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Saturday, 21 December, 2024
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ड्रैगन को वश में करने के लिए सॉफ्ट स्किल- भारत की प्रादेशिक सेना के लिए होंगे चीनी दुभाषिए

चीनी भाषा के जानकार होने से भारतीय सेना को विचारों का आदान-प्रदान और कोर कमांडर स्तर की वार्ता, फ्लैग मीटिंग एवं संयुक्त अभ्यास के दौरान पीएलए को समझने में मदद मिलेगी.

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नई दिल्ली: उत्तरी सीमाओं के प्रति सेना के रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ चीन पर अपने पारंपरिक ध्यान से परे, भारत अब तिब्बती संस्कृति और भाषा के साथ-साथ मंदारिन की समझ को भी बढ़ा रहा है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि सेना ने हाल ही में प्रादेशिक सेना में अधिकारी रैंक पर मंदारिन- प्रशिक्षित कर्मियों को शामिल करने के लिए अपेक्षित मंजूरी प्राप्त की है.

चीनी भाषा के विशेषज्ञों से आवेदन आमंत्रित करने की अधिसूचना रविवार को जारी की गई. सेना पांच असैन्य उम्मीदवारों और एक पूर्व-सेवा कर्मियों की भर्ती पर विचार कर रही है.

इसके लिए किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से न्यूनतम 55 प्रतिशत अंकों के साथ चीनी भाषा में स्नातक या किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से मंदारिन में दो वर्षीय डिप्लोमा के साथ किसी भी विषय में स्नातक होना जरूरी है.

सूत्रों ने बताया कि उत्तरी सीमाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण के पुनर्मूल्यांकन के साथ, सेना ने अपने चीनी भाषा प्रशिक्षण को बढ़ा दिया है और अपनी समग्र रणनीति में चीनी भाषाविदों को उचित स्तर पर सामंजस्य रूप से शामिल किया है.

उन्होंने कहा कि सैन्य संगठन में मंदारिन विशेषज्ञता में सुधार के लिए कई उपाय किए गए हैं.

इसका उद्देश्य जूनियर और सीनियर सैन्य कमांडरों को जरूरत पड़ने पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कर्मियों के साथ जुड़ने के लिए सशक्त बनाना है. सूत्रों ने कहा कि चीनी भाषा की बेहतर समझ सेना के जवानों को अपनी बात को और अधिक स्पष्ट तरीके से बताने के लिए सशक्त बनाएगी.

संयोग से, चीनी भाषा विशेषज्ञ सामरिक स्तर पर एक कार्यात्मक आवश्यकता है और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने और सभी स्तरों पर पर्याप्त संख्या बनाए रखते हुए ऑपरेशनल और रणनीतिक स्तर पर विश्लेषण करने के लिए जरूरी है.

एक सूत्र ने कहा, ‘अपने विचारों के बेहतर आदान-प्रदान और कोर कमांडर स्तर की वार्ता, फ्लैग मीटिंग, संयुक्त अभ्यास, सीमा कर्मियों की बैठकों जैसी गतिविधियों में पीएलए को समझने के लिए अधिक मंदारिन विशेषज्ञों की जरूरत है’

सेना ने अपने कर्मियों को चीनी भाषा सिखाने के लिए राष्ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ गुजरात, और शिव नादर विश्वविद्यालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

इसके साथ ही पचमढ़ी में सेना के प्रशिक्षण स्कूल और स्कूल ऑफ फॉरेन लैंग्वेज, दिल्ली में रिक्तियों को बढ़ाना शामिल है. उत्तरी, पूर्वी और मध्य कमानों के भाषा स्कूलों में मंदारिन भाषा पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं.

सूत्रों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से भाषाविदों की क्षमता के स्तर का आकलन करने के लिए लैंगमा स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, दिल्ली जैसे संस्थानों के जरिए प्रशिक्षित सैनिकों का दक्षता-स्तर परीक्षण किया जाएगा.

पिछले साल अक्टूबर में दिप्रिंट ने बताया था कि सेना ने अपने युवा अधिकारियों और सैनिकों के लिए तिब्बती इतिहास, संस्कृति, भाषा और उस क्षेत्र की बेहतर समझ रखने के लिए तिब्बतोलॉजी में एक कोर्स शुरू किया है.

इस कोर्स को स्वैच्छिक आधार पर एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया था, ताकि भविष्य के नीति निर्माताओं को तिब्बती संस्कृति और वहां के लोगों की समझ को सुनिश्चित किया जा सके.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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