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Wednesday, 18 December, 2024
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P75I टेंडर में ‘महत्वपूर्ण बदलाव’ की जरूरत – भारतीय नौसेना की पनडुब्बी योजनाओं पर रूस

सीनियर रूसी रक्षा अधिकारी एंड्री बारानोव ने कहा कि प्रोजेक्ट के लिए भारतीय नौसेना की अपेक्षा और इसकी टाइमलाईन मेल नहीं खाती है. मॉस्को की यह प्रमुख चिंता है.

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मॉस्को: भारत की अगली पीढ़ी की छह पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना अटकी हुई है. रूस ने सोमवार को कहा कि प्रोजेक्ट 75 इंडिया (P75I) के लिए भारतीय नौसेना के टेंडर में ‘काफी बदलाव’ की जरूरत है. इसके बिना ये प्रोग्राम सफल नहीं हो पाएगा.

रूस ने यह भी बताया कि दुनिया में किसी भी नौसेना बल के पास उस तरह की पनडुब्बियां नहीं हैं जिसकी भारत मांग कर रहा है. ऐसे में जहाजों को शुरुआत से डिजाइन और निर्मित किया जाना होगा.

रूस की सरकारी पनडुब्बी कंपनी डिजाइनर्स रुबिन डिजाइन ब्यूरो के डिप्टी डायरेक्टर, फॉरेन इकोनॉमिक एक्टीविटीज, एंड्री बारानोव ने दिप्रिंट के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘सबसे पहले प्रोजेक्ट से स्वीडिश बाहर निकले थे. उसके बाद जर्मनी और अब फ्रांस ने भी इससे अपना हाथ खींच लिया है. हम भी भाग नहीं ले रहे हैं.’

बारानोव मॉस्को में आयोजित होने वाली रक्षा प्रदर्शनी, आर्मी 2022 में बोल रहे थे.

जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था, ‘रणनीतिक साझेदारी’ के तहत आगे बढ़ाए जाने वाले इस P75I प्रोजेक्ट को एक विदेशी मूल उपकरण निर्माता (OEM) और एक भारतीय इकाई के बीच सहयोग के माध्यम से भारत में बनाया जाना है. यह प्रोजेक्ट फिलहाल अधर में है क्योंकि कई विदेशी कंपनियों ने इससे अपना हाथ खींच लिया है.

असहमत OEM में रूस के रोसोबोरोनएक्सपोर्ट रुबिन डिजाइन ब्यूरो, जर्मनी के थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स, फ्रांस के नेवल ग्रुप, स्पेन के नवंतिया, दक्षिण कोरिया के देवू शिपबिल्डिंग एंड मरीन इंजीनियरिंग और स्वीडिश फर्म SAAB थे.

2109 में दौड़ से बाहर होने वालों में SAAB सबसे पहले थे. एक औपचारिक टेंडर जारी होने से पहले ही, रणनीतिक साझेदारी में ‘असंतुलन’ का हवाला देते हुए यह कंपनी प्रोजेक्ट से बाहर हो गई थी.


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‘किसी नौसेना बल के पास ऐसी पनडुब्बियां नहीं’

बारानोव ने कहा कि उनके ब्यूरो को पहली बार 2008 में P75I प्रोजेक्ट के लिए भारत से कागजात मिले थे.

उन्होंने कहा, ‘आप देखिए, RPF (प्रस्ताव के लिए अनुरोध) के अंतिम संस्करण को जारी किए कितने साल बीत चुके हैं. इसलिए हमें लगता है कि P75I में रूसी भागीदारी के बारे में एक पूरी किताब लिखी जा सकती है.’

बारानोव ने कहा कि रूस की प्रमुख चिंता यह है कि भारतीय नौसेना की अपेक्षाएं और उसके लिए समय-सीमा मेल नहीं खाती है.

उन्होंने बताया, ‘भारतीय नौसेना एआईपी (एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन) के साथ, शक्तिशाली मिसाइलों, हथियारों को रखने और घातक मारक क्षमता वाली एक बेहद अत्याधुनिक पनडुब्बी चाहती है. विश्व की किसी भी नौसेना के पास समान पनडुब्बियों का प्रोटोटाइप नहीं है. हम एक बिल्कुल नए उत्पाद के बनाने के बारे में बात कर रहे हैं.’

यह रेखांकित करते हुए कि रुबिन डिजाइन ब्यूरो कंपनी 120 सालों से जहाजों और पनडुब्बियों को डिजाइन करती आ रही है. बारानोव ने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती हमेशा पहली शिप बनाने की होती है. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी चुनौतियां जटिल सिस्टम को तैयार करते समय आती ही है. P75I के तहत पहला शिप तैयार करने में समय लगेगा.

वह कहते हैं, ‘लेकिन आरएफपी में जाहिर की गई अपेक्षाएं बहुत सख्त समय अवधि की मांग करती हैं. और डिजाइनर को बहुत सारी जिम्मेदारी सौंपी गई हैं. साथ ही, भारत में होने वाली निर्माण प्रक्रिया पर डिजाइनर का कोई दखल नहीं होगा.’

बारानोव ने कहा, ‘प्रमुख जरूरत या अपेक्षा (आरएफपी में) यह है कि भारत में पनडुब्बियों का निर्माण किया जाना है. और अगर वो समय सीमा पर पूरी नहीं होती है, तो जुर्माना बहुत ज्यादा है. हम शुरू से ही कहते रहे हैं कि इतने कम समय में पहली पनडुब्बी बनाना संभव नहीं है. इस चिंता पर विचार नहीं किया गया और एक आरएफपी जारी किया गया. और इसलिए रूस ने भारतीय नौसेना को इस प्रोजेक्ट में भाग न लेने की अपनी इच्छा जाहिर की.’

सीनियर रूसी रक्षा अधिकारी ने यह भी कहा कि ये सिर्फ रूस की चिंताएं नहीं हैं बल्कि फ्रांस, जर्मन और स्वीडन ने भी इनके बारे में बात की थी.

पता चला है कि भारतीय नौसेना कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर होने के पांच साल के भीतर पहली पनडुब्बी की सप्लाई चाहती है. जिसे रणनीतिक साझेदारी के जरिए अमल में लाया जाएगा.

वह कहते हैं, ‘एक डिजाइन के रूप में पनडुब्बी का विचार बहुत अच्छा था लेकिन मेक इन इंडिया के तहत कार्यान्वयन का विचार ठीक नहीं है. इसलिए फिलहाल इस पर कुछ भी नहीं हो रहा है और मुझे लगता है कि इस प्रक्रिया में बिना किसी बड़े बदलाव के आगे कुछ होगा भी नहीं.’

‘भारत में अभी तक कई प्रणालियों का परीक्षण नहीं किया गया’

सीनियर रूसी रक्षा अधिकारी ने कहा कि भारत पनडुब्बियों के साथ एआईपी, प्रोपलसन मोटर्स और अन्य ऐसे कई सिस्टम को एकीकृत करना चाहता है जिनका निर्माण या परीक्षण अभी तक भारत में नहीं किया गया है.

जारी किए गए आरएफपी के प्रति इस तरह की खराब प्रतिक्रिया को देखकर भारतीय नौसेना ने आगे बढ़कर बोलियां जमा करने की तारीख को जून के अंत से आगे बढ़ाते हुए इस साल दिसंबर के अंत तक कर दिया.

विदेशी कंपनियों ने रणनीतिक साझेदारी में बदलाव के साथ-साथ इन-सर्विस एआईपी सिस्टम के लिए क्लॉज को हटाने की मांग की है. नौसेना की महत्वाकांक्षी 30 साल की पनडुब्बी योजना अटकी हुई है और लक्ष्य से दूर है.

2030 में समाप्त होने वाली महत्वाकांक्षी 30-वर्षीय योजना के तहत भारत को चीन और पाकिस्तान के खिलाफ एक प्रभावी निवारक के रूप में 24 पनडुब्बियों -18 पारंपरिक और छह परमाणु-संचालित पनडुब्बियां (SSNs) – का निर्माण करना था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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