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Saturday, 20 April, 2024
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पाकिस्तान और चीन के लिए भारतीय सेना के पास हैं नई रणनीतियां: दंडात्मक और विश्वसनीय निवारण

चीन के साथ तनाव जारी रहने के बीच, भारत ने इन गर्मियों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर, पहले से ज़्यादा सैनिक तैनात किए हैं.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि भारतीय सेना, कुछ प्रमुख सिलसिलेवार बदलाव ला रही है, जिनमें ऑर्डर ऑफ बैटल (ऑरबैट) भी शामिल है. इसके तहत पाकिस्तान के ख़िलाफ दंडात्मक निवारण, और चीन के खिलाफ विश्वसनीय निवारण की रणनीति अपनाई जाएगी.

इस रणनीति में केवल कोर स्तर की प्रतिक्रिया की बजाय, एकीकृत संरचनाओं की बात की गई है, और यही रणनीति पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सीमाओं, तथा चीन के साथ पूर्वी सीमाओं के बीच, भारतीय सेना के पुन: संतुलन का आधार है.

सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, कि इस समग्र रणनीति में सिर्फ सेना ही नहीं, बल्कि कूटनीति और अर्थनीति भी शामिल हैं.

एक सूत्र ने कहा, ‘सैन्य नज़रिए से, पश्चिमी थिएटर हमेशा से फोकस एरिया रहा है. वहां पर हमारी रणनीति दंडात्मक निवारण की रही है. इसका मतलब है कि जवाबी कार्रवाई के लिए, भारत के पास कहीं अधिक सैन्य शक्ति है’.

चीन के खिलाफ रणनीति की बारीकी को समझाते हुए सूत्र ने कहा, कि इसका लक्ष्य विश्वसनीय निवारण है.

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मुख्य बदलाव जो प्लान किए गए हैं, और लागू कर दिए हैं, उनके विस्तार में जाने से इनकार करते हुए, सूत्र ने कहा, ‘विश्वसनीय निवारण के अंतर्गत, विरोधी पक्ष को पता होना चाहिए, कि भारत के अंदर इतनी क्षमता है, कि वो जवाबी कार्रवाई करके नुक़सान पहुंचा सकता है. सैन्य शक्ति के मामले में चीन अपने आपको, अमेरिका के बराबर देखता है. लेकिन, उसकी समझ में आ गया है कि सैन्य रूप से, भले वो ज़्यादा बड़ा हो सकता है, लेकिन भारत भी डिगने वाला नहीं है, और वो पलटवार भी कर सकता है. ये उस छवि को प्रभावित करता है, जो चीनी दुनिया भर को दिखाना चाहते हैं. इसी को विश्वसनीय निवारण कहते हैं’.

सूत्रों ने पिछले साल अगस्त 29/30 की, भारतीय कार्रवाई की मिसाल दी, जब उन्होंने चीनियों को पीछे छोड़ते हुए, पैंगॉन्ग त्सो के दक्षिणी किनारे की ऊंचाइयों पर क़ब्ज़ा कर लिया, जिससे चीनी बहुत बेचैन हो गए थे.

सूत्रों ने समझाया कि ये रणनीति, चीन के साथ लगी पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा के लिए है, सिर्फ लद्दाख़ के लिए नहीं जो नॉर्दर्न सेक्टर के अंतर्गत आता है. इसका मतलब है कि इस रणनीति को, सेंट्रल और ईस्टर्न सेक्टर्स में भी फैलाया जाएगा.

थल सेना प्रमुख जन. एमएम नरवाणे ने इस साल जनवरी में कहा था, कि पश्चिमी, उत्तरी, और उत्तरपूर्वी सीमाओं पर, सेना अपनी तैनाती और रणनीति को पुन: संतुलित कर रही है, ताकि आने वाले किसी भी तरह के ख़तरे से निपटा जा सके, चाहे वो पाकिस्तान से हो या चीन से.

पुन: संतुलन की रणनीति सेना द्वारा किए गए, एक आंतरिक अध्ययन के बाद आई, जिसमें चीन और पाकिस्तान से पैदा होने वाले ख़तरे से, निपटने की तैयारियों पर ग़ौर किया गया था.

दिप्रिंट ने 12 अप्रैल को ख़बर दी थी, कि पूर्वी लद्दाख़ में गर्मियों के लिए एक रणनीति पहले ही स्थापित कर दी गई है, और औरबैट में भी कुछ प्रमुख बदलाव किए गए हैं.

LAC पर पहले से अधिक सैनिक तैनात

लद्दाख़ में सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई है, जिसमें मुख्य तवज्जो रिज़र्व और मोर्चे पर सैनिकों की पर्याप्त संख्या पर दी गई है, ताकि चीन की किसी भी संभावित चाल का मुक़ाबला किया जा सके, चूंकि दोनों देशों के बीच तनाव बरक़रार है.

सूत्रों ने बताया कि इसी रणनीति को पूरी एलएसी पर लागू किया गया है, जिसके मतलब है कि काउंटर परिचालन रणनीतियां लागू हो जाने के बाद, हर लोकेशन पर अब सैनिकों की संख्या पहले से अधिक है.

लेकिन, उन्होंने स्पष्ट किया, कि अधिक सैनिकों का मतलब ये नहीं है, कि पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा की तरह, पूरी एलएसी पर सैनिक बैठे रहेंगे, बल्कि सैनिकों की संख्या इतनी होगी, कि किसी भी आक्रमण का सामना कर सकें, और अपनी ख़ुद की जवाबी कार्रवाई कर सकें.

इसका मतलब था कि सेना ने, वहां एलएसी की इंचार्ज 3 डिवीज़न, और 14 कोर रिज़र्व के अलावा, लद्दाख़ में अधिक संख्या में सैनिकों, और उपकरणों को रोक लिया है.

इसमें वो इकाइयां भी शामिल हैं, जिन्हें पिछले साल चीन से विवाद बढ़ने के बाद, वहां भेजा गया था और उसके अलावा वो नए तत्व भी हैं, जिन्हें गर्मियों की तैनाती के लिए लाया गया था.

इसी रणनीति का पूरी एलएसी पर पालन किया जा रहा है, और फोर्स पूरी तरह से, ऑपरेशनल अलर्ट की स्थिति में बनी हुई है.

सिर्फ कोर स्तर के जवाब नहीं, बल्कि इंटीग्रेटेड बैटल पर होगा फोकस

औरबैट में बदलाव के तहत, जहां पाकिस्तान के खिलाफ पहले भारत ने तीन स्ट्राइक कोर लगाई हुईं थीं, अब सिर्फ दो हैं. और चीन के खिलाफ सिर्फ एक स्ट्राइक कोर की जगह अब दो हैं.

एक सूत्र ने कहा, ‘किसी हमले की सूरत में, हमारा फोकस अब केवल कोर लेवल के रेस्पॉन्स पर नहीं, बल्कि एक अधिक एकीकृत प्रतिक्रिया पर है’.

इसका मतलब सिर्फ इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स (आईबीजीज़) नहीं है, जो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जन. बिपिन रावत के दिमाग़ की उपज है, जब वो सेना प्रमुख थे, बल्कि तीनों सेवाओं- थल सेना, नौसेना और वायु सेना- का साझा रेस्पॉन्स है.

संयोग से, सेना ने अक्तूबर 2019 में आईबीजीएस की अपनी अवधारणा को, पहली बार अमलीजामा पहनाया था.

आईबीजीज़ को पानागढ़ स्थित 17 कोर (माउंटेन स्ट्राइक कोर) की, 59 माउंटेन डिवीज़न से निकालकर गठित किया गया था.

योजना ये थी कि ये एक स्टडी केस होगा, और फ़ाइन ट्यूनिंग के बाद आईबीजीज़ को चालू कर दिया जाएगा.

हर एक आईबीजी, परिचालन संबंधी विशेष ज़रूरतों पर आधारित होगी, जिसमें भौगोलिक स्थिति, और ख़तरे की आशंका का ख़याल रखा जाएगा.

जन. नरवाणे ने पिछले साल मई में कहा था, कि आईबीजीज़ को ‘जल्द ही’ परिचालित कर दिया जाएगा. लेकिन महामारी, और पूर्वी लद्दाख़ में एलएसी पर तनाव बढ़ने की वजह से, प्रक्रिया बाधित हो गई थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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