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Wednesday, 27 August, 2025
होमडिफेंस‘न सैनिकों की संख्या, न हथियार—मायने रखती है तकनीक, लंबे संघर्षों के लिए हो तैयारी’—राजनाथ सिंह

‘न सैनिकों की संख्या, न हथियार—मायने रखती है तकनीक, लंबे संघर्षों के लिए हो तैयारी’—राजनाथ सिंह

‘रण संवाद’ सेमिनार में रक्षा मंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के कारण बताए, समझाया कैसे युद्धकला रियल टाइम में बदली और तकनीक व साइबर ढांचे के अपग्रेडेशन की ज़रूरत पर जोर दिया.

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महू: रूस-यूक्रेन युद्ध और ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण देते हुए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को कहा कि युद्ध का स्वरूप संघर्ष के दौरान भी तेज़ी से बदल रहा है और भारत को दो महीने से लेकर पांच साल तक चलने वाले युद्ध के लिए तैयार रहना होगा. उन्होंने यह भी कहा कि भारत को तकनीक को तेज़ी से अपनाना होगा.

रक्षा मंत्री ने संयुक्त लड़ाकू क्षमताओं (जॉइंट फाइटिंग कैपेबिलिटीज़) पर जोर दिया, जिसे उन्होंने इस साल मई में ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के प्रमुख कारणों में से एक बताया.

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि संघर्ष के दौरान भी संवाद (डायलॉग) बेहद ज़रूरी है.

सिंह ने कहा कि आज के दौर में युद्ध इतने अचानक और अनिश्चित हो गए हैं कि यह बताना मुश्किल है कि कोई युद्ध कब खत्म होगा और कितने समय तक चलेगा.

उन्होंने कहा, “इसलिए हमें हर स्थिति के लिए तैयार रहना होगा. हमें इस तरह तैयार रहना चाहिए कि हमारी मौजूदा क्षमता पर्याप्त हो. यानी अगर कोई युद्ध दो महीने, चार महीने, एक साल, दो साल, यहां तक कि पांच साल तक भी चलता है तो हम उसके लिए पूरी तरह तैयार हों.” वे मध्यप्रदेश के महू में हो रहे तीनों सेनाओं के संयुक्त सेमिनार ‘रण संवाद’ के समापन दिवस पर बोल रहे थे.

रणनीति की बात करते हुए उन्होंने कहा, “सिर्फ सैनिकों की संख्या या हथियारों के भंडार का आकार अब काफी नहीं है. साइबर युद्ध, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मानव रहित हवाई वाहन (ड्रोन) और सैटेलाइट-आधारित निगरानी भविष्य के युद्धों को आकार दे रहे हैं. प्रिसिजन-गाइडेड हथियार, रीयल-टाइम इंटेलिजेंस और डेटा-आधारित जानकारी अब किसी भी संघर्ष में सफलता की कुंजी बन चुके हैं.”

रूस-यूक्रेन युद्ध पर उन्होंने कहा, “जब यह संघर्ष 2022 में शुरू हुआ था, तब यह मुख्य रूप से पारंपरिक युद्ध था, जिसमें टैंक, तोप और राइफल शामिल थे. ज़मीनी सैनिक आमने-सामने की लड़ाई में लगे थे, लेकिन तीन साल में इस युद्ध की प्रकृति पूरी तरह बदल गई. अब हम देख रहे हैं कि इसमें तरह-तरह की युद्ध प्रणालियां और सिद्धांत इस्तेमाल हो रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “आज ड्रोन, सेंसर-आधारित हथियार और प्रिसिजन-गाइडेड मिसाइलें निर्णायक भूमिका निभा रही हैं. यह बदलाव दिखाता है कि युद्ध की पद्धति और रणनीतियां कितनी तेज़ी से बदल सकती हैं. इससे यह भी साफ है कि भविष्य के किसी भी संघर्ष में हमें केवल पारंपरिक तरीकों पर निर्भर नहीं रहना होगा, बल्कि तकनीकी प्रगति के साथ लगातार कदम मिलाना होगा.”

उन्होंने कहा कि तकनीक और अचानक हमले (सरप्राइज़) का मेल युद्ध को पहले से कहीं ज्यादा जटिल और अप्रत्याशित बना रहा है.

उन्होंने समझाया, “इसी वजह से हमें न केवल मौजूदा तकनीकों में महारत हासिल करनी होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हम नई खोजों और अनदेखी चुनौतियों से निपटने के लिए लगातार तैयार रहें.”

उन्होंने आगे कहा, “इस सरप्राइज़ का सबसे खास पहलू यह है कि इसका कोई स्थायी रूप नहीं होता. यह हमेशा बदलता रहता है और अपने साथ अनिश्चितता लेकर आता है. यही अनिश्चितता दुश्मनों को उलझा देती है और कई बार युद्ध के नतीजे का निर्णायक कारण बन जाती है.”

ऑपरेशन सिंदूर की बात करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें एक अहम सबक सामने आया—आज के दौर में सूचना और साइबर युद्ध का महत्व.

उन्होंने जोर देकर कहा, “रक्षा क्षमताओं को बढ़ाते हुए, उतना ही ज़रूरी है कि हमारी सूचना और साइबर अवसंरचना और भी मज़बूत बने. मेरा मानना है कि इस मुद्दे पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए.”

मंत्री के मुताबिक, ऑपरेशन सिंदूर देशी प्लेटफॉर्म, उपकरण और हथियार प्रणालियों की सफलता का बेहतरीन उदाहरण बनकर उभरा है.

उन्होंने कहा, “इसकी उपलब्धियों ने एक बार फिर यह साबित किया है कि आने वाले समय में आत्मनिर्भरता बिल्कुल अनिवार्य है. हम आत्मनिर्भरता की राह पर काफी आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन अभी हमें लंबा रास्ता तय करना है.”

ऑपरेशन सिंदूर को तकनीक-आधारित बताते हुए सिंह ने कहा कि चाहे आक्रामक या रक्षात्मक तकनीकें हों, संचालन की रणनीति, तेज़ और कारगर युद्ध लॉजिस्टिक्स, सेनाओं का सहज एकीकरण या खुफिया व निगरानी से जुड़े मुद्दे—इस ऑपरेशन ने हमें ढेर सारे सबक दिए.

उन्होंने कहा, “इसने हमें यह झलक दी कि भविष्य के किसी भी संघर्ष में किस तरह की चुनौतियां आ सकती हैं और उनसे निपटने के क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं. यह हमारे लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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