नई दिल्ली: रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा पेंशन और वेतन पर ही खर्च होने को देखते हुए सैन्य मामलों का विभाग (डीएमए) रिटायरमेंट आयु बढ़ाने को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है. इसके साथ ही तीनों सेवाओं में विभिन्न रैंक के अधिकारियों के बीच समानता की तैयारी भी की जा रही है.
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि एक बार ये बदलाव लागू हो गए तो सशस्त्र बलों में रिटायरमेंट के बाद फिर से नौकरी देने की अवधारणा घटेगी, और अधिकारियों की कमी की समस्या भी हल होगी.
सूत्रों ने बताया कि पुनर्नियुक्त अधिकारियों की जिम्मेदारियों में बदलाव की दिशा में भी काम किया जा रहा है ताकि पुन: सेवा में आने वाले अधिकारी अपनी रैंक के समान स्तर पर ही काम कर सकें, न कि मौजूदा व्यवस्था की तरह, जिसमें अधिकारी वेतन तो अपनी रैंक के मुताबिक पाते हैं लेकिन उनकी जिम्मेदारियां काफी नीचे की रैंक वाली रह जाती हैं.
सूत्रों ने कहा कि पेंशन और वेतन पर होने वाला भारी-भरकम खर्च चिंता का विषय रहा है क्योंकि इसका सीधा मतलब यह होता कि राशि आवंटन के लिहाज से रक्षा बजट काफी ज्यादा है लेकिन वास्तव में आधुनिकीकरण पर खर्च की जाने वाली रकम काफी कम होती है.
भारत इस साल के शुरू में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रक्षा खर्च वाला देश बनकर उभरा था. भारत ने इस मामले में रूस को भी पीछे छोड़ दिया, जिस पर वह रक्षा उपकरणों के लिए बहुत अधिक निर्भर है.
सूत्रों ने कहा कि मुख्य मुद्दा ‘कर्नल’ रैंक का है क्योंकि तीनों सेवाओं में रिटायरमेंट की उम्र अलग-अलग होती है, भारतीय वायु सेना में ही रिटायरमेंट की उम्र के दो अलग-अलग मानक हैं, जो इस पर निर्भर करते हैं कि कोई ‘फ्लाइंग ब्रांच’ से है या नहीं.
सेना में कर्नल-रैंक का कोई अधिकारी 54 वर्ष की आयु में रिटायर होता है. नौसेना में उसके समकक्ष यानी किसी कैप्टन की रिटायरमेंट आयु 56 वर्ष होती है. वायुसेना में उनका समकक्ष एक ग्रुप कैप्टन होता है. अगर कोई ग्रुप कैप्टन ‘फ्लाइंग ब्रांच’ से है तो 54 साल की उम्र में ही रिटायर हो जाता है, वहीं सभी नॉन-फ्लाइंग ग्रुप कैप्टन 56 साल की उम्र में रिटायर होते हैं.
इसी तरह, सेना में कोई ब्रिगेडियर और नौसेना में कोई कमोडोर जहां 56 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होता है, वहीं वायुसेना में उनके समकक्ष (एयर कमोडोर) की सेवानिवृत्ति आयु क्रमशः 56 और 58 वर्ष होती है, यह इस पर निर्भर करता है कि वह फ्लाइंग ब्रांच से है या नहीं.
सेना में मेजर-जनरल-रैंक के अधिकारी 58 साल की उम्र में रिटायर होते है, नौसेना में रियर एडमिरल 58 साल की उम्र में रिटायर होते हैं और एयर वाइस मार्शल के रिटायर होने की उम्र 59 वर्ष है.
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सेनाओं में एकरूपता सुनिश्चित करना
एक सूत्र ने कहा, ‘सेना में सबसे बड़ी समस्या कर्नल रैंक को लेकर है क्योंकि उनकी सेवानिवृत्ति आयु बहुत कम है. हर साल करीब 1,000 अधिकारी या तो रिटायर होते हैं या सेवानिवृत्त कर दिए जाते हैं. उनमें से अधिकांश अमूमन ब्रिगेडियर के अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल और कर्नल रैंक के होते हैं. उनमें से कई फिर से नौकरी के लिए आवेदन करते हैं जो आमतौर पर दी भी जाती है.’
सूत्र ने आगे बताया कि जब किसी कर्नल या ब्रिगेडियर को फिर से सेवा में लिया जाता है तो उन्हें जो जिम्मेदारी दी जाती है वह कम से कम दो रैंक नीचे की होती है.
सूत्र ने कहा, ‘हर साल बीएसएफ में ब्रिगेडियर के स्तर पर नौ रिक्तियां होती हैं. जब कोई ब्रिगेडियर बीएसएफ ज्वाइन करता है, तो उसे डीआईजी के तौर पर तैनाती मिलती है, जिसे आमतौर पर ब्रिगेडियर के समकक्ष माना जाता है. वह ब्रिगेडियर स्तर का वेतन लेता है और किसी ब्रिगेडियर के तौर पर ही काम करता है. सेना में ब्रिगेडियर को ऐसी जिम्मेदारियां दी जाती हैं जो दरअसल स्टाफ ड्यूटी में एक लेफ्टिनेंट कर्नल-रैंक के अधिकारी को मिलती हैं.’
जनरल बिपिन रावत के नेतृत्व में डीएमए के पीछे विचार यह सुनिश्चित करना ही है कि भले ही रि-एंप्लायमेंट हो, अधिकारियों के समान स्तर पर काम करते रहने से सैन्य बलों को पूरी प्रक्रिया का ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले.
साथ ही, तीनों सेवाओं के लिए सेवानिवृत्ति आयु समान करने से यह सुनिश्चित होगा कि इसमें एकरूपता बनी रहेगी और अधिकारियों की संख्या में कमी की समस्या भी दूर होगी.
पिछले साल अक्टूबर में डीएमए की तरफ से रिटायरमेंट और पेंशन को लेकर प्रस्तावित नई नीति पर जारी एक नोट ने सेना में गंभीर नाराजगी नजर आई थी, इस संकेत के साथ कि तीनों सेवाओं में इस पर एक राय नहीं है.
हालांकि, तब प्रमुख चिंता समय से पहले सेवानिवृत्ति (पीएमआर) चाहने वालों की पेंशन पात्रता के लिए प्रस्तावित बदलाव को लेकर थी.
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