नई दिल्ली: रक्षा क्षेत्र में फ्रांस की दिग्गज कंपनी दसॉल्ट एविएशन 2022 के शुरू में भारत में राफेल विमान का नौसैनिक वर्जन ला सकती है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, इसका उद्देश्य विमान की स्की-जंप की क्षमता का प्रदर्शन करना है, जिसे भारतीय विमान वाहकों से ऑपरेट करने के लिए एक बेहद अहम टेक-ऑफ क्षमता माना जाता है.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि दसॉल्ट, जो नए लड़ाकू विमानों के लिए भारतीय नौसेना के साथ एक मेगा डील पर नजरें गड़ाए है, ने राफेल एम (मरीन) भारत लाने की पेशकश की है. नौसेना रूसी मिग 29केएस की जगह लेने के लिए नए लड़ाकू विमान खरीदने की योजना बना रही है.
एक सूत्र ने कहा, ‘राफेल एम विमानवाहक पोत (शोकेस के दौरान) से उड़ान भरेंगे लेकिन गोवा में आईएनएस हंसा से यह उड़ान शोर-बेस्ड टेस्ट फैसिलिटी (एसबीटीएफ) का हिस्सा होगी. दसॉल्ट एविएशन को अपने विमानों की क्षमता पर पूरा भरोसा है और वह भारत में इसका ही प्रदर्शन करना चाहता है.’
सूत्रों ने कहा कि अभी इसके लिए तारीख तय करना बाकी है लेकिन सहमति बनने पर दसॉल्ट जनवरी की शुरू में ही राफेल एम लाने के लिए भी पूरी तरह तैयार है.
कैरियर-बेस्ड फाइटर्स मुख्यत: तीन श्रेणियों में आते हैं- एसटीओवीएल (शॉर्ट टेक-ऑफ एंड वर्टिकल लैंडिंग), एसटीओबीएआर (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) और सीएटीओबीएआर (कैटापल्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी).
फ्रांसीसी विमानवाहक पोत चार्ल्स डी गॉल और अमेरिकी वाहक सीएटीओबीएआर का उपयोग करते हैं जबकि भारतीय विमान वाहक- आईएनएस विक्रमादित्य और एक स्वदेशी वाहक जिसका अभी परीक्षण चल रहा है—एसटीओबीएआर उपयोग करते हैं. इसलिए विदेशी युद्धक विमानों के लिए अपनी क्षमताएं दर्शाना एक बुनियादी जरूरत होती है.
विमान वाहक से सफलतापूर्वक लॉन्च के लिए सबसे जरूरी तथ्य यह है कि स्की-जंप टेक-ऑफ के कुछ सेकंड बाद जब तक लड़ाकू विमान विंग के सहारे उड़ान नहीं भरने लगता, उसका व्यवहार किस तरह का होता है.
राफेल एम के प्रतिद्वंद्वी—बोइंग के एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट फाइटर—ने दिसंबर 2020 में स्की-जंप क्षमता का प्रदर्शन किया था. हालांकि, ये प्रदर्शन यूएस में पेटक्सेंट नदी स्थित नेवल एयर स्टेशन पर आयोजित किया गया था.
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राफेल के नौसेना वर्जन पर 2016 से पहले हुई थी बात
2016 में वायुसेना के लिए 36 लड़ाकू विमानों पर करार होने से काफी पहले से ही दसॉल्ट एविएशन राफेल के नौसैनिक वर्जन के लिए नौसेना के साथ बातचीत कर रही थी.
2017 में नौसेना ने 57 नए लड़ाकू विमान खरीदने के उद्देश्य से विदेशी कंपनियों के लिए रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन (आरएफआई) जारी किया था.
हालांकि, अब जबकि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ट्विन-इंजन कैरियर-आधारित डेक फाइटर (टीईबीडीएफ) पर काम कर रहा है, नौसेना अपनी विदेशी लड़ाकू विमानों की जरूरत में कटौती कर सकती है.
वहीं, पिछले साल नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने यह भी कहा था कि नौसेना आईएएफ के साथ लड़ाकू विमानों को साझा करके भी अपनी जरूरतों को पूरा कर सकती है.
उन्होंने कहा था, ‘हमारे पास विक्रमादित्य से ऑपरेट करने वाला मिग-29के है और यह स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी)-आई से ऑपरेट होगा. हम उन्हें मल्टी-रोल कैरियर-बॉर्न फाइटर्स (एमआरसीबीएफ) के साथ बदलने की कोशिश कर रहे हैं जो काम हम वायुसेना के साथ मिलकर भी कर सकते हैं.’
‘आईएसी-आई की लिफ्ट हर तरह के विमानों के लिए उपयुक्त’
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने यह आशंका दूर करने की कोशिश की कि स्वदेशी विमानवाहक पोत की लिफ्ट छोटी है और राफेल एम या एफ/ए-18 को ऑपरेट करने के लिहाज से उपयुक्त नहीं होगी. बोइंग फाइटर फोल्डेबल विंग्स के साथ आता है, जबकि राफेल में ऐसा नहीं है.
एक सूत्र ने कोई खास ब्यौरा देने से इनकार करते हुए केवल यही कहा, ‘एक अहम तथ्य यह है कि जब दोनों कंपनियां अपने विमानों की पेशकश के लिए उत्सुक हैं, तो इसका मतलब है कि उन्होंने विभिन्न मापों को ध्यान में रखा होगा.’
सूत्रों ने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट पर सारी चर्चा नौसेना में आंतरिक रूप से चल रही है और आगे कोई भी फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि कंपनियां लागत के संदर्भ में क्या पेशकश करती हैं, भविष्य में इस पर होने वाले खर्च और इसके अपग्रेड के संबंध में क्या पेशकश की जाती है.
उन्होंने कहा कि जहां दसॉल्ट नौसेना की जरूरतों को वायु सेना के साथ साझा तौर पर पूरा करने को तैयार है, वहीं बोइंग इसे लेकर आशंकित है.
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