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Thursday, 25 April, 2024
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LOC, कैमरा, एक्शन- बॉर्डर सुरक्षा में भारतीय सेना के लिए कैसे मददगार साबित हो रहे हैं हाई-टेक उपकरण

मौजूदा विशेष वित्तीय शक्तियों के अलावा आपातकालीन खरीद अधिकारों ने सेना को एलओसी और एलएसी पर तैनात इन्फैंटरी जवानों को तकनीकी तौर पर अपग्रेड करने में काफी मदद की है.

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पुंछ/भीम्बर गली: पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे ही सही अग्रिम मोर्चों पर तैनात भारतीय सैनिकों ने प्रौद्योगिकी के लिहाज से व्यापक स्तर पर बदलाव देखा है. यह केवल हथियारों, हल्के बुलेटप्रूफ जैकेट, बैलिस्टिक हेलमेट आदि तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन्हें अपने ऑपरेशनल एरिया के बारे में तत्कालीन स्थितियों से भी अवगत कराने मददगार बना है.

पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा (एलओसी) हो या चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) हो, इन्फैंटरी जवान औसतन बेहतर ढंग से सुसज्जित है, जो कि पहले विशेष बलों तक ही सीमित होता है.

हाल ही में नियंत्रण रेखा के दौरे पर पहुंचे दिप्रिंट ने यहां तैनात नई प्रणालियों को देखा, जो सैनिक को अपने आसपास के हालात के बारे में अधिक जागरूक बनाती है, साथ ही सुरक्षा और फायरिंग के लिहाज से आधुनिक उपकरण भी मुहैया कराती हैं.

रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक सूत्र ने बताया, ‘एलओसी पर तैनात पैदल सेना के जवानों ने वास्तव में व्यापक बदलाव देखा है. वह बेहतर ढंग से हथियारों से सुसज्जित है, उनके पास हल्के उपकरण हैं, और अपने ऑपरेशन एरिया के बारे में अच्छी तरह जानने-समझने की सुविधा है.’

सूत्र बताते हैं कि तकनीकी स्तर पर इस अपग्रेडेशन की सबसे बड़ी वजह आपातकालीन वित्तीय शक्तियां हैं जो पहले से सैन्य कमांडरों को मिली हुई विशेष वित्तीय शक्तियों (एसीएसएफपी) के अलावा सैन्य मुख्यालयों को उपकरणों की खरीद के लिए दी गई हैं.

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2016 की सर्जिकल स्ट्राइक के तुरंत बाद और फिर बालाकोट हमले और एलएसी के साथ चीन के साथ जारी गतिरोध के मद्देनजर भी सैन्य सेवाओं को आपातकालीन खरीद के अधिकार दिए गए हैं.

सभी सात कमांड में से उत्तरी कमान को आपातकालीन खरीद और एसीएसएफपी दोनों के मामले में सबसे बड़ा हिस्सा मिला हुआ है.

इस साल मार्च में नरेंद्र मोदी सरकार ने सेना, वायु सेना और नौसेना के कमान प्रमुखों को पूंजीगत खरीद के तहत अपने विवेक से 100 करोड़ रुपये तक खर्च करने की वित्तीय शक्तियां देने के फैसला किया था, जो किसी कमांड की खास जरूरत के मुताबिक उपकरणों की खरीद का रास्ता साफ करेगा.

सैनिकों के पास बेहतर उपकरण

सबसे बड़ा बदलाव तो अग्रिम मोर्चों पर तैनात सैनिकों ने गोलीबारी वाले क्षेत्रों में देखा है.

सैनिकों को सिग 716 राइफल के रूप में अधिक घातक मारक क्षमता वाला हथियार मिल गया है, जिसे आपातकालीन वित्तीय अधिकारों के तहत अमेरिका से खरीदा गया था.


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एक सूत्र ने बताया, ‘एके-47 की तुलना में यह राइफल बेहतर रेंज वाली, सटीक और ज्यादा घातक है. यह इंसास से काफी बेहतर है.’

एक और बड़ा बदलाव है बुलेटप्रूफ जैकेट. सैनिक अब बहुत हल्की जैकेट पहनते हैं, जिसका वजन लगभग 3.3 किलोग्राम है, जो उनके चलने-फिरने को आसान बना देती है.

चूंकि अग्रिम मोर्चे वाले सैनिक जिस क्षेत्र में तैनात हैं, वह काफी फिसलन भरा और पहाड़ी इलाका है, इसलिए उन्हें सुरक्षात्मक पैड भी दिए गए हैं जो कभी भी गिरने पर चोट का जोखिम घटाते हैं और साथ ही जरूरत पड़ने पर रेंगकर चलने में भी मददगार होते हैं.

पहले इस तरह की चीजें बहुत सीमित संख्या में होती थीं, लेकिन अब अधिकांश सैनिकों के पास हैं. सैनिकों के पास अब बैलिस्टिक हेलमेट भी हैं जो पहले के विपरीत उनके सिर को चारों ओर से सुरक्षा प्रदान करते हैं.

उत्तरी कमान ने भी सीमित संख्या में ही यूएस-निर्मित एक्सफिल बैलिस्टिक हेलमेट की खरीद की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है, जिसे दुनिया में सबसे बेहतरीन माना जाता है.

पहले ये हेलमेट सेना के विशेष बलों की तरफ से खरीदे जाते थे, लेकिन अब नियमित इन्फैंटरी जवानों के चुनींदा समूहों के लिए उपलब्ध हैं.

इन हेलमेटों को नाइट विजन कैमरे के साथ भी फिक्स किया जा सकता है और विचार यह है कि नियंत्रण रेखा पर ऑपरेशन में हिस्सा लेने वाले सभी सैनिकों के पास अलग-अलग सुरक्षित संचार सेट हों.

कैमरों और ड्रोन पर खर्च

सेना ने न केवल सैनिकों को बेहतर हथियारों से लैस करने और उनका बोझ घटाने पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि बेहतर स्थितिजन्य जानकारियां मुहैया कराने पर भी उसका पूरा जोर है.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘इन सभी को दुश्मन से बेहतर तरीके से लड़ने में मदद करने के लिए तैयार किया गया है.’

सबसे बड़ा बदलाव है सामरिक ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया जाना. ये ड्रोन अलग-अलग प्रकार के होते हैं और कोई भी सैनिक इन्हें अपने आसपास के क्षेत्र की निगरानी के लिए आसानी से ऑपरेट कर सकता है.

इसके साथ ही एलओसी पर विभिन्न जगहों पर हाई-टेक कैमरे लगाने पर किया गया खर्च भी एक बड़ा फैक्टर रहा है.

इन कैमरों में नाइट विजन के साथ-साथ इन्फ्रा-रेड क्षमताएं होती हैं और मूलत: ये घुसपैठ का पता लगाने में काम आते हैं.

एक तीसरे सूत्र ने कहा, ‘हम लंबे समय से कैमरों का उपयोग कर रहे हैं लेकिन अब हमारे पास इसका कवरेज व्यापक है. अगला कदम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सक्षम कैमरों का इस्तेमाल करना हैं जो घुसपैठ का पता लगते ही तुरंत अलार्म बजाकर सतर्क कर सकेंगे.’

नियंत्रण रेखा पर सेना की विभिन्न चौकियों पर लगाए गए कुछ खास क्षमताओं वाले स्वदेश निर्मित कैमरों में काफी ज्यादा जूम करने की क्षमता है और यह पाकिस्तानी इलाकों में चलने वाली गतिविधियों का भी पता लगा सकते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान के पास भी ऐसे कैमरे हैं, ऊपर उद्धृत एक सूत्र ने कहा, ‘पाकिस्तानियों के पास भी कैमरे हैं पर इनकी आपूर्ति सीमित है. हमारे लिए अच्छी बात यह है कि हमारे उत्पाद स्वदेश निर्मित हैं और हाई रेंज और ज्यादा क्लीयरिटी वाले हैं.’

इंटीग्रेटेड कैमरों की क्षमता ऐसी है कि दिल्ली में सेना मुख्यालय में बैठा कोई भी व्यक्ति एलओसी से लाइव फीड देख सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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