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Saturday, 21 December, 2024
होमडिफेंसLoC पर खामोशी लेकिन कश्मीर में इस साल कम से कम 40 युवा आतंकी समूहों से जुड़े, 50 ‘लापता’

LoC पर खामोशी लेकिन कश्मीर में इस साल कम से कम 40 युवा आतंकी समूहों से जुड़े, 50 ‘लापता’

लापता लोगों में से कई के आतंकी समूहों में शामिल होने का संदेह है. आतंकी समूह में भर्ती होने वालों का ट्रेंड ‘तकरीबन 2020 जैसा ही है’ और इसे एक चिंता का विषय माना जा रहा है.

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नई दिल्ली: पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम के बाद नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर बंदूकें तो लगभग खामोश हो गई हैं लेकिन कोविड-19 महामारी और उसके कारण लागू लॉकडाउन के बावजूद कश्मीर में आतंकी भर्ती जारी है.

सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, इस साल कम से कम 40 युवा आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं, जबकि 50 लोग ‘लापता’ हैं. ‘लापता’ होने वाले कई लोगों के आतंकवादी समूहों में शामिल होने का संदेह है लेकिन पुलिस और सुरक्षा बलों ने आधिकारिक आंकड़ों में इन्हें शामिल नहीं किया है क्योंकि आतंकी भर्ती की अभी तक पुष्टि नहीं हुई है.

शीर्ष स्तर के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस साल करीब 40 लोग ऐसे हैं जो आतंकी समूहों, खासकर लश्कर-ए-तैयबा और अल-बद्र में शामिल हुए हैं. वहीं करीब 50 अन्य अब भी लापता हैं.’

भर्ती के इस ट्रेंड की पुष्टि रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़ी एक अन्य शाखा ने भी की, जो चरमपंथ-विरोधी और आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल है.

एक सूत्र ने कहा, ‘हां, हम भर्ती की यह प्रवृत्ति रोकने में सक्षम नहीं रहे हैं. आंकड़ों का ट्रेंड 2020 के जैसा ही रहा है और यह चिंता का विषय है.’

इस बीच, कश्मीर में सक्रिय रहे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठनों की तरफ से मोर्चा संभालने के लिए अलग-अलग नामों वाले कई नए समूह सामने आए हैं. यह कथित तौर पर पड़ोसी देश को इन आतंकी समूहों से कोई नाता न होने का दावा करने का मौका देगा.

दिप्रिंट ने 2 जून को रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि 25 फरवरी के बाद से संघर्ष विराम का उल्लंघन नहीं हुआ है लेकिन कश्मीर में आतंकी तत्वों को हवाला ऑपरेटरों और अन्य माध्यमों से पाकिस्तान का समर्थन जारी है. हालांकि, यह सहयोग पहले की तुलना में काफी घटा है.

संयोग से उसी रात पुलवामा जिले में आतंकियों ने भाजपा नेता राकेश पंडिता की गोली मारकर हत्या कर दी थी.


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पाकिस्तान की शांति पहल के पीछे एफएटीएफ फैक्टर अहम

रक्षा और सुरक्षा सूत्रों का मानना है कि पाकिस्तान की शांति की पहल, जिसके कारण एलओसी पर संघर्ष विराम कायम है, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की कार्रवाई से बचने की उसकी कवायद का हिस्सा है. एफएटीएफ मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग के खिलाफ काम करने वाला पेरिस स्थित एक वैश्विक संगठन है.

पाकिस्तान को 2018 में एफएटीएफ की ‘ग्रे लिस्ट’ में रखा गया था और तब से ही वह इससे बाहर आने की जुगत में लगा है.

मनी लॉन्ड्रिंग पर एफएटीएफ की एक क्षेत्रीय इकाई एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) ने सोमवार को निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के मामले में पाकिस्तान का ‘आवश्यक कदम बढ़ाने’ वाला दर्जा बरकरार रखा. हालांकि, इसने वैश्विक निगरानी संस्था की 40 तकनीकी सिफारिशों में से 21 के आधार पर देश की रेटिंग में कोई सुधार नहीं किया.

एक अन्य सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘पाकिस्तान की शांति की पहल खुद को एफएटीएफ की ग्रे सूची से बाहर निकालने और दुनिया को यह दिखाने की एक चाल है कि वह आतंकवाद का समर्थन नहीं कर रहा और वास्तव में भारत के साथ शांति चाहता है. निश्चित तौर पर यही वजह है कि फरवरी अंत से घुसपैठ की कोई कोशिश नहीं हुई है या न ही कोई संघर्ष विराम उल्लंघन हुआ है लेकिन सीमा पार से कश्मीर के आतंकी समूहों को समर्थन जारी है.’


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प्रमुख आतंकी संगठनों की ढाल बने कई समूह

सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान यह सुनिश्चित करने की जुगत में लगा है कि कश्मीर में आतंकवाद तो जारी रहे लेकिन किसी भी हमले के तार उसके यहां से न जुड़ पाएं.

पूर्व में उद्धृत सूत्र ने बताया, ‘अगर कश्मीर के इतिहास को देखते हुए बात करें तो सुरक्षा के लिहाज से आतंकवाद की स्थिति नियंत्रण में है. यह स्थिति खासकर इस वजह से बन पाई है क्योंकि आईएसआई और पाकिस्तानी सेना की तरफ से आतंकी समूहों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि एलओसी पर ऐसी कोई बड़ी घुसपैठ या बड़ा हमला नहीं होना चाहिए जिससे कश्मीर में आतंकवाद सुर्खियों में आए.’

इसके लिए पाकिस्तान 2020 की शुरुआत से ही प्रमुख आतंकी समूहों के लिए मददगार कई मोर्चे तैयार करने में सहयोग दे रहा है. ये मोर्चे इन समूहों को स्थानीय और ‘क्रांतिकारी’ के तौर पर स्थापित करते हैं.

सूत्र ने बताया, ‘आईएसआई के सीधे समर्थन से पाकिस्तान से संचालित होने वाले कई प्रमुख आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद आदि को अब अजीबो-गरीब नाम वाले फ्रंटल संगठन मिल गए हैं ताकि यह दिखाया जा सके कि कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के पीछे पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं है.’

हाल में अधिकांश युवा द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) में शामिल हुए हैं, जो लश्कर के लिए काम करने वाला गुट है. लश्कर-ए-तैयबा की ढाल बना एक और गुट पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट है, जिसने पंडिता पर हमले का दावा किया था.

इसी तरह हरकत-उल-मुजाहिद्दीन की कुख्यात 313 ब्रिगेड को अब जम्मू-कश्मीर गजनवी फोर्स के नाम से जाना जाता है.

लश्कर-ए-मुस्तफा, जैश-ए-मुहम्मद का मोर्चा संभालने वाला गुट है, जो 2019 में पुलवामा हमले के बाद सुर्खियों में आया था.


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हिजबुल में भर्ती और आतंकी हमलों में गिरावट आई

इस बीच, आतंकी समूह हिजबुल मुजाहिद्दीन के अभियानों और इसमें होने वाली भर्ती में गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर स्थित इसके मुख्यालय में कायम तनाव है.

इस क्षेत्र में सक्रिय शुरुआती आतंकी समूहों में से एक हिजबुल मुजाहिद्दीन को काफी हद तक स्थानीय माना जाता है क्योंकि इसे 1989 में कश्मीरियों ने ही बनाया था, जो हथियारों के प्रशिक्षण के लिए पीओके पार करके गए थे.

हालांकि, इसमें पीओके के कश्मीरियों का एक वर्ग भी शामिल हैं, जिन्हें पीर पंजाल के नाम से जाना जाता है. साथ ही इसके सदस्यों में पाकिस्तानी पंजाबी भी शामिल हैं.

सूत्रों ने बताया कि पीओके में रैंक को लेकर इनके बीच व्यापक असंतोष है और सीमा पार करके जाने वालों में तमाम अब जीविका चलाने के लिए सामान्य कामकाज कर रहे हैं.

एक सूत्र ने कहा, ‘इनपुट के मुताबिक, पीओके में हिजबुल मुजाहिद्दीन कैडरों को दिए जाने वाले वेतन को कई सालों से संशोधित नहीं किया गया है. अकेले पुरुषों के लिए वेतन अब भी लगभग 10,000 से 11,000 पाकिस्तानी रुपये (पीकेआर) यानी करीब 6,000 रुपये है और परिवार के साथ वाले सदस्यों के लिए वेतन करीब 17,000 पीकेआर तक है.’


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आतंकी भर्ती चिंता का विषय

सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हालांकि, आतंकी भर्ती में कोई वृद्धि भले ही न हुई हो लेकिन भर्ती लगातार जारी रहना अब भी चिंता का विषय बना हुआ है.

एक सूत्र ने कहा, ‘नई भर्ती वाले इन आतंकियों के पास शुरू में तो हथियार भी नहीं होते हैं और उनमें से कई को दो हफ्ते बाद पिस्तौलें थमाई जाती हैं. पिछले साल से अब तक कई मुठभेड़ों में मारे गए आतंकियों के पास से पिस्तौलें बरामद हुई हैं. एक तथ्य यह भी है कि ये युवा आतंकी अन्य मामलों की तरह आत्मसमर्पण करने के बजाये पिस्तौल के बूते पर लड़कर मर जाना ज्यादा पसंद करते हैं, जो यह दर्शाता है कि इनका किस हद तक ब्रेनवॉश किया गया है.’

एक अन्य सूत्र के अनुसार, सफलता को इस आधार पर मापने की सोच बदलने की जरूरत है कि कितने आतंकवादी मारे गए, इसके बजाये यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए कि भर्ती में कमी आए. सूत्र ने कहा, ‘मौत के आधार वाले ग्रेडिंग सिस्टम को बदलने की जरूरत है.’

संयोगवश 15वीं कोर के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी.एस. राजू ने हथियारों और गोला-बारूद की बरामदगी के आधार पर अंक देने की व्यवस्था को वापस ले लिया था. विभिन्न अभियानों के दौरान प्रत्येक इकाई को मिलने वाले अंकों के आधार पर उन्हें प्रशस्ति पत्र और अन्य सम्मान आदि दिए जाते हैं.

इस बीच, सरकार आतंकी गुटों में नई भर्ती वाले युवाओं के लिए आत्मसमर्पण की नीति पर भी काम कर रही है लेकिन इसे अभी गृह और रक्षा मंत्रालय की तरफ से अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में अक्टूबर की शुरुआत तक 131 कश्मीरी युवा आतंकी समूहों में शामिल हुए थे. यह आंकड़ा 2019 में हुई 117 भर्तियों से ज्यादा था.

पिछले कुछ वर्षों में सबसे अधिक भर्ती 2018 में हुई, जब 214 युवा आतंकी समूहों का हिस्सा बने.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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