scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमडिफेंस‘आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत’- सशस्त्र बल क्यों इस बार रक्षा बजट में बड़ी वृद्धि चाहते हैं

‘आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत’- सशस्त्र बल क्यों इस बार रक्षा बजट में बड़ी वृद्धि चाहते हैं

सुरक्षा बलों ने एलएसी पर चीन के साथ जारी गतिरोध का हवाला देते हुए सैन्य आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत बताई है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत ज्यादा वृद्धि की गुंजाइश नहीं है.

Text Size:

नई दिल्ली: सशस्त्र बल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के इस आम बजट में एक अभूतपूर्व कदम की उम्मीद कर रहे हैं—रक्षा आवंटन में जबर्दस्त वृद्धि, जो उन्हें उन मेगा खरीद योजनाओं को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाएगी जिनकी प्रक्रिया या तो धीमी पड़ गई है या फिर ठप हो गई है.

सुरक्षा बलों से जुड़े सूत्रों ने चीन के साथ सीमा पर गतिरोध का हवाला देते हुए कहा कि रक्षा आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत है.

बजट संबंधी बाधाओं के कारण कई बड़े सौदे अटके पड़े हैं जिनमें नए परिवहन और लड़ाकू विमानों से जुड़े सौदों के अलावा भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के लिए हेलीकॉप्टर, सेना के लिए तोपें, असॉल्ट राइफलें, स्नाइपर्स और विशेष वाहन और नौसेना के लिए लड़ाकू विमान, पनडुब्बी, नए युद्धपोत और हेलीकॉप्टर की खरीद करना शामिल है.

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि बहुत ज्यादा बजटीय वृद्धि की गुंजाइश नहीं है. उनका कहना है कि महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है और सरकार की प्राथमिकता बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य में निवेश करने की होगी, पूंजीगत बजट में 10,000-15,000 करोड़ रुपये की वृद्धि भी उल्लेखनीय ही होगी.

सरकारी सूत्रों ने भी दिप्रिंट को संकेत दिया कि वित्त मंत्री सीतारमण 1 फरवरी को जब 2021-22 का आम बजट पेश करेंगी तो एक रोलओवर बजट या एक गैर-देय निधि की रक्षा मंत्रालय की मांग पूरी होने की संभावना कम ही है.


यह भी पढ़ें: किसानों की ट्रैक्टर परेड से बहुत पहले बाबरी मस्जिद आंदोलन भी गणतंत्र दिवस के मौके पर विवाद का कारण बना था


पिछला बजट और आधुनिकीकरण की कोशिश

2020-21 में नरेंद्र मोदी सरकार ने पेंशन पर खर्च को छोड़कर देश के रक्षा बजट को 1.82 प्रतिशत बढ़ाकर 3.37 लाख करोड़ रुपये कर दिया था. दिप्रिंट ने तब रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि यह आवंटन ऐसे सैन्य बल के लिए पर्याप्त नहीं है जिसे धन की कमी के कारण अपनी रक्षा खरीद और आधुनिकीकरण योजनाओं में कटौती के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

2019-20 के संशोधित अनुमानों में सेना के लिए पूंजीगत बजट, जिसे नई खरीद और आधुनिकीकरण के लिए उपयोग किया जाता है, में 3 प्रतिशत या 3,400 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई थी.

भारतीय वायुसेना, जो लगभग 200 नए लड़ाकू विमान खरीदने की प्रक्रिया के बीच है, ने अपना पूंजीगत बजट संशोधित अनुमान 44,869.14 करोड़ रुपये से घटकर 43,281.91 करोड़ रुपये होते देखा.

2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार ने अगले पांच-सात वर्षों में सशस्त्र बलों की युद्धक क्षमता को बढ़ाने के लिए 130 अरब डॉलर खर्च करने की एक मेगा योजना बनाई है, हालांकि, तबसे ही तीन सेनाएं ऑन रिकॉर्ड बजटीय बाध्यताओं और आधुनिकीकरण में आ रही बाधाओं के बारे में बात कर रही हैं.

जनवरी 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने भी सेना के लिए अपर्याप्त बजट आवंटन के लिए मोदी सरकार की आलोचना की थी.


यह भी पढ़ें: ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा पर चर्चा करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने बुलाई बैठक


सेनाएं क्या कहती हैं

सशस्त्र बलों से जुड़े सूत्रों के अनुसार, पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी गतिरोध ने सैन्य आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत को उजागर किया है.

अप्रैल-मई में गतिरोध शुरू होने के बाद से तीनों सेनाएं आपातकालीन खरीद की राह पर आगे बढ़ी हैं.

सुरक्षा बलों के एक सूत्र ने कहा, ‘बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए बढ़ोतरी होनी चाहिए. चीन अब लगातार एक चुनौती बनने जा रहा है. चीन से निपटने के लिए एक मजबूत सेना के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. एक मजबूत सेना का मतलब है एक ऐसे देश से निपटने में सक्षम होना जो न केवल सैन्य रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी बड़ा हो.’

एक दूसरे सूत्र ने कहा कि चीन से निपटने के लिए न केवल सेना बल्कि नौसेना और वायु सेना के आधुनिकीकरण की भी जरूरत है.

दूसरे सूत्र ने कहा, ‘चीनी सेना का विस्तार हो रहा है, चाहे वह सेना हो या फिर नौसेना या वायु सेना. सिर्फ संख्याबल ही नहीं बल्कि आर्थिक क्षमता के लिहाज से भी वह उन्नत स्थिति में है. थोड़ी-सी भी विश्वसनीय निरोधक क्षमता के लिए भारतीय सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है और इसके लिए धन काफी अहम है.’

इस माह के शुरू में पूर्व रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने भारत के रक्षा बलों, खासकर पूर्वी मोर्चे पर तैनात सेना और वायु सेना के लिए प्राथमिकता के आधार पर फास्ट-ट्रैक खरीद की जरूरत बताई थी जिसके लिए भारी राजस्व और पूंजीगत व्यय की आवश्यकता होगी.

उन्होंने लिखा था, ‘सरकार अगर संसाधनों की कमी को देखते हुए रक्षा सेवाओं के लिए बजट आवंटन नहीं बढ़ाती तो यह निश्चित तौर पर दीर्घावधि में क्षमता बढ़ाने और ‘मेक इन इंडिया’ को प्रभावित कर सकता है. रणनीतिक रूप से, चीन को घेरने के लिए हिंद महासागर में एक मजबूत नौसेना की उपस्थिति महत्वपूर्ण है.’

लेह सब एरिया के पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल यश मोर (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सबसे बड़े छह देशों की तुलना में भारत रक्षा पर प्रति व्यक्ति सबसे कम खर्च करता है. उन्होंने कहा, ‘हमें और अधिक खर्च करने की जरूरत है. बजट में आर्थिक स्थिति और आसन्न खतरों के फैक्टर का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.’


यह भी पढ़ें: दीप सिद्धू ने दी सफाई- लाल किले से तिरंगे को नहीं हटाया, वह एक ‘प्रतीकात्मक प्रदर्शन’ था


विशेषज्ञ ज्यादा वृद्धि की संभावना नहीं देखते

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर लक्ष्मण बेहरा ने कहा कि इसमें दो राय नहीं कि भारत में रक्षा आवंटन में तत्काल पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता है, लेकिन इसे बहुत ज्यादा बढ़ाए जाने की उम्मीद नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को देखते हुए जो भी वृद्धि हो स्वागतयोग्य होगी. लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई बड़ी वृद्धि होने जा रही है.’

बेहरा ने कहा, ‘यह तथ्य बेहद उत्साहजनक है कि रक्षा बजट को 2020 में कोविड संबंधी पाबंदियों से दूर रखा गया. चूंकि डीए नहीं दिया गया, इसलिए रक्षा के लिए राजस्व बजट में किसी बड़ी वृद्धि की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. हालांकि, पूंजी आवंटन में 10,000 से 15,000 रुपये तक की बढ़ोतरी स्वागतयोग्य होगी.’

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय की पूर्व निदेशक तारा कार्था ने कहा कि ऐसा कोई रास्ता नहीं है जिससे बड़ी वृद्धि की संभावना हो. भारत को तय करना होगा कि वह किस तरह की जंग लड़ना चाहता है और उसी के अनुरूप अगली पीढ़ी के हथियारों की खरीद निर्धारित करनी होगी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कांग्रेस के लिए अपना खुद का नरेंद्र मोदी ढूंढने का यह आखिरी मौका है


 

share & View comments