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Sunday, 22 December, 2024
होमडिफेंस'समय के साथ युद्ध के चरित्र में हो रहा है बदलाव, जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी'- मिलिट्री लिटफेस्ट में बोले राजनाथ

‘समय के साथ युद्ध के चरित्र में हो रहा है बदलाव, जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी’- मिलिट्री लिटफेस्ट में बोले राजनाथ

मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल में बोले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस उत्सव के जरिए हमारी कोशिश है कि हमारे देश की जनता, अलग-अलग स्तरों पर हमारी सेनाओं, और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चीजों को, अच्छी तरह से समझें और उसमें अपना योगदान भी दें.

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नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया और कहा कि यह उत्सव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां लोग किताबों के द्वारा सेना से जुड़ी सैद्धांतिक जानकारियां तो ले सकते हैं साथ ही सेना के अफसरों और जवानों से बातचीत कर उनके निजी और युद्ध के मैदान में हुए अनुभवों को भी जान सकते हैं. साथ ही उनके दिखाए गए करतबों से वे सेना के ऑपरेशंस, और उनकी कार्य प्रणालियों के बारे में भी जान सकते है.

रश्रा मंत्री बोले कि मिलिट्री लिटरेचर को आमजन से जोड़ने के पीछे, खुद मेरी भी गहरी रुचि रही है. मेरी बड़ी इच्छा है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां, हमारे देश के इतिहास, ख़ासकर सीमाई इतिहास को जानें और समझें.

इसलिए रक्षा मंत्री का पद ग्रहण करने के साथ ही, मैंने बकायदा एक कमेटी गठित की. यह हमारे सीमाई इतिहास, उससे जुड़े युद्ध, शूरवीरों के बलिदान, और उनके समर्पण को सरल, और सहज तरीके से लोगों के सामने लाने की दिशा में काम कर रही है. कोविड की वजह से हालांकि इस उत्सव की अधिकतर गोष्ठियां वर्चुअल होगीं. रक्षा मंत्री ने इस मौके पर कहा कि यह उत्सव, धीरे-धीरे सैन्य जीवन, और आम जनता को जोड़ने वाले सेतु के रूप में विकसित हो रहा है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस दौरान क्या क्या कहा पढ़िए यहां

1. आदरणीय…, बहनों और भाइयों,
2. आज, चौथे सैन्य साहित्य उत्सव में, आप सभी साहित्य प्रेमियों के बीच आकर मुझे बड़ी खुशी हो रही है. यह उत्सव, धीरे-धीरे सैन्य जीवन, और आम जनता को जोड़ने वाले सेतु के रूप में विकसित हो रहा है.

3. मैं इसके आयोजकों, इसमें भागीदार सेना से जुड़े लोगों, और इसमें शिरकत करने वाले लोगों को अपनी ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं.

4. साथियों, पिछली बार भी इस समारोह में मेरा शामिल होना लगभग तय था. परंतु संसद के अतिरिक्त सत्र चल जाने के कारण मैं आप लोगों के बीच आ नहीं सका था. बावजूद इसके, यहीं से बैठे-बैठे में वहां चल रही गतिविधियों का पूरा जायजा लिए जा रहा था.

5. हमारे सहयोगी, फेस्टिवल में चल रहे दिन भर के घटनाक्रम के बारे में मुझे पूरी जानकारी दे रहे थे. वह चाहे कोई बुक रिलीज हो, पैनल डिस्कशन हो, या फिर हमारे बहादुर जवानों द्वारा दिखाए जा रहे हैरतअंगेज़ कारनामे हों. यह सभी गतिविधियां, हमारी जनता को, खासकर युवा पीढ़ी को सैन्य जीवन से रूबरू कराती हैं, और उन्हें नजदीक से समझने का मौका देती हैं.

6. यहां लोग किताबों के द्वारा, सेना से जुड़ी सैद्धांतिक जानकारियां तो ले ही सकते हैं, सेना के अफसरों और जवानों से संवाद करके, उनके निजी और रियलिस्टिक अनुभवों को भी जान सकते हैं. इसके साथ ही उनके दिखाए गए करतबों से वे सेना के ऑपरेशंस, और उनकी कार्य प्रणालियों के बारे में भी बेहतर तरीके से जान सकते हैं.

7. यानी समग्रता में देखें, तो यह उत्सव युवाओं के लिए ज्ञान, अनुभव और देशप्रेम की संयुक्त स्थली है. ऐसे उत्सव आज के समय की जरूरत हैं.

8. हमारा पंजाब प्रांत, आज से नहीं, सदियों से शूर-वीरों का जन्मदाता रहा है. ऐसे में इस तरह के उत्सव की शुरुआत अगर कहीं से हो सकती थी, तो वह पंजाब प्रांत से ही हो सकती थी. यह आयोजन हमारे उन वारियर्स को श्रद्धांजलि भी है, जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया.

9. साथियों, हमारे देश में राष्ट्रीयता की भावना से Literature लिखे जाने की पुरानी परंपरा रही है. हिंदी हो या पंजाबी, या फिर गुजराती, लगभग सभी भाषाओं में ऐसे लेखन हुए हैं, जिन्होंने अपने समय में लोगों के अंदर स्वदेश प्रेम की भावना को जागृत और विकसित किया है.

10. प्राचीन काल में ‘चाणक्य’ जैसे विद्वान रहे हैं, जिन्होंने Warfare के बारे में लिखा है, जो कई दृष्टियों से आज भी प्रासंगिक हैं. वहीं आधुनिक भारत में देखें, तो ‘महात्मा गांधी’, ‘सुभाष चंद्र बोस’, ‘सरदार भगत सिंह’ और ‘लाला लाजपत राय’ से लेकर ‘प्रेमचंद’, ‘जयशंकर प्रसाद’ और ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ ने राष्ट्रीयता की जो अलख अपनी लेखनी से लगाई, वह आज भी पाठकों के ह्रदय को राष्ट्रप्रेम के प्रकाश से भर देती है.

11. जयशंकर प्रसाद के,

‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती,
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती’

जैसे उद्घोष ने, उस समय के युवाओं को एक नए जोश से भर दिया था. इसी तरह ‘गणेश शंकर विद्यार्थी’, और आगे चलकर ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ जैसे पत्रकार भी हुए, जिन्होंने पत्रकारिता को राष्ट्रीयता की दिशा में आगे बढ़ाया.

12. साथियों, मिलिट्री लिटरेचर को आमजन से जोड़ने के पीछे, खुद मेरी भी गहरी रुचि रही है. मेरी बड़ी इच्छा है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां, हमारे देश के इतिहास, ख़ासकर सीमाई इतिहास को जानें और समझें. इसलिए रक्षा मंत्री का पद ग्रहण करने के साथ ही, मैंने बकायदा एक कमेटी गठित की. यह हमारे सीमाई इतिहास, उससे जुड़े युद्ध, शूरवीरों के बलिदान, और उनके समर्पण को सरल, और सहज तरीके से लोगों के सामने लाने की दिशा में काम कर रही है.

13. रक्षा मंत्रालय से जुड़े थिंकटैंक, मिलिट्री, स्ट्रेटजी से जुड़ी Researches, Journals और Periodicals का ऑफलाइन और ऑनलाइन प्रकाशन करते हैं, ताकि इस विषय में रुचि रखने वाले लोगों तक, ऐसी सामग्रियां मुफ्त में पहुंच सकें. इन सब का उद्देश्य यह होता है, कि Researches और जनता के बीच का gap कम हो. समय-समय पर, मैं खुद इन कामों की समीक्षा करता रहता हूं और जरूरी दिशानिर्देश देता रहता हूं. मेरा प्रयास रहता है, कि हमारे देश की जनता, अलग-अलग स्तरों पर हमारी सेनाओं, और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चीजों को, अच्छी तरह से समझें और यथासंभव उसमें अपना योगदान भी दें.

14. इसके अलावा हमारी सेनाओं की Leaderships द्वारा लिखी गई बुक्स, जैसे जनरल वी.पी. मलिक की ‘कारगिल’, ले. जनरल हरबक्स सिंह की ‘War Despatches’ और रचना बिष्ट रावत की ‘The Brave’ जैसी किताबें, न केवल सेना से जुड़े लोगों, बल्कि उससे बाहर भी बहुत लोकप्रिय हुईं. ऐसे में यह फेस्टिवल, एक साथ हमें उन literatures से जुड़ने का मौका देता है, जो अपने आप में knowledge और experience का भंडार हैं.

15. साथियों, इस साल का यह आयोजन तो और भी खास हो जाता है, जब हमारा पूरा देश 1971 के युद्ध का स्वर्णिम वर्ष मना रहा है. इस युद्ध में हमारी सेनाओं ने अपने शौर्य और पराक्रम का जो प्रदर्शन किया था, वह आज भी हमारे लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है. हमारे अनेक ऐसे Veteran साथी होंगे, जो इस संग्राम के स्वयं साक्षी थे.

16. यहां मैं अपने युवा साथियों से कहना चाहूंगा, कि आप सभी, हमारे वेटरंस से, उनके अनुभवों को जानने का कोई मौका न छोड़ें. हमारे युवा पाएंगे, कि उनके real अनुभवों के सामने, मोबाइल में खेले जाने वाले war games कुछ भी नहीं हैं. हमारे वेटरंस इन अनुभवों के जीते-जागते दस्तावेज़ हैं, चलते-फिरते संस्थान हैं.

17. मैं इस फेस्टिवल में होने वाले इवेंट्स को, खासकर पैनल डिस्कशन के विषयों को देख रहा था, तो मुझे लगा कि इसका दायरा केवल मिलिट्री तक ही सीमित नहीं है. बल्कि मिलिट्री के साथ-साथ यह हमारे पूरे भारतीय-राष्ट्रीय-सांस्कृतिक परिदृश्य को अपने अंदर समेटता है.

18. ‘डिफेंस’ और ‘स्ट्रेटजी’ से जुड़े विषयों के साथ-साथ, देश की ‘संस्कृति’, ‘जय जवान-जय किसान’, ‘आत्मनिर्भरता’ और ‘बॉलीवुड’ जैसे विषयों पर संवाद, इस आयोजन को बहुत व्यापक बना देते हैं. इसके अलावा ‘जोश और जज़्बा’ वाले ‘मिलिट्री कॉम्बैट एपिसोड्स’ ‘Off Roading show’ ‘Bird watching’ ‘विंटेज कार रैली’ सारागढ़ी युद्ध पर ‘लाइट एंड साउंड शो’, ‘Army Dog Display’ जैसे अनेक अलग-अलग शोज़, ‘विविधता में एकता’ की भावना को दर्शाते हैं. यह सब वाकई इस आयोजन को ‘ग्रेटेस्ट लिटरेचर शो इन इंडिया’ बनाते हैं.

19. साथियों, एक और दृष्टिकोण से यह आयोजन मुझे बहुत महत्वपूर्ण लगता है. जैसे-जैसे समय बदल रहा है, खतरों और युद्धों के चरित्र में भी बदलाव आ रहा है. भविष्य में और भी सुरक्षा से जुड़े मुद्दे हमारे सामने आ सकते हैं. धीरे-धीरे संघर्ष इतना व्यापक होता जा रहा है, जिसकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी.

20. ‘साइबर’, ‘स्पेस’, ‘बायोलोजिकल’ और ‘इंफॉर्मेशन’ डोमेन भी अब इसकी जद में आ गए हैं. आज मोबाइल की मारक क्षमता, मिसाइल की मारक क्षमता से भी कहीं आगे बढ़ चुकी है. दुश्मन सीमा पार किए बिना हमारे लोगों तक अपनी पहुंच बना सकता है.

21. ऐसे में हम सबको बिना वर्दी वाली सेना की भूमिका में भी अनिवार्य रूप से उतरना है. मेरा लेखक साथियों से आग्रह है, कि वे इन विषयों पर भी अपनी कलम की ताकत का उपयोग करें. हम सभी इन ख़तरों से सचेत रहें. किसी भी गलत और भ्रामक सूचना से बचें, और औरों को भी बचाएं. इस तरह के उत्सव इस काम में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. आयोजकों से मैं कहना चाहूंगा, कि आगामी फेस्टिवल में आप लोग इसे थीम के रूप में रखें, और आम जनता को इसके बारे में जागरूक करने का प्रयास करें.

22. साथियों, हमारे यहां लिटरेरी और फ़िल्म फेस्टिवल्स का ट्रेंड तो रहा है, पर मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल अपने आप में बिल्कुल नई शुरुआत है. इसकी सफलता इसके प्रारंभ हो जाने में ही है.

23. मैं आगे इसकी और अधिक सफलता की शुभकामनाएं देते हुए, अपना निवेदन समाप्त करता हूं.
धन्यवाद!
जय हिंद!

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