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Tuesday, 5 November, 2024
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भारत का रक्षा उत्पादन कितना ‘स्वदेशी’ है? देश में बने अधिकतर रक्षा उत्पाद आयातित चीजों पर निर्भर

INS विक्रांत, LCH प्रचंड और ALH ध्रुव जैसे प्लेटफॉर्म विशेष रूप से भारत में नहीं बने हैं और आयात पर निर्भर हैं, जो कि अमेरिका जैसे प्रमुख रक्षा उत्पादकों के लिए भी एक वास्तविकता है.

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नई दिल्ली: बीते कुछ सालों से भारत में स्वदेशी सैन्य निर्माण और खरीद को प्राथमिकता देने की दिशा पर काफी जोर दिया गया है. देश के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत और पहले स्वदेशी हमलावर हेलीकॉप्टर एलसीएच प्रचंड का 2022 कमीशंड होना भी इस क्षेत्र में एक दार्शनिक परिवर्तन का प्रतीक बताया गया.

इस साल अप्रैल में, सेना ने घोषणा की कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और निजी फर्म लार्सन एंड टुब्रो (L&T) एक अन्य स्वदेशी प्रणाली- ‘ज़ोरावर लाइट टैंक’ के लिए उसके प्रोटोटाइप का निर्माण करेगी.

हालांकि, दिप्रिंट द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि इन स्वदेशी हथियार प्रणालियों के निर्माण में काफी आयातित सामान शामिल हैं, जो एकीकृत हैं और विशेष रूप से भारत में नहीं बने हैं. इसके पार्ट्स संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस जैसे प्रमुख रक्षा उत्पादक देशों से आयात किए गए हैं.

यहां एक बड़ा सवाल यह भी खड़ा होता है कि भारत के रक्षा उत्पादन में ‘स्वदेशी’ आखिर कितना स्वदेशी है?

नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (NTU) सिंगापुर के एसोसिएट प्रोफेसर अनित मुखर्जी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि सरकार ने घरेलू सैन्य निर्माण को बढ़ावा देने के लिए अच्छा काम किया है, लेकिन अभी भी सैन्य प्रतिष्ठान के भीतर सबकुछ घरेलू स्तर पर निर्मित नहीं किया जा सकता है. कुछ सामान आयात करना ही होगा.’

मुखर्जी कहते हैं, ‘इसके परिणामस्वरूप, भले ही आप सरकार द्वारा जारी सकारात्मक सैन्य स्वदेशीकरण की सूची देखते हैं लेकिन वे कुछ न कुछ आयात भी करते हैं. कभी-कभी, बड़े पैमाने पर हथियार प्रणालियों के घरेलू निर्माण की अनुमति आर्थिक कारणों से नहीं मिलती है. ऐसे समय में आपको आयात करना ही पड़ता है.’

ऊपर लिखें बातों की ओर इशारा करते हुए, दिल्ली स्थित एक रक्षा विश्लेषक ने कहा, ‘एक देश के लिए टेक्नोलाजी और पार्ट्स के साथ एक उन्नत हथियार प्रणाली विकसित करना कठिन होता है. बेस्ट टेक्नोलॉजी के आयात से प्रणाली को और अधिक कुशल बनाने में मदद मिलती है.’

अपना नाम न छापने की शर्त पर रक्षा विश्लेषक ने दिप्रिंट से कहा, ‘अधिक आपूर्ति-श्रृंखला वाली एक वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में, कुछ पार्ट्स को अनिवार्य रूप से आयात किया ही जाएगा. या तो इसका कारण बेहतर विदेशी तकनीक या फिर देश में विनिर्माण क्षमता की कमी हो सकती है.’

ज़ोरावर लाइट टैंक प्रोजेक्ट

पिछले साल अगस्त में पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ तनातनी की स्थिति को देखते हुए भारतीय सेना ने एक स्वदेशी लाइट टैंक विकसित करने के लिए ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ लॉन्च किया, जिसका उपयोग लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश सहित अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में जल्दी तैनाती और तेजी से आवाजाही के लिए किया जा सकता है.

इसके बाद भारत के DRDO और निजी फर्म L&T ने ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ के तहत टैंक को विकसित करने के लिए हाथ मिलाया. फिर अप्रैल 2023 में DRDO और L&T को सेना के लिए टैंक का प्रोटोटाइप बनाने का ऑर्डर दिया गया.

सेना के एकीकृत मुख्यालय से एक संक्षिप्त विवरण में कहा गया है, ‘भारतीय लाइट टैंक के लिए प्रोजेक्ट स्वदेशी रक्षा उद्योग को एक साथ आने और ‘भारत में डिजाइन और विकसित’ करने के पहल का एक अनूठा अवसर प्रदान करेगी.’

हालांकि व्यापक रूप से ‘स्वदेशी’ के रूप में कहा जा रहा ज़ोरावर टैंक एक जर्मन निर्माता कंपनी ‘एमटीयू एयरो इंजन’ द्वारा विकसित इंजन से चलेगा. यह डिफेंस ग्रुप रोल्स-रॉयस की सहायक कंपनी है. इसके अलावा इसमें 105 मिमी का गन ‘बुर्ज’ लगाया जाएगा, जिसे बेल्जियम की इंजीनियरिंग कंपनी जॉन कॉकरिल ने बनाया है.

ज़ोरावर के दो केंद्रीय आधार होंगे जिसमें एक इंजन होगा जो पहाड़ी इलाकों में युद्धाभ्यास करेगा और दूसरी इसकी बंदूक होगी. दोनों को ही आयात किया जाएगा.

विदेशों से इन आयातित सामान लगने के बावजूद इस टैंक को ‘स्वदेशी’ कहा जाएगा.

किसी चीज को स्वदेशी कहना या नहीं कहना काफी हद तक एक राजनीतिक निर्णय होता है. किंग्स कॉलेज लंदन के एक सैन्य विद्वान और लेक्चरर वाल्टर लाडविग ने दिप्रिंट को बताया कि स्वदेशीकरण क्या है, इसका पूरी तरह से कुछ भी सही उत्तर नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘आप किसी भी चीज को स्वदेशी मानने के लिए क्या निर्धारित करते हैं ? आप उसके वित्तीय मूल्य, उसमें लगे विदेशी पार्ट्स की संख्या या फिर अन्य चीजें? ये सभी विद्वानों द्वारा दिए गए एक विकल्प हैं’

स्वदेशी’ के रूप में एक हथियार प्रणाली के लेबलिंग से परे, इसके निर्माण के केंद्र में केंद्रीय है. मुखर्जी ने इसे ज़ोरावर के स्वदेशी निर्माण के संदर्भ में समझाया.

उन्होंने कहा, ‘जोरावर के निर्माण के साथ भारत की निर्माण क्षमता तभी कुशल होंगी जब सरकार भारत में फैक्ट्री लाइन और उत्पादन स्थापित करने की लागतों को ऑफसेट करने के लिए पर्याप्त संख्या में आर्डर देगी.’

इसके अलावा, यह न केवल घरेलू विनिर्माण बल्कि निर्यात के बारे में भी है. निर्यात करने वाली रक्षा कंपनियां तभी सफल हो पाती हैं. मुखर्जी ने समझाया कि केवल रणनीतिक पहलू इसे रोक सकता है.

हालांकि, महत्वपूर्ण पार्टस के लिए ज़ोरावर की विदेशी तकनीक को अपनाना भारत के रक्षा निर्माण में एक नई अवधारणा नहीं है.


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आईएनएस विक्रांत, एलसीएच और एएलएच की स्थिति

भारत में निर्मित विमान, हेलीकॉप्टर और विमान वाहक पोत, सभी में कुछ न कुछ विदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.

देश के पहले स्वदेशी निर्मित हल्का लड़ाकू विमान (एलसीएच) तेजस का इंजन अमेरिकी ग्रुप ‘जनरल इलेक्ट्रिक्स’ (जीई) ने बनाया है. यह लड़ाकू विमान, जिसे कमीशन होने में लगभग तीन दशक लग गए, एक विदेशी इंजन के भरोसे है.

2022 में हुए दो महत्वपूर्ण स्वदेशी सैन्य घटनाक्रम भी आयात पर निर्भरता को दिखाता है.

पिछले साल सितंबर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पहले घरेलू निर्मित विमानवाहक पोत INS विक्रांत को राष्ट्र को समर्पित किया.

विक्रांत का 76 फीसदी पार्ट्स स्वदेशी है. यह काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसमें लगे 24 प्रतिशत पार्ट्स का आयात किया गया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस 24 प्रतिशत आयातित पार्ट्स में महत्वपूर्ण एविएशन कॉम्प्लेक्स भी शामिल है जो युद्धपोत पर लड़ाकू विमानों के रखरखाव और संचालन के लिए जिम्मेदार होता है.

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि एविएशन कॉम्प्लेक्स, जिसमें अरेस्टर गियर, शॉर्ट-टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी (STOBAR) सिस्टम शामिल हैं, जो लड़ाकू विमानों के लॉन्च और रिकवरी के लिए हैं, यह रूस से आयात किया गया था. इसके अलावा, जहाज में लगे दो विमान लिफ्टों का आयात भी यूनाइटेड किंगडम से किया गया था. इसके अलावा हैंगर के दरवाजे स्वीडन से लाए गए थे.

इसके बाद सितंबर 2022 में पहले स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) प्रचंड को वायु सेना में शामिल किया गया. इसके निर्माण में 45 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तक स्वदेशी चीजों के इस्तेमाल का अनुमान है. हालांकि, हेलिकॉप्टर का अटैक सिस्टम, इसमें लगी हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें यूरोपीय मिसाइल निर्माता कंपनी MBDA द्वारा बनाई गई है.

यहां तक कि स्वदेशी रूप से बनाया गया एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) ध्रुव में लगे पार्ट्स भी काफी हद तक आयात पर निर्भर हैं. हालांकि इसमें लगभग 55 प्रतिशत घरेलू सामान लगा है.

एयर मार्शल अनिल चोपड़ा (रिटायर्ड) ने इस साल की शुरुआत में इंडियन डिफेंस रिव्यू जर्नल में लिखा था, ‘एएलएच में इस्तेमाल होने वाली कुछ जरूरी पार्ट्स अभी भी यूके, इजरायल और फ्रांस से आयात की जाती हैं.’

उन्होंने लिखा, ‘इसके एल्यूमीनियम मिश्र धातु, मिश्रित सामग्री, एवियोनिक्स और हथियार भी आयात किए जाते हैं. एयरो-इंजन, जो विमान की लागत का लगभग 30 प्रतिशत है, अभी भी टर्बोमका द्वारा बनाया जाता है और आयात पर निर्भर है.’

जबकि INS विक्रांत, LCH, और ALH भारत की बढ़ती स्वदेशी सैन्य उत्पादन क्षमता को दिखाते हैं. जबकि डेटा से पता चलता है कि सभी घरेलू निर्मित सैन्य सामग्री में 50 प्रतिशत से अधिक चीजें आयातित शामिल हैं. अभी भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा आयात पर निर्भर है.

हालांकि, भारत अपने हथियार प्रणालियों के लिए आयात पर निर्भर रहने वाला एकमात्र देश नहीं है. बड़ी सैन्य महाशक्ति और प्रमुख रक्षा-उत्पादक देश भी विदेशी आपूर्ति पर निर्भर हैं. इसमें फ्रांस और अमेरिका जैसे देश शामिल हैं.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के 2018 और 2022 के बीच के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका ने इस अवधि के दौरान 365 इंजन, 271 मिसाइल और 50 नौसैनिक हथियारों का आयात किया. जबकि इसी अवधि में फ्रांस ने 367 विमान, 108 इंजन और 14 मिसाइलों का आयात किया.

इस वास्तविकता को समझाते हुए, इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ (सेवानिवृत्त) ने दिप्रिंट को बताया, ‘वैश्विक दुनिया में कोई भी सेना 100 प्रतिशत आत्मनिर्भर नहीं हो सकती है’.

हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा, ‘हालांकि, भारत को मुख्य रूप से स्वदेशी होना चाहिए और एक मजबूत सैन्य-औद्योगिक देश का आधार होना चाहिए.’

(संपादन: संपादन)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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