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Saturday, 21 December, 2024
होमडिफेंसराज के ज़माने से पाकिस्तान युद्धों और कश्मीर तक- कोविड से हुई देरी के बाद 200 वर्ष मना रही है 4 राजपूताना राइफल्स

राज के ज़माने से पाकिस्तान युद्धों और कश्मीर तक- कोविड से हुई देरी के बाद 200 वर्ष मना रही है 4 राजपूताना राइफल्स

4 राजपूताना राइफल्स ने 2020 में अपने 200 वर्ष पूरे कर लिए. अपने इतिहास में 4 राज रिफ का पद 10 बार बदला है, और इसके अलावा इसकी रेजिमेंटल कलग़ी में भी 13 बार बदलाव हुए हैं.

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नई दिल्ली: चौथी बटालियन (ऑटरैम की) राजपूताना राइफल्स इस साल अपनी शताब्दी के दो साल बाद अपनी स्थापना के 200 वर्ष मना रही है, जिसे कोविड के चलते पहले नहीं मनाया जा सका था.

यूनिट के इतिहास की कड़ी बाजी राव पेशवा की पूना ऑग्ज़िलरी इनफेंट्री से मिलती है, जिसे 1812 में पूर्व के पूना में स्थापित किया गया था और जिसमें ‘हिंदुस्तान के दूसरे सूबों’ से आए लोग भर्ती किए गए थे- ये ख़ुलासा एक कॉफी टेबल बुक में किया गया है, जिसका इस मौक़े पर विमोचन किया गया.

यूनिट के अधिकारियों ने कहा कि बहुत पुरानी बटालियनों के लिए बिल्कुल सही तारीख़ें बता पाना हमेशा आसान नहीं होता और इसलिए उनमें अंतर और व्याख्याएं होती हैं.

उन्होंने आगे कहा कि ‘4 राज रिफ’ भी कोई अपवाद नहीं है. इस यूनिट का रिकॉर्ड पीछे 1817 तक जाता है, लेकिन 1820 को अधिकारिक रूप से घोषित और मान्य माना जाता है.

मई 1820 में इसे ईस्ट इंडिया कंपनी की फर्स्ट बटालियन ट्वेल्थ रेजिमेंट में तब्दील कर दिया गया, और तब से ये लगातार वजूद में बनी हुई है.

जनरल जेम्स ऑटरैम का नाम उनकी मौत के चार दशक बाद, 1903 से यूनिट की नामावली का अधिकारिक हिस्सा बन गया. वो एक युवा अधिकारी के तौर पर बटालियन में शामिल हुए थे, और इसके गठन के समय उन्होंने एडजुटांट की ज़िम्मेदारी निभाई थी. भारत में उनका आख़िरी पद वाइसरॉय परिषद के सैन्य सदस्य का था.

200 वर्षों में यूनिट का पद 10 बार बदला है, और इसके अलावा इसकी रेजिमेंटल कलग़ी में भी 13 बार बदलाव हुए हैं.


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अपने इतिहास में बहुत सारे सम्मान

अधिकारिक इतिहास के अनुसार, अपने लंबे सफर के दौरान यूनिट को 29 लड़ाई और थिएटर सम्मानों से पुरस्कृत किया जा चुका है. यूनिट को 1947 में आज़ादी के बाद 113, और उससे पहले 246 निजी पुरस्कार मिल चुके हैं.

इसके इतिहास में ऐसे बहुत से मौक़े आए हैं, जब यूनिट ने 200 से अधिक जानें गंवाईं हैं.

पहले विश्व युद्ध में यूनिट ने दो और बटालियनें खड़ी कीं, जिन्हें बाद में वापस उसमें मिला लिया गया. यूनिट ऑफिसर्स के अनुसार उसने उस समय फलस्तीन में भी ‘शानदार प्रदर्शन’ किया था

दूसरे विश्व युद्ध में चार साल तक लगातार लड़ने के बाद, ये पहली यूनिट थी जो इटली से भारत लौटकर आई थी.

उस यूनिट की दिल्ली कैंट रेलवे पर, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल क्लॉड ऑचिनलेक ने, निजी तौर पर आगवानी की थी.

कहा जाता है कि यूनिट ने इतनी बार इतिहास बनाया- ब्रिटिश हुकूमत को ऐसे समय मुस्कुराने का मौक़ा दिया, जब वो भारी नुक़सान और हार का सामना कर रही थी- कि 4 राज रिफ को ‘फ्लीट स्ट्रीट बयालियन’ की उपाधि मिल गई.

ये पहली भारतीय बटालियन थी, जिसे सामूहिक रूप से पैराशूट बटालियन में बदल दिया गया. 1946 में पैराशूट रेजिमेंट को भंग किए जाने के समय, इसे सम्मान गारद पेश करने के लिए चुना गया था.

आज़ादी के बाद, इसकी ‘ए’ कंपनी (विभाजन-पूर्व की 3/1 पंजाब यूनिट) 50 पैराशूट ब्रिगेड के अंतर्गत संचालित होती थी, जिसे एक वीर चक्र और डिस्पैचेज़ में तीन उल्लेख मिले थे.

ये भारतीय सेना की उस टीम का हिस्सा थी, जिसने 1948 में हैदराबाद स्टेट के भारतीय संघ में विलय में हिस्सा लिया था.

1962 में, ये कॉन्गो में यूएन मिशन का हिस्सा बनी थी. 15-16 सितंबर 1965 को, 4 राज रिफ ने बिना किसी बख़्तरबंद सहायता के, पाकिस्तान के सियालकोट में अल्हार रेलवे स्टेशन पर, दुश्मन के छह जवाबी हमलों का सामना करके उसे मार भगाया था.

लड़ाई के दौरान ये भारत की सबसे अंदर तक पहुंच थी, और इसने लाहौर-सियालकोट रेलवे लाइन को काट दिया था, जो पाकिस्तान की नामित प्रवेश सीमा थी.

1971 में ये बटालियन उरी में दुश्मन के साथ, बिल्कुल आमने-सामने की स्थिति में थी.

1980 के दशक के आख़िर में, जब कश्मीर में अचानक हंगामे शुरू हो गए थे, तो यूनिट को उसकी कार्रवाइयों के लिए, थल सेना प्रमुख की ओर से यूनिट प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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