नई दिल्ली: भारत-चीन के बीच सोमवार को 7वें दौर की कोर कमांडर स्तरीय की वार्ता की तैयारियों के बीच यह सुनिश्चित करने के प्रयास भी हो रहे हैं कि पूर्वी लद्दाख में तैनात प्रत्येक भारतीय सैनिक के अग्रिम मोर्चों पर डटे रहने के लिए सभी बुनियादी जरूरतें पूरी की जा सकें, जहां तापमान पहले ही शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे गिरना शुरू हो गया है.
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि सैनिकों का रोटेशन सुनिश्चित हो.
उन्होंने कहा कि अग्रिम तैयारी के तौर पर अगले 14 महीनों के लिए रसद सामग्री खरीदी और लद्दाख तक पहुंचाई जा चुकी है, और इस साल मई से इस क्षेत्र में तैनात 40,000 अतिरिक्त सैनिकों की रहने व्यवस्था करने के लिए एक बड़ी लॉजिस्टिक पहल जारी है.
एक सूत्र ने कहा, ‘रसद आपूर्ति की व्यवस्था काफी हद तक हो चुकी है. कुछ समस्याएं आ रही हैं लेकिन समय रहते उन्हें सुलझाया जा रहा है. सैनिकों के लिए बेहतर से बेहतर इंतजाम किए जा रहे हैं.’
एक दूसरे सूत्र ने कहा कि असल जरूरत तो ‘सियाचिन जैसी’ तैयारियों की है जबकि एक अन्य ने इस पर जोर दिया कि किसी भी सैन्य अभियान के दौरान सैनिकों को मोर्चे पर तैनात करना बहुत कठिन कार्य नहीं होता बल्कि लॉजिस्टिक बैक-अप मुहैया कराना एक चुनौती होता है.
1999 में कारगिल जंग के बाद सीमा पर सबसे बड़े गतिरोध का सामना कर रही सेना ने अन्य जरूरी सामानों के अलावा बेहद ठंडे इलाकों के लिहाज से उपयोगी कपड़ों और प्री-फैब्रिकेटेड टेंट की आपातकालीन खरीद की है.
सेना के उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. सैनी ने शनिवार को कहा था कि अभी जबकि बड़ी संख्या में सैनिक अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात हैं, जहां तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है, भारत उनके लिए ‘उपयुक्त स्वदेशी विकल्पों के अभाव’ में ठंडे क्षेत्रों में इस्तेमाल योग्य कपड़ों और अन्य उपकरणों का आयात ही कर रहा है.’
केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों का आकलन
अगस्त के अंत और सितंबर के शुरू में केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने लॉजिस्टिक सुविधा की स्थिति का आकलन किया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि किसी भी प्रकार की कमी को कैसे दूर किया जा सकता है.
सूत्रों ने कहा कि एजेंसियों ने इस दौरान कई मुद्दों पर ध्यान आकृष्ट किया और उसके अनुरूप ही यह सुनिश्चित करने के लिए रसद आपूर्ति का काम तेज कर दिया गया कि सर्दियों से पहले सभी तैयारियां पूरी की जा सकें.
एक सूत्र ने कहा, ‘एलएसी पर चीन की आक्रामकता के कारण 4-5 मिनी सियाचिन जैसी लॉजिस्टिक चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं. ऐसे में सैनिकों की जरूरतें पूरी करने के लिए सियाचिन जैसी रसद आपूर्ति व्यवस्था की जरूरत है.
सूत्र ने कहा कि राशन मिलना एक बात है, लेकिन किचन की व्यवस्था करना एकदम अलग बात है.
इस सूत्र ने यह भी कहा कि एक और महत्वपूर्ण पहलू है सैनिकों का रोटेशन, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे पूरी तरह फिट रहें और बेहद ऊंचाई वाले इलाके की प्रतिकूल परिस्थितियों और अत्यधिक ठंड का शिकार न बनें.
सूत्र ने कहा, ‘रोटेशन प्रक्रिया पर काम किया जा रहा है. भारतीय वायु सेना को हर तरह की रसद आपूर्ति की जिम्मेदारी मिली है और वह बेहतर ढंग से काम कर रही है.’
दिप्रिंट ने पहले ही बताया था कि मौजूदा तनावपूर्ण हालात का एक संभावित नतीजा यह भी हो सकता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के लद्दाख सेक्टर में सैन्य बलों की स्थायी तैनाती बढ़ा दी जाए, जिसे एक तरह एलएसी पर भी एलओसी जैसी स्थिति ही कहा जा सकता है.
तैनाती बढ़ने के साथ कुछ ठिकानों पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के संभावित अतिक्रमण का जोखिम घटाने के लिए उन्हें खुला छोड़ने के बजाये चौकियां स्थापित की जा सकती हैं.
मौजूदा तनाव को लेकर तत्काल कोई समाधान नजर न आने के मद्देनजर सेना ने लद्दाख को लेकर अगली गर्मियों के लिए रणनीति तैयार करना भी शुरू कर दिया है.
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