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Friday, 22 November, 2024
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क्या पीएलए ने गलवान में बंदी सैनिक को ‘कंफेशन’ के लिए बाध्य किया था? वीडियो वार में सामने आई फुटेज

पीएलए का वीडियो ऐसे समय सामने आया जब कुछ घंटे पहले ही भारत में सोशल मीडिया हैंडल पर यांग्त्से, अरुणाचल में 2021 की झड़प का एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें भारतीय सैनिकों को बड़ी संख्या में चीनी सेना को रोकते दिखाया गया है.

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नई दिल्ली: पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने 2020 में गलवान नदी के पास झड़पों के दौरान बंदी बनाए गए भारतीय सेना के एक घायल अधिकारी को जबरन कबूलनामे के लिए बाध्य किया था. दिप्रिंट को मिले एक वीडियो फुटेज से कुछ ऐसा ही लगता है.

यह वीडियो फुटेज पीएलए से जुड़े सोशल मीडिया ग्रुप्स पर गुरुवार को नजर आया जो कि 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास झड़प के दौरान 20 भारतीय जवानों के मारे जाने और 10 अन्य के पकड़े जाने के कुछ घंटे बाद बनाया गया था.

पीएलए का यह प्रोपेगैंडा वीडियो भारत में सोशल मीडिया हैंडल पर अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से में 2021 की झड़प से जुड़ा एक वीडियो पोस्ट होने के कुछ ही घंटे बाद जारी किया गया. यांग्त्से झड़प के वीडियो में सिख लाइट इन्फैंट्री की एक छोटी यूनिट को बड़ी संख्या में पीएलए सैनिकों से मोर्चा लेते दिखाया गया था.

पीएलए के वीडियो में मेजर-रैंक के एक अधिकारी को यह कहते देखा जा सकता है कि उन्हें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पार करने और चीनियों की तरफ से अपने क्षेत्र के अंदर लगाए गए तंबुओं को उखाड़ने का आदेश दिया गया था.

दिप्रिंट की तरफ से संपर्क किए जाने पर भारतीय सेना के सूत्रों ने कहा कि अभी तक वीडियो की सत्यता का पता नहीं लगाया जा सका है.

ऐसा लगता होता है कि वीडियो बंदी बनाए गए सैनिकों के अधिकारों से संबंधित जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करके बनाया गया है, जिसमें कहा गया है कि ‘युद्ध बंदी पर अपने ऊपर लगाए जा रहे आरोपों में खुद को दोषी स्वीकार करने के लिए किसी तरह का नैतिक या शारीरिक दबाव नहीं डाला जा सकता.’ सुरक्षा का ये प्रावधान राष्ट्र-राज्य के लिए सेवाएं देने वाले सभी लड़ाकों पर लागू होता है, चाहे घोषित तौर पर युद्ध की स्थिति हो या नहीं.

वीडियो देखकर लगता है कि 3 पंजाब रेजिमेंट के मेजर डी.एस. चौहान कुछ पूछताछ के बाद कागज पर अपना बयान दर्ज करा रहे हैं और एक चीनी कैमरामैन के सामने संक्षिप्त बयान देते नजर आते हैं जिसमें वह अपने सैनिकों के साथ अच्छे व्यवहार के लिए पीएलए को धन्यवाद देते हैं. मेजर चौहान उन 10 भारतीय सैनिकों—जिसमें चार अधिकारी थे—में शामिल रहे हैं, जिन्हें चीन ने गलवान संघर्ष के बाद बंदी बना लिया था. इस सभी बंदियों को 15 जून 2020 की झड़प के तीन दिन बाद रिहा कर दिया गया था.

चीन का दावा है कि पूरी गलवान घाटी उसके नियंत्रण वाले क्षेत्र में आती है, यद्यपि देश की तरफ से आधिकारिक चर्चाओं के दौरान सामने रखे जाने वाले इलाके के अक्षांश-देशांतर निर्देशांक बताते हैं कि एलएसी पूर्व में इसके मुहाने से 4.7 किलोमीटर दूर है. 1995 में आधिकारिक वार्ता के दौरान चीन ने एलएसी के 12 विवादित क्षेत्रों में गलवान क्षेत्र को शामिल भी नहीं किया था.


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एक संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय मुद्दा

बंदी बनाए गए किसी सैन्य और राजनयिक कर्मी को अपनी मातृभूमि को लेकर किसी तरह के कबूलनामे के लिए जबरन मजबूर किया जाना एक संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय मुद्दा रहा है.

दिवंगत जॉन मैक्केन—जो बाद में अमेरिकी सीनेटर और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने—उन कई लड़ाकों में शामिल थे, जिन्हें उत्तरी वियतनाम में जबरन अपने देश को दोषी ठहराने के लिए प्रताड़ित किया गया था. मैक्केन के मुताबिक, अत्यधिक शारीरिक और मानसिक दबाव झेलने के बाद उन्होंने अंततः एक ‘अश्वेत अपराधी’ और ‘हवाई डाकू’ होने की बात स्वीकारी थी. सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के पायलट गैरी पॉवर्स, जिन्हें 1960 में सोवियत संघ के ऊपर एक टोही उड़ान के दौरान मार गिराया गया था, को भी पब्लिक शो-ट्रायल का सामना करना पड़ा था.

पूर्व भारतीय विदेश सचिव के. रघुनाथ को भी अपने साथी राजनयिक पी. विजय के साथ 1967 में उनकी राजनयिक प्रतिरक्षा का उल्लंघन करके बीजिंग में गिरफ्तार किया गया था और उन पर मुकदमा चलाया गया.

भले ही राष्ट्र-राज्य खुले तौर पर जिनेवा कन्वेंशन के उल्लंघन की बात न स्वीकारते हों, प्रोपेगैंड वीडियो जारी करना डिजिटल युग में एक आम बात होती जा रही है. 2019 में पाकिस्तान में अपना लड़ाकू जेट मार गिराए जाने के बाद भारतीय वायु सेना के अधिकारी अभिनंदन वर्धमान से पूछताछ का वीडियो ऑनलाइन लीक किया गया था ताकि यह दिखाया जा सके कि हिरासत में उनके साथ अच्छा व्यवहार किया गया.


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एलएसी पर बना हुआ है तनाव

गत 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश में तवांग के पास झड़प के बाद एलएसी पर बढ़ते तनाव के बीच पीएलए ने यह गलवान वीडियो जारी किया है. गौरतलब है कि प्रसिद्ध चुमी ग्यांत्से तीर्थस्थल के पास एक भारतीय चौकी कोड-नाम यांकी पर तैनात सैनिकों ने सैकड़ों पीएलए सैनिकों को खदेड़ दिया था जो कि क्लब और स्लिंग का इस्तेमाल कर उन्हें वहां से भगाने की कोशिश कर रहे थे. गलवान के बाद दोनों देशों के सैनिकों के बीच यह सबसे गंभीर झड़प थी.

पीएलए ने एलएसी से लगते और भी तमाम क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी रखा है—खासकर तोरसा नाले पर एक पुल का निर्माण और भूटान, चीन और भारत के जंक्शन पर जम्फेरी रिज की ओर जाने वाली सड़कों की स्थिति ठीक करना. डोका-ला दर्रे के रास्ते इसी तरह की एक सड़क बनाने के प्रयासों ने ही 2017 में डोकलाम संकट को जन्म दिया था.

गलवान संघर्ष के बाद भले ही चीन और भारत दोनों अपने सैनिकों की वापसी के प्रयासों में लगे हैं लेकिन पीएलए ने बलपूर्वक कई क्षेत्रों में अपने दावे को पुष्ट करने की कोशिश की है. 2021 में पीएलए की ऐसी ही हरकतों के कारण तवांग के साथ-साथ नाकू-ला दर्रे के पास भी इसी तरह की झड़पें हुई थीं.

प्रोटोकॉल के तहत दोनों सेनाओं के लिए एलएसी के पास आग्नेयास्त्र इस्तेमाल करना प्रतिबंधित है लेकिन पीएलए की तरफ से कील जड़े डंडों के अलावा कथित तौर पर ‘मंकी क्ला’ गुलेल इस्तेमाल की जाती रही हैं. 2020 की झड़पों के बाद भारतीय सेना ने भी अपने जवानों को इसी तरह के हथियारों से लैस करना शुरू कर दिया है.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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