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Friday, 22 November, 2024
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चीनी नौसेना बना रही आगे की रणनीति, भारत समुद्र के ऊपर या अंदर तैयारी के मामले में उससे कोसों पीछे

चीन जहां विमान वाहक से लेकर युद्ध पोतों तक अपना नौसैनिक बेड़ा बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, वहीं भारतीय नौसेना का बजट लगातार घटता जा रहा है.

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नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने गुरुवार को स्कॉर्पीन श्रेणी की चौथी पनडुब्बी—आईएनएस वेला—को नौसेना में शामिल किया. कुछ ही दिन पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विशाखापत्तनम श्रेणी के पहले युद्धपोत को कमीशन किया था. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि इन दोनों के भारतीय नौसेना में शामिल होने से इस सैन्य बल को मजबूती मिली है क्योंकि इन्होंने पानी के ऊपर और नीचे दोनों जगह खतरों से निपटने की भारत की ताकत और मारक क्षमता को बढ़ाया है.

तथ्यात्मक तौर पर बात करे तो एक ऐसा क्षेत्र जहां चीन भारतीय सैन्य दबाव को महसूस कर सकता है वह नौसेना के मोर्चे पर ही है. कम से कम फिलहाल तो है ही. जमीनी मोर्चे पर चीन से निपटने में भारत जो सबसे बेहतर कर सकता था वह एक गतिरोध के तौर पर सामने है. और इस गतिरोध को भारत के हित में नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह चीन के लिए ही फायदेमंद है.

जैसा मैंने पूर्व में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि नौसेना उपप्रमुख वाइस एडमिरल सतीश नामदेव घोरमडे ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारतीय नौसेना के लिए रूस में निर्मित हो रहे दो युद्धपोतों के अलावा विभिन्न भारतीय शिपयार्ड में 39 पनडुब्बियां और सरफेस शिप निर्माणाधीन हैं. उन्होंने यह भी कहा कि नौसेना, जिसके पास अभी लगभग 139 जहाज हैं, अगले कुछ वर्षों में अपने बेड़े को 170 जहाजों तक पहुंचाने के लक्ष्य पर चल रही है.

हालांकि, यह अच्छी खबर है लेकिन हमें, जो कहा जा रहा है उससे आगे जाकर यह देखने-समझने की जरूरत है कि सैन्य आधुनिकीकरण के मामले में भारत वास्तव में कहां खड़ा है, खासकर चीन के मुकाबले, जो न केवल इस क्षेत्र पर बल्कि पूरी दुनिया पर हावी होने का इरादा रखता है.

चीनी नौसेना बहुत आगे की रणनीति बना रही है

सैन्य जमावड़े के मामले में चीन का मुख्य फोकस अपनी नौसेना पर है. दूसरा, निश्चित रूप तौर पर इसकी मिसाइल तकनीक है. चीन अच्छी तरह जानता है कि आने वाले समय में समुद्री मोर्चा बेहद अहम हो जाएगा. शायद यही वजह है पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) दुनिया में सबसे तेजी से सुदृढ़ हो रही नौसेना है.

पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा (रिटायर्ड) ने 2019 में कहा था कि पिछले दो सौ सालों में कोई भी नौसेना इतनी तेजी से नहीं उभरी जितनी तेजी से चीनी नौसेना ने प्रगति की है. उन्होंने यह भी कहा था कि चीन ने पिछले पांच वर्षों में 80 नए जहाजों को शामिल किया है जो किसी भी सैन्य जमावड़े के लिहाज से एक चौंकाने वाली गति है, जिसे अमेरिका ‘खतरा’ तक करार दे चुका है.

जैसा कि बिजनेस स्टैंडर्ड के एक संपादकीय में कहा गया है, भारत ने पिछले पांच वर्षों में से हर साल एक या दो की संख्या में कैपिटल वॉरशिप शामिल किए हैं जो कि सेवा से बाहर होने वाले युद्धपोतों को बदलने के लिहाज से भी पर्याप्त नहीं हैं.

इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि चीन का जहाज निर्माण बड़े युद्धपोतों, उभयचर युद्धपोतों और विमान वाहक पोतों के बड़े बेड़े पर केंद्रित है. चीन की सैन्य क्षमताओं पर अमेरिकी रक्षा विभाग की हाल में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएलएएन आंकड़ों के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जिसकी कुल युद्धक क्षमता लगभग 355 जहाजों और पनडुब्बियों के बेड़े वाली है, जिसमें 145 से अधिक प्रमुख सरफेस कॉम्बैटेंट भी शामिल हैं.

2020 तक स्थिति के मुताबिक, पीएलएएन के पास व्यापक स्तर पर आधुनिक मल्टी-रोल प्लेटफार्म हैं और निकट भविष्य में पीएलएएन अपने लैंड-अटैक क्रूज का इस्तेमाल करते हुए अपनी पनडुब्बियों और सरफेस कॉम्बैटेंट के जरिये जमीन पर लंबी दूरी के निर्धारित लक्ष्यों पर सटीक निशाना साधने की क्षमता हासिल कर लेगी, जो निश्चित तौर पर दुनियाभर में उसकी हमलावर क्षमता को बढ़ाने वाला है.

अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पीआरसी पीएलएएन के विमान वाहक और बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों की सुरक्षा के लिए अपनी पनडुब्बी रोधी युद्ध (एएसडब्ल्यू) क्षमताओं और दक्षताओं को बढ़ा रहा है.’ चीन की जहाज निर्माण रणनीति और कौशल के स्तर को समझना बहुत जरूरी है

भारत के चार नवीनतम विशाखापत्तनम श्रेणी के जहाजों की लंबाई 163 मीटर, चौड़ाई 17 मीटर और वजन 7,400 टन है. लेकिन इस बीच चीन पहले ही अपने 7,500 टन के जहाजों की जगह 13,000 टन वाले टाइप 055 रेन्हाई-क्लास पोतों के साथ आगे निकल चुका है. इसके अलावा चीन की सैन्य उत्पादन क्षमता और दृष्टिकोण भारत के एकदम विपरीत है.

भारत जहां एक ही श्रेणी के जहाजों की संख्या सीमित रखता है (प्रोजेक्ट 15बी में केवल चार विशाखापत्तनम-श्रेणी के युद्धपोत शामिल हैं), वहीं, चीन अगली श्रेणी के उन्नत और वजनी पोत के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने से पहले बड़ी संख्या में जहाजों (कम से कम एक दर्जन) को शामिल करता है. यह न केवल उत्पादन को स्थिर करने और लागत घटाने में मददगार होता है बल्कि पैमाने और जहाज निर्माण की क्षमता को भी बढ़ाता है.

जब मैं यह सब लिख रहा हूं, चीन अपने तीसरे विमानवाहक पोत को लॉन्च करने के लिए पूरी तरह तैयार है, जिसमें पारंपरिक स्की जंप-स्टाइल के बजाये टेक-ऑफ के लिए कैटापल्ट टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होगा, जबकि भारत अभी इस बात पर ही चर्चा कर रहा है कि तीसरा विमान वाहक पोत होना चाहिए या नहीं. ऐसा अनुमान है कि चीन 2030 तक छह विमानवाहक पोतों का संचालन खत्म कर सकता है.

भारत का 170 जहाजों का लक्ष्य वास्तव में बहुत सीमित है

भारतीय नौसेना उप प्रमुख की प्रेस कांफ्रेंस में यह बात सुर्खियों में रही थी कि ‘भारतीय नौसेना की 170 जहाजों वाला बल बनने की योजना पटरी पर है,’ पर एक बात याद रखनी चाहिए कि यह लक्ष्य वास्तव में जरूरतों की तुलना में बहुत ही कम है.

2019 में नौसेना ने 2027 तक 200 जहाज के मजबूत बेड़े के अपने लक्ष्य पर फिर मंथन किया और कई सालों से जारी गहरे वित्तीय संकट के मद्देनजर इस आंकड़े को घटाकर 170 कर दिया.

चीन जहां अपने नौसैनिक जमावड़े पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रहा है, भारत के मामले में रक्षा बजट में नौसेना की हिस्सेदारी 2012-13 में 18 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 13 प्रतिशत ही रह गई, जैसा कि मौजूदा नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने 2019 में रेखांकित किया था.

2021-22 का बजट इससे इतर नहीं है क्योंकि नौसेना को वित्तीय बाध्यताओं का सामना करना पड़ रहा है.

बात जब युद्धपोतों, कार्वेट, पनडुब्बियों आदि की आती है तो मैं भारत और चीन के बीच आंकड़ों की तुलना के फेर में नहीं पड़ता हूं. क्योंकि यह स्थिति बहुत ही निराशाजनक है. आपको साधारण गूगल सर्च से भी पता चल जाएगा कि पीएलएएन इसमें भारतीय नौसेना को कैसे कोसों पीछे छोड़ देती है.

हां, एक तर्क यह हो सकता है कि यद्यपि पीएलएएन आंकड़ों के लिहाज से काफी आगे है लेकिन उसे इस तरह के बड़े बेड़े को संचालित करने या समुद्र में वास्तविक युद्ध लड़ने का अभी तक कोई अनुभव नहीं है, लेकिन यह स्थिति तभी तक तो है जब तक कि वह ऐसा नहीं करती.

जरूरत इस बात की है कि भारत का नौसैनिक कौशल इस हद तक बढ़ाने पर तो फोकस किया जाए जिससे वह चीन की हरकतों को रोकने की न्यूनतम क्षमता हासिल कर सके, जो कि अमेरिका का मुकाबला करना चाहता है और भारत को एक समान, आर्थिक और सैन्य ताकत के तौर पर नहीं देखता है.

(लेखक का ट्विटर हैंडल @sneheshphilip है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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