है.
ऑक्सीजन जेनरेटर मॉलिक्युलर छलनियों में सोखकर, हवा से नाइट्रोजन को निकाल देता है, और फिर जो पैदा करता है वो 93±3 प्रतिशत ऑक्सीजन होती है. बाकी आर्गन होती है जिसे सोखा नहीं जाता.
डीआरडीओ सूत्रों ने बताया कि ऑक्सीजन को हवा से अलग करने के लिए, एमओपी पीएसए तकनीक का इस्तेमाल करता है. नाइट्रोजन को प्राथमिकता के साथ उच्च दवाब पर मॉलिक्युलर छलनियों में सोख लिया जाता है जिससे ऑक्सीजन गाढ़ी हो जाती है. सोखी गई नाइट्रोजन को कम दबाव (अमूमन वायुमंडलीय दबाव) पर छोड़ा जाता है.
इस तकनीक में दो सोखने वाले बेड्स के दबाव में तब्दीली की जाती है.
एक सूत्र ने समझाया, ‘जहां एक बेड पर दबाव दिया जाता है, वहीं दूसरी बेड से दबाव हटाया जाता है और पहले से सोखी हुई गैसेज़ को बाहर निकालकर, आसपास के वातावरण में छोड़ दिया जाता है. लेकिन, मौजूदा ज़ियोलाइट मॉलिक्युलर छलनियां, ऑक्सीजन और आर्गन में भेद नहीं कर पातीं, जिसके नतीजे में ऑक्सीजन शुद्धता 93±3 प्रतिशत रहती है. ऑक्सीजन और आर्गन दोनों, ऑक्सीजन जेनरेटर्स के अंदर गाढ़ी हो जाती हैं’.
कॉन्सेंटेटर सिस्टम में एक फिल्टर लगा होता है, जो अगर कोई कण आदि पदार्थ हों, तो उन्हें निकाल देता है.
आउटपुट को एक स्टोरेज टैंक में जमा कर लिया जाता है.
एक ऑक्सीजन कंप्रेशर/बूस्टर सिस्टम के साथ जुड़ा होता है, जिससे सिलिंडर्स भरे जा सकते हैं, जिन्हें फिर इस्तेमाल के लिए आसपास के इलाकों में ले जाया जा सकता है.
इस सिस्टम से 5 एलपीएम प्रति व्यक्ति के हिसाब से 200 लोगों को ऑक्सीजन दी जा सकती है और इसकी कुल क्षमता 960 एलपीएम (57.6एम3) है.
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