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Thursday, 18 April, 2024
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हैदराबाद के स्टार्ट-अप ने क्रूज मिसाइलों के लिए एयरो इंजन के प्रोटोटाइप बनाने का काम शुरू किया

हैदराबाद स्थित पाणिनियन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 4.5 केएन टर्बोजेट इंजन का ‘संकल्पनात्मक सत्यापन’ पूरा कर लिया है. इस परियोजना पर डीआरडीओ के कई पूर्व वैज्ञानिक और जेट इंजन विशेषज्ञ काम कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए अच्छी खबर के रूप में एक निजी स्टार्ट-अप क्रूज मिसाइलों और बड़े मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) को संचालित करने के लिए एक स्वदेशी इंजन विकसित करने के काफी करीब पहुंच गया है, जो विदेशी फर्मों पर हमारे देश की निर्भरता को ख़त्म कर सकता है.

पाणिनियन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जिसका मुख्यालय हैदराबाद में है, ने अपने 4.5 केएन टर्बोजेट इंजन का ‘संकल्पनात्मक सत्यापन’ (कोन्सेप्टुअल वेलिडेशन) पूरा कर लिया है और इसके प्रोटोटाइप का विकास शुरू हो गया है.

पाणिनियन के संस्थापक रघु अदला ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम कोई रिवर्स इंजीनियरिंग नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम एयरो इंजनों की एक नई श्रेणी बना रहे हैं, जो क्रूज मिसाइलों से लेकर बड़े यूएवी तक सब कुछ संचालित करने में सक्षम होगा.’

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) संवर्धित डिजिटल ट्विन कॉम्पोनेन्ट के साथ वाले इस इंजन को 3-12 किलोन्यूटन (केएन) थ्रस्ट (धकेलने वाले बल) के दायरे में इंजनों की नई श्रेणी के रूप में विकसित किया जा रहा है.

एआई संवर्धित डिजिटल ट्विन भारतीय वायु सेना के जगुआर, सुखोई और मिराज 2000 जैसे विमानों के पुराने ज़माने के इंजनों के प्रदर्शन प्रतिमान (पेरफ़ोर्मनस मॉडलिंग) स्थापित करने, किसी भी मिशन में इनके द्वारा प्रदर्शन का समर्थन करने का पूर्वानुमान लगाने, और इनकी सेवा अवधि में विस्तार के प्रयासों के मदद करने के लिए जाने जाते हैं.

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अदला, जो पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं, ने कहा, ‘यह अब इंजनों के जीवन में विस्तार का अध्ययन करने के एक माध्यम के रूप में काम कर सकता है और भारतीय वायु सेना तथा सेंटर फॉर मिलिट्री एयरवर्थनेस एंड सर्टिफिकेशन को उनके प्रदर्शन में आई किसी भी संभावित गिरावट के अध्ययन में बहुत सहायता कर सकता है.’

उन्होंने कहा कि इस तरह के डिजिटल ट्विन्स – जो अत्याधुनिक पूर्वानुमान, इंजन के स्वास्थ्य और प्रदर्शन पर निगरानी के लिए आवश्यक हैं – के बारे में भारतीय इंजीनियरों द्वारा पूरी तरह से अपने ही देश में एकदम शुरुआत से कल्पना की गई है. साथ ही, उन्होंने कहा कि भारत अब विदेशी सहायता का सहारा लिए बिना स्थानीय रूप से और बेहद सटीक तरीके से इंजनों का जीवन विस्तार कर सकता है.

हालांकि पाणिनियन ने अपने इंजन के लिए एक वास्तविक परीक्षण पटल स्थापित करना शुरू कर दिया है, मगर इसकी आगे की योजना इंजन के अलग-अलग हिस्सों को राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशाला (नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरी) में 2,000 घंटे के परीक्षण से गुजरना है.

अदला ने साल में 2019 भारतीय वायु सेना के द्वारा किये गए बालाकोट हवाई हमले और उसके बाद भारतीय एवं पाकिस्तानी वायु सेना के बीच हुई झड़प के बाद इस परियोजना पर काम करने का फैसला किया था .

इस स्टार्ट-अप के लिए, उन्होंने डीआरडीओ में एक पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक और कार्यक्रम निदेशक, गंतायता गौड़ा को कुछ अन्य ऐसे लोगों के साथ काम पर रखा, जिन्होंने जनरल इलेक्ट्रिक्स और रोल्स रॉयस जैसे प्रमुख वैश्विक इंजन निर्माताओं के साथ प्रणोदन (प्रोपल्शन) और संरचनात्मक इंजीनियरिंग जिसे ख्स्त्रों में काम किया हुआ है.

अदला ने भारतीय मूल के जेट इंजन को सामने लाने में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा अपनी तरफ से अनुदान और उनकी प्रयोगशालाओं तक पहुंच प्रदान करने के साथ ऐसे स्टार्टअप प्रयासों का समर्थन करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

उन्होंने यह भी कहा कि पाणिनियन सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र की कंपनियों से संभावित सहयोग की मांग कर रहा है, ताकि कम-से-कम समय में इसे अंतिम उपयोगकर्ताओं तक सफलतापूर्वक पहुंचाने के प्रयास को आगे बढ़ाया जा सके.

उन्होंने कहा कि यह नवाचार ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत एक लंबा सफर तय कर सकता है ताकि देश को एयरो इंजन के रणनीतिक क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर’ बनाया जा सके.

संयोग से, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) भी 4.5 केएन श्रेणी में एक एयरो इंजन पर काम कर रहा है, जिसके बारे में रक्षा उद्योग के सूत्रों का कहना है कि यह उस रूसी एनपीओ सैटर्न 36 एमटी इंजन की रिवर्स इंजीनियरिंग है जिसका उपयोग भारत द्वारा किया जाता है.

हालांकि, इस उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि डीआरडीओ का यह प्रयास स्केलेबल (बड़े स्तर पर किया जा सकने वाला) नहीं है और इस इंजनों की एक नई श्रेणी तैयार करने के लिए मॉड्यूलराइज़्ड (मापदंडों के अनुसार बनाना) नहीं किया जा सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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