नयी दिल्ली: दुनिया के कई देश अपनी सेना के खर्च को लगातार बढ़ा रहे हैं. रक्षा क्षेत्र के ‘थिंक-टैंक’ स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने एक डेटा जारी किया है जिसके रिपोर्ट के अनुसार सेना पर सबसे ज्यादा खर्च करने वालों में पांच देश- अमेरिका, चीन, भारत, ब्रिटेन और रूस हैं. भारत अपनी सेना पर 76.6 अरब डॉलर खर्च करने के साथ लिस्ट में तीसरे नंबर पर है.
भारत में साल 2020 की तुलना में 0.9 प्रतिशत और साल 2012 की तुलना में 33 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई.
साल 2021 में भारत का सैन्य खर्च बढ़कर 76.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 2020 के आंकड़ों से 0.9 प्रतिशत अधिक है.
कोरोना महामारी के दूसरे साल में सेना में खर्च होने वाली रकम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई. डेटा के मुताबिक यह 2.1 ट्रिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर आ गया.
चीन दूसरे नंबर पर
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन सैन्य खर्च के मामले में विश्व में दूसरे नंबर पर है और उसने 2021 में अपनी सेना को अनुमानित 293 अरब अमेरिकी डालर आवंटित किए, जो 2020 से 4.7 प्रतिशत और 2012 से 72 प्रतिशत अधिक है.
पांच मई, 2020 को पैंगोंग झील क्षेत्रों में हिंसक झड़पों के बाद भारत और चीन की सेनाओं के बीच पिछले 23 महीनों से पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध कायम हैं. दोनों ओर से अभी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर करीब 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं.
थिंक-टैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में भारत का सैन्य व्यय 76.6 अरब अमेरिकी डालर था जो दुनिया में तीसरे नंबर पर था. भारत का सैन्य खर्च 2020 से 0.9 प्रतिशत और 2012 से 33 प्रतिशत अधिक था.
भारत ने अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण और हथियारों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वदेशी हथियार उद्योग को मजबूत बनाने के लिए, 2021 के भारतीय सैन्य बजट में पूंजी परिव्यय का 64 प्रतिशत घरेलू उत्पादित हथियारों की खरीद के लिए निर्धारित किया गया था.
इसमें कहा गया है, ‘2021 में सैन्य खर्च करने वाले पांच सबसे बड़े देशों में अमेरिका, चीन, भारत, ब्रिटेन और रूस थे जो कुल मिलाकर दुनिया के सैन्य खर्च का 62 प्रतिशत हिस्सा था. अकेले अमेरिका और चीन का हिस्सा 52 प्रतिशत था.’’
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 21 अप्रैल को कहा था कि पूर्वी लद्दाख विवाद के शांतिपूर्ण हल के लिए चीन के साथ चल रही बातचीत जारी रहेगी और सैनिकों की वापसी और तनाव में कमी लाना ही आगे का रास्ता है.
सिंह ने सैन्य कमांडरों के सम्मेलन में कहा था कि भारतीय सैनिक देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिकूल मौसम और शत्रुतापूर्ण ताकतों का डटकर मुकाबला कर रहे हैं.
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