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बुधवार, 14 मई, 2025
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जम्मू के सीमावर्ती गांवों में पाकिस्तान के संघर्ष विराम उल्लंघन के कारण उजड़े मकान, मवेशियों की मौत

गोलाबारी ने जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती गांवों के निवासियों को प्रभावित किया है, जिनमें से कई विस्थापित हो गए हैं और शिविरों में रह रहे हैं या बंकरों में छिपे हुए हैं. घर लौटने पर उन्हें पता चला कि उनकी आजीविका भी प्रभावित हुई है.

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जम्मू: कंचन पवार अपने आंसू रोकने की बहुत कोशिश कर रही हैं. उनकी चार दुधारू भैंसें मर चुकी हैं और पांचवीं बमुश्किल ज़िंदा बची है. उनके पीछे एक जेसीबी मशीन उन जानवरों को दफनाने के लिए गड्ढा खोद रही है, जो 10 मई, शाम 5 बजे पाकिस्तान के संघर्ष विराम का उल्लंघन किए जाने के बाद मारे गए थे. पाकिस्तान की ओर से आई गोलेबारी ने पवार के मवेशी शेड को नष्ट कर दिया था.

जम्मू के अखनूर तहसील के कोट मैरा गांव की निवासी पवार ने कहा, “हमारी कमाई का अकेला साधन खत्म हो गया है. हमारे पास कोई नौकरी नहीं है…हम अपने मवेशियों से पैसे कमाते थे.”

बमुश्किल दो किलोमीटर दूर एक घर पर दो गोले गिरे, जिससे वह उड़ गया. संघर्ष विराम की घोषणा के बाद कोट मैरा में गोलाबारी की चपेट में आने वाले घरों में 59 साल के बारी राम का घर भी शामिल था.

कोट मैरा नियंत्रण रेखा से तीन किलोमीटर की हवाई दूरी पर है.

सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोग हमेशा सीमा पार से होने वाले किसी भी तनाव-गोलाबारी या बिना उकसावे के गोलेबारी — का सबसे पहले और सबसे आखिरी तक सामना करते हैं. गोलाबारी में जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, गुजरात और पंजाब के सीमावर्ती गांवों में करीब 20 नागरिक मारे गए और कई अन्य घायल हुए हैं.

बारी राम ने दिप्रिंट को बताया, “संघर्ष विराम के बाद मेरे घर पर गोलाबारी की गई. हमने सुना कि तनाव खत्म हो गया है, लेकिन दो गोले मेरे घर पर गिरे. उस वक्त हम अपने पड़ोसी से मिलने गए थे.”

बारी राम अपना ज्यादातर वक्त अपने घर के किसी भी हिस्से को बचाने की कोशिश में बिताते हैं. जिस जगह पर उनका घर था, वह गड्ढा करीब पांच-छह फीट गहरा और उतना ही चौड़ा है.

लोगों ने 50 फीट के दायरे में प्रभाव महसूस किया.

इससे पहले, जब 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने नागरिक इलाकों को निशाना बनाया था, तो कोट मैरा निवासी और बारी राम के पड़ोसी रोशन लाल अपने आंगन में सो रहे थे. एक धमाके ने ज़मीन को हिला दिया और उनकी नींद खुल गई. वह खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि वह इससे बाल-बाल बच गए. उनके बाथरूम की दीवार में अब दो बड़े छेद हो गए हैं. उनके घर की लगभग सभी दीवारों पर दरारें आ गई हैं.

‘बाल-बाल बच गए’

जम्मू के अनंतनाग तहसील के नई बस्ती गांव के निवासियों ने पत्रकारों से मिलने से पहले थोड़ा वक्त लिया, जबकि मीडिया का ध्यान सीधे तौर पर प्रभावित संपत्तियों पर केंद्रित रहा, निवासी, जिनके घरों को नुकसान पहुंचा है, आमतौर पर पत्रकारों की मदद करते हैं और उन्हें नुकसान के बारे में बताते हैं, इस उम्मीद में कि उनकी कहानियों से उन्हें कुछ मुआवज़ा मिलेगा.

जब गोले गिरने लगे तो बच्चन लाल और नई बस्ती के अन्य स्थानीय लोग गांव में बने बंकरों की ओर भागने लगे, एक गोला तो उनके गांव के एक बंकर के पास से तेज़ी से गुज़रा.

लगभग एक घंटे बाद, जब बच्चन लाल घर लौटे, तो घर तबाह हो चुका था.

लाल ने कहा, “मेरे घर पर गोले गिरने से 10 मिनट पहले मैं यहां था. मेरा परिवार और मैं यहीं सोते हैं. अगर हम यहां कुछ और मिनट और रुकते, तो हम सब मर जाते.”

अंतर्राष्ट्रीय सीमा से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर स्थित इस गांव में तीन बंकर हैं, जो कम से कम 15 साल पहले बनाए गए थे और स्थानीय लोग जानते हैं कि गोलाबारी का तुरंत कैसे सामना करना है.

बंकरों में न तो हवा आती है और न ही रोशनी इस कारण वहां काफी बदबू है. कोने में कुछ प्लास्टिक के बक्से रखे हैं, लेकिन ज़्यादातर लोग सख्त कंक्रीट के फर्श पर बैठते हैं.

लाल ने दिप्रिंट को बताया, “हम बस बैठे रहते हैं और गोलाबारी कम होने का इंतज़ार करते हैं. फिर हम बाहर निकल जाते हैं और अपने काम पर लग जाते हैं.”

7 मई के बाद, जम्मू और अन्य जगहों के कई सीमावर्ती गांवों के लोगों को उनके घरों से निकालकर कैंपसाइटों में भेज दिया गया था. संघर्ष विराम की घोषणा के बाद वह घर लौट आए, लेकिन गोलाबारी उनके पीछे-पीछे चली.

पड़ोसी घारकल गांल के मंगल दास 8 मई की सुबह से जम्मू के मिश्रीवाला कैंपसाइट में रह रहे हैं. 70 साल के दास ने दिप्रिंट से पूछा, “हमें घारकल और अन्य गांवों से यहां (कैंप में) लाया गया था. जम्मू में गोलीबारी या ड्रोन हमले जारी हैं. हम कहां सुरक्षित महसूस करें?”

सीमा पार से गोलाबारी ने जम्मू शहर के अंदर घनी आबादी वाले इलाके रेहाड़ी कॉलोनी में श्वेता गुप्ता के घर को भी नुकसान पहुंचाया है. गोलों से उनके घर और परिवार की कार की खिड़कियां टूट गईं.

‘इसे हमेशा के लिए खत्म करो’

संघर्ष विराम की घोषणा से पहले कैंप में शरण लेने वाले ग्रामीण, छोटे मालवाहक वाहनों के पीछे बैठकर धीरे-धीरे दर्जनों की संख्या में घर लौट रहे हैं. कई लोग अनिश्चित हैं कि गोलाबारी बंद हो गई है या इसके दोबारा शुरू होने से पहले रुक गई है.

10 मई, शाम 5 बजे की समयसीमा के बाद भी संघर्ष विराम उल्लंघन जारी था. कोट मैरा, पहाड़ी वाला और प्रागवाल में नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए घर संघर्ष विराम की घोषणा के बाद प्रभावित हुए हैं.

जम्मू में विस्फोटों की आवाज़ और सांबा और कुछ अन्य स्थानों पर ड्रोन विरोधी गतिविधि, यहां तक कि सोमवार की रात को भी, इन इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच इस बात को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई थी कि क्या यह उनका “न्यू नॉर्मल” होगा.

कोट मैरा के 70-वर्षीय और पंचायत बोर्ड के सदस्य हंसराज ने कहा कि उन्होंने 1965 से लेकर अब तक के सभी युद्ध देखे हैं. “हर बार, जब हम सामान्य स्थिति और अपनी आजीविका में वापस लौटते हैं, तो यह (गोलाबारी) फिर से होती है. पाकिस्तान ने हमें कभी भी शांत नहीं बैठने दिया.”

कई अन्य लोग भी जो नुकसान झेल चुके हैं, उनकी राय से सहमत हैं — वह डर के साये में जीने से थक चुके हैं.

हंसराज ने कहा, “गोलाबारी ने पहले ही हमारे घर तबाह कर दिए हैं और गांव के लोग शिविरों, स्कूलों या अपने रिश्तेदारों के घरों में रह रहे हैं. मैं मोदी से कहना चाहता हूं कि उन्हें पाकिस्तान के साथ यह सब एक बार और हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहिए. अगर हम इसे अधूरा छोड़ देते हैं, तो यह (गोलाबारी) फिर से होगी. कम से कम, अगली पीढ़ी तो शांति से रह पाएगी.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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