नई दिल्ली: तीन साल तक चले एक विशाल अभियान, जिसमें सैकड़ों कर्मियों, ड्रोन, उपग्रह और 3-डी मॉडलिंग का इस्तेमाल भी शामिल है, के बाद रक्षा मंत्रालय ने अंततः आजादी के बाद से देश में किया गया सबसे बड़ा भूमि सर्वेक्षण (डिजिटल रूप में) पूरा कर लिया है.
रक्षा संपदा कार्यालयों (डिफेन्स एस्टेट्स ऑफिसेज़) के पास उपलब्ध लेखे-जोखे (रिकॉर्ड) के अनुसार, रक्षा मंत्रालय इस देश का सबसे बड़ा भू-स्वामी (जमीन मालिक) है जिसके स्वामित्व में लगभग 17.99 लाख एकड़ जमीन है.
इसमें से लगभग 1.61 लाख एकड़ भूमि 62 छावनियों (कैंटोनमेंट) के तहत अधिसूचित है. शेष भूमि, जो लगभग 16.38 लाख एकड़ रकबे वाली है, देश भर में और छावनियों के बाहर फैली हुई है.
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इसमें से लगभग 18,000 एकड़ या तो राज्य द्वारा किराए पर ली गई भूमि है या इसे सरकार के अन्य विभागों को स्थानांतरित किए जाने के कारण रिकॉर्ड से हटाने का प्रस्ताव है.
रक्षा मंत्रालय के पास मौजूद जमीन में फायरिंग रेंज, परीक्षण स्थल और अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीन भी शामिल है.
रविवार को जारी किये गए एक बयान में रक्षा मंत्रालय ने कहा कि छावनियों के अंदर स्थित लगभग 1.61 लाख एकड़ के साथ – साथ उनके बाहर स्थित 16.17 लाख एकड़ (कुल 17.78 लाख एकड़) रक्षा भूमि के सर्वेक्षण की सारी कवायद अब पूरी हो चुकी है.
मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि बची हुई कुछ जमीन का डिजिटल सर्वे अभी जारी है और इसे भी जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा.
रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है, ‘आजादी के बाद से यह पहली बार है जब नवीनतम सर्वेक्षण तकनीकों का उपयोग करते हुए एवं विभिन्न राज्य सरकारों के राजस्व अधिकारियों के सहयोग के साथ कई सारे पॉकेट्स में स्थित समूची रक्षा भूमि का सर्वेक्षण किया गया है.’
इस बयान में आगे कहा गया है, ‘भूमि जोत का परिमाण, देश भर में लगभग 4,900 इलाकों (पॉकेट्स) में फैली हुई भूमि का स्थान, कई जगहों पर दुर्गम इलाके और विभिन्न हितधारकों का जुड़ाव इस सर्वेक्षण को देश के सबसे बड़े भूमि सर्वेक्षणों में से एक बनाता है.’
कब और क्यों शुरू किया गया था यह सर्वे?
रक्षा मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण के कार्यकाल का दौरान ही अक्टूबर 2018 में रक्षा भूमि के इस सर्वेक्षण के लिए आदेश जारी किया गया था.
मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार यह नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा रक्षा भूमि के सन्दर्भ में उठाए गए कदमों की एक पूरी श्रृंखला का हिस्सा था.
उस वक्त तक, रक्षा सर्वेक्षण का कार्य शारीरिक रूप से किया जाता था और इस भूमि के बारे में – तथा इसके किसी भी प्रकार के अतिक्रमण के बारे में भी – सटीक विवरण प्राप्त करने के लिए एक डिजिटल सर्वेक्षण की आवश्यकता महसूस की गई थी.
सीतारमण ने तब कहा था कि देश भर में फैली रक्षा भूमि की विशालता इतनी अधिक है कि कभी-कभी, ‘हम इस संपत्ति पर अपना दैनिक नियंत्रण लगभग खो सा देते हैं. हमें इस संपत्ति की सुरक्षा करनी होगी और इसे अतिक्रमण से मुक्त रखना होगा.’
रक्षा संपदा कार्यालयों के सूत्रों ने पहले बताया था कि 1990 के दशक में देश की रक्षा भूमि के 17.99 लाख एकड़ से भी अधिक होने का अनुमान लगाया गया था. उनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न कारणों से कई एकड़ जमीन का नुकसान हो चुका है.
कैसे किया गया यह डिजिटल सर्वे?
सूत्रों ने रक्षा भूमि के सर्वेक्षण के कार्य को ‘एक विशालकाय’ अभियान के रूप में वर्णित किया, जिसमें राज्य सरकारों सहित कई हितधारकों के साथ नजदीकी समन्वय भी शामिल था.
एक ओर जहां इस सर्वेक्षण में इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन (इटीएस) और डिफरेंशियल ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (डीजीपीएस) जैसी आधुनिक सर्वेक्षण तकनीकों का उपयोग किया गया था, वहीं ड्रोन और उपग्रहों का प्रयोग फर्क पैदा करने वाला (गेम चेंजर) साबित हुआ था.
सर्वेक्षण किए गए 17.78 लाख एकड़ रकबे वाली जमीन में से 8.90 लाख एकड़ का सर्वेक्षण पिछले तीन महीनों के दौरान ही किया गया था.
मंत्रालय ने कहा कि पहली बार राजस्थान में स्थित लाखों एकड़ रक्षा भूमि के सर्वेक्षण के लिए ड्रोन से मिली तस्वीरों (इमेजरी) पर आधारित सर्वेक्षण तकनीक का इस्तेमाल किया गया था.
इसमें कहा गया है कि भारत के महासर्वेक्षक की मदद से पूरे क्षेत्र का यह सर्वेक्षण कुछ ही हफ्तों में कर लिया गया, जबकि इसी कार्य में पहले सालों लग जाते थे.
साथ ही, कई रक्षा भूमि पॉकेटस के लिए पहली बार सैटेलाइट इमेजरी-बेस्ड (उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों पर आधारित) सर्वेक्षण किया गया था.
उपरोक्त के अलावा, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के सहयोग से डिजिटल एलिवेशन मॉडल (डीईएम) का उपयोग करके पहाड़ी क्षेत्रों में रक्षा भूमि के बेहतर दृश्यांकन (विसुअलिसशन) के लिए 3डी मॉडलिंग तकनीक भी अपनाई गई थी.
एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में रक्षा भूमि पर किये गए अतिक्रमणों का पता लगाने के लिए सैटेलाइट इमेज टाइम सीरीज़ (एसआईटीएस) – अलग-अलग समय पर एक ही क्षेत्र की उपग्रह से ली गई तस्वीरों छवियों का उपयोग – आधारित रीयल-टाइम चेंज डिटेक्शन सिस्टम के लिए एक परियोजना भी शुरू की गई है.
इस उद्देश्य के लिए, राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर), हैदराबाद से प्राप्त रक्षा भूमि पॉकेट्स की उपग्रह से ले गई तस्वीरों के साथ एक प्रारंभिक परीक्षण भी किया गया है.
‘रक्षा भूमि के स्थानांतरण और अदला-बदली पर तेजी से होगा फैसला’
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि बदलते समय के साथ सर्वेक्षण की तकनीकों में काफी सुधार हुआ है और तेजी से निर्णय लेने के लिए उनका उपयोग करना महत्वपूर्ण था.
उनका कहना था कि भूमि की माप के पहले के तरीके एक बोझिल प्रक्रिया जैसे थे.
रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, ‘डिजिटल सर्वेक्षण और रिकॉर्ड के साथ, भूमि के हस्तांतरण, इसकी अदला-बदली या यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस पर कोई अतिक्रमण तो नहीं है, अब तेजी से निर्णय लिया जा सकता है.’
सूत्रों ने कहा कि डिजिटलीकरण इस सरकार की प्राथमिकता रही है और दिन-प्रतिदिन के कामकाज को सरल बनाने के लिए छावनी बोर्डों में भी ऐसे कई कदम उठाए गए हैं – जैसे जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र ऑनलाइन अपलोड करना, विभिन्न कार्यों के लिए ऑनलाइन भुगतान, आदि.
रक्षा भूमि भी मोदी सरकार के विशेष ध्यान वाला क्षेत्र रहा है और साल 2020 में इसने उन नए नियमों को मंजूरी दी थी जो सशस्त्र बलों से खरीदी गई भूमि के बदले उनके उपयोग हेतु समान मूल्य वाले बुनियादी ढांचे (इक्वल वैल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर – ईवीआई) के विकास की अनुमति देते हैं.
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