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Monday, 3 March, 2025
होमडिफेंसरक्षा क्षेत्र को सालों से कम बजट मिला, लॉन्ग टर्म सोच की कमी—जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल वोहरा

रक्षा क्षेत्र को सालों से कम बजट मिला, लॉन्ग टर्म सोच की कमी—जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल वोहरा

आईआईसी में अपनी किताब पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि सेना के 'एकल सेवा दृष्टिकोण' की वजह से कई समस्याएं पैदा हुई हैं, जैसे एक ही तरह के पदों का बार-बार बनाया जाना.

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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने चेतावनी दी है कि भारतीय सेना का लंबे समय तक नागरिक और राजनीतिक मुद्दों से जुड़ा रहना सेना के लिए गंभीर समस्याएं खड़ी करेगा, जो पहले से ही कई “गंभीर असंतुलनों” का सामना कर रही है.

वोहरा ने कहा, “1947 से लेकर अब तक हमने पाकिस्तान के साथ कई युद्ध लड़े हैं. हमने 1948, 1965 का युद्ध, 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और 1999 में कारगिल युद्ध देखा. मैं यह कहना चाहता हूं कि रक्षा मंत्रालय को इन वर्षों में बहुत कमजोर बजट मिला है.” वह दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) में अपनी पुस्तक इंडियाज़ नेशनल सिक्योरिटी चैलेंजेस (2023) पर चर्चा के दौरान बोल रहे थे.

पूर्व राज्यपाल ने कहा कि “कोई सामूहिक दीर्घकालिक (क्लेक्टिव लॉन्ग टर्म) सोच नहीं रही है,” जिससे “गंभीर असंतुलन” पैदा हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि सशस्त्र बलों की “एकल सेवा दृष्टिकोण” (सिंगल सर्विस अप्रोच) की नीति ने कई समस्याएं पैदा की हैं, जिनमें “पदों की पुनरावृत्ति” (डुप्लीकेशन ऑफ पोजीशंस) भी शामिल है.

उन्होंने कहा, “हमारे पड़ोस में हालात हमारे अनुकूल नहीं रहे हैं. पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (LoC) कोई शांत सीमा नहीं है. चीन पिछले सात वर्षों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लगातार समस्याएं पैदा कर रहा है. सीमाओं पर बढ़ते खतरों के साथ-साथ हमारे आंतरिक मुद्दों को भी हमें गंभीरता से लेना चाहिए.”

वोहरा ने कहा कि भारत को आंतरिक रूप से भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें देश के मध्य भाग में वामपंथी उग्रवाद (लेफ्ट-विंग एक्सट्रीमिज़्म) और उत्तर-पूर्वी राज्यों के पुराने विवाद शामिल हैं, जिनमें से कुछ समस्याएं स्वतंत्रता से पहले से चली आ रही हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अतीत में पंजाब में एक गंभीर सुरक्षा स्थिति देखी गई, जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) का वित्तीय सहयोग था. जम्मू-कश्मीर की स्थिति भी पिछले तीन दशकों से “प्रॉक्सी वॉर” जैसी रही है.

उन्होंने कहा, “आईएसआई लंबे समय से उग्रवाद और कट्टरपंथ को फैलाने में सक्रिय रहा है. लगातार होने वाली अशांति और इससे जुड़े भारी आर्थिक और मानव नुकसान विकास को बाधित करते हैं। शांति, सामान्य स्थिति और सार्वजनिक व्यवस्था की अनुपस्थिति से आर्थिक अस्थिरता पैदा होती है.”

इस चर्चा में वोहरा के साथ पैनल में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज़ के विजिटिंग प्रोफेसर सी. राजा मोहन, अनंता सेंटर की सीईओ इंद्राणी बागची और कैबिनेट सचिवालय के पूर्व विशेष सचिव राणा बनर्जी भी शामिल थे. सत्र का संचालन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) के अध्यक्ष और पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने किया.

वोहरा और मोहन दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य सरकारों को हर कानून-व्यवस्था की समस्या के लिए गृह मंत्रालय (MHA) पर निर्भर रहने के बजाय संविधान के अनुसार अपने संसाधनों का उपयोग करना चाहिए.

वोहरा ने कहा, “गृह मंत्रालय से हर छोटी समस्या में मदद मांगने की अत्यधिक निर्भरता गलत है. MHA के पास केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) हैं, लेकिन उनकी ताकत इतनी अधिक नहीं है कि वे बहु-स्तरीय समस्याओं को प्रभावी ढंग से संभाल सकें.”

उन्होंने आगे कहा, “अच्छी संख्या में सेना की लंबी तैनाती ने सेना के पैदल सैनिकों (इंफैंट्री) की ताकत को कमजोर कर दिया है. सेना का नागरिक और राजनीतिक मुद्दों में लंबे समय तक उलझे रहना गंभीर समस्याएं पैदा करता है.”

‘नई दिल्ली में आत्मसंतुष्टि’

मोहन ने कहा कि नई दिल्ली में एक तरह की संतुष्टि बढ़ रही है. लोगों को लग रहा है कि भारत एक अच्छी स्थिति में है और आगे भी ऐसा ही रहेगा, क्योंकि दुनिया के कई देश इसकी बड़ी आबादी और बढ़ती अर्थव्यवस्था की वजह से भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं.

“मुझे लगता है कि यह धारणा [कि भारत एक सुविधाजनक स्थिति में है] आज सवालों के घेरे में है. अगर आप केवल (डॉनल्ड) ट्रंप के 40 दिनों के राष्ट्रपति कार्यकाल (अमेरिका में) को देखें, तो यह दर्शाता है कि वैश्विक व्यवस्था बदलाव के दौर से गुजर रही है. वैश्विक स्तर पर हो रहे बड़े बदलाव आंतरिक सुरक्षा के लिए भी चुनौती बन सकते हैं.”

उन्होंने आगे कहा कि भारत की व्यवस्था में “परिवर्तन के प्रति अनिच्छा” है, जो आंतरिक और बाहरी सुरक्षा खतरों से निपटने में एक बाधा बन सकती है.

मोहन ने कहा, “हमारी एक संस्कृति बन गई है जहां हम मानते हैं कि किसी भी चीज़ में बदलाव की ज़रूरत नहीं है. यह पहले से ही पर्याप्त है. बदलाव के प्रति यह अनिच्छा, 70 साल पहले लिए गए फैसलों पर पुनर्विचार न करना—अगर आप आंतरिक रूप से परिवर्तन नहीं करते हैं, तो बाहरी चुनौतियों का सामना करने की आपकी क्षमता प्रभावित होगी.”

“राज्यों के पास अपने संवैधानिक दायित्व पूरे करने की कोई प्रेरणा नहीं है और वे हर समस्या को केंद्र सरकार की ओर धकेल देते हैं. मुझे लगता है कि यदि इसमें बदलाव नहीं किया गया, तो भविष्य में अधिक परेशानियां आएंगी.”

इसके अलावा, पैनल में शामिल विशेषज्ञों ने कहा कि भारत अपनी सीमाओं पर कई सुरक्षा खतरों का सामना कर रहा है. डुरंड रेखा, जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान को अलग करती है, हाल के महीनों में बढ़ती सुरक्षा समस्याओं का गवाह बनी है.

पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांतों में हमलों में वृद्धि हुई है, जिससे इस्लामाबाद ने अफगानिस्तान पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) सहित कई समूहों को शरण देने का आरोप लगाया है. स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और दोनों देशों ने पिछले सप्ताह सीमा चौकियों को भी बंद कर दिया था.

“पेशावर में जो होता है, वह लाहौर को प्रभावित करेगा, और लाहौर में जो होता है, वह नई दिल्ली को प्रभावित करेगा,” मोहन ने कहा. लेकिन अगर पाकिस्तान में स्थिति तनावपूर्ण है, तो भारत की पूर्वी सीमा पर भी म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध के कारण कई चुनौतियां हैं. इस सबके बीच, सैन्य खरीद में तत्काल सुधार की आवश्यकता है, जिसे मोहन ने जरूरी बताया.

स्टक्सनेट वायरस, जिसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को प्रभावित किया था, से लेकर उपभोक्ता तकनीकों पर बढ़ते साइबर हमलों तक, बागची ने चेतावनी दी कि सुरक्षा खतरों का स्वरूप अब तेजी से साइबर हमलों की ओर बढ़ रहा है.

“हमें सुरक्षा चुनौतियों की बहुआयामी प्रकृति को ध्यान में रखना होगा. हम यह भी देख रहे हैं कि युद्ध की प्रकृति अब असममित होती जा रही है,” सरन ने कहा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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