scorecardresearch
Monday, 25 November, 2024
होमडिफेंसलद्दाख में 14वें दौर की वार्ता शुरू होने के साथ चीन यथास्थिति के पक्ष में, भारत का तनाव घटाने की कोशिश पर जोर

लद्दाख में 14वें दौर की वार्ता शुरू होने के साथ चीन यथास्थिति के पक्ष में, भारत का तनाव घटाने की कोशिश पर जोर

हॉट स्प्रिंग्स से सैन्य वापसी पर आखिरकार सहमति बन सकती है लेकिन देपसांग और डेमचोक जैसे ‘परंपरागत मुद्दे’ के सुलझने में अधिक समय लग सकता है, ऐसे में भारत और चीन के बीच गतिरोध जारी रहने के ही आसार हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: भारत-चीन के बीच सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता का 14वां दौर बुधवार को पूर्वी लद्दाख में शुरू हो रहा है. इस बीच ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि बीजिंग मौजूदा यथास्थिति को ही जारी रखने की पूरी कोशिश कर रहा है, जबकि नई दिल्ली को उम्मीद है कि अंतत: हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में सैन्य वापसी पर सहमति बनने से दोनों देशों के बीच तनाव घटाने में मदद मिलेगी.

शीर्ष सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि बुधवार की बातचीत भले ही आगे की दिशा में बढ़े लेकिन भारत और चीन के बीच गतिरोध जारी रहेगा. इस दलील के पीछे माना यह जा रहा है कि हॉट स्प्रिंग्स में सैन्य वापसी- जिस पर पहली बार जुलाई 2020 में सहमति बनी थी- को लेकर अंतत: कुछ फैसला हो सकता है. लेकिन देपसांग के मैदान और डेमचोक का ‘परंपरागत मुद्दा’ सुलझने में अभी अधिक समय लगेगा.

सूत्रों ने यह भी कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दोनों तरफ बुनियादी ढांचे के साथ जमावड़े के स्तर को देखते हुए व्यावहारिक तौर पर किसी भी पक्ष के अप्रैल 2020 की स्थिति में लौटने की उम्मीद करना ‘असंभव’ है—जिसकी अभी जरूरत बताई जा रही है.

इस पर जोर देते हुए कि चीन की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, सूत्रों ने कहा कि मई 2020 के बाद से पिछले 18 महीनों में पूर्वी लद्दाख में गतिरोध वाले पांच क्षेत्रों में से चार— गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट, कैलाश रेंज और गोगरा- में सैन्य वापसी पर स्थिति संतोषजनक है.

एक शीर्ष स्तर के सूत्र ने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात यह है कि चीनी उन क्षेत्रों से पीछे हट गए हैं जहां तक वे आ गए थे और उन्होंने बुनियादी ढांचा भी बना लिया था. चीनियों ने कभी भी कहीं भी ऐसा नहीं किया.’

कहा जा रहा है कि बुधवार की वार्ता में पूरा ध्यान हॉट स्प्रिंग्स से सैन्य वापसी पर केंद्रित किया जाएगा न कि देपसांग मैदानों और डेमचोक में जारी गतिरोध पर, जिन्हें ‘परंपरागत मुद्दों’ की श्रेणी में रखा जाता है और जो पिछले साल अक्टूबर में 13वें दौर की वार्ता के दौरान भी विवादित बिंदु थे.

13वें दौर की वार्ता नाकाम रही क्योंकि भारतीय पक्ष अपने रुख पर दृढ़ रहा और उसका कहना था कि एलएसी पर यह स्थिति चीन की तरफ से यथास्थिति को बदलने के प्रयासों के कारण आई है.

भारतीय सेना ने एक बयान में कहा था, ‘बैठक के दौरान भारतीय पक्ष ने बाकी इलाकों से जुड़े मुद्दे हल करने के लिए रचनात्मक सुझाव दिए लेकिन चीनी पक्ष इस पर राजी नहीं हुआ और कोई दूरदर्शी प्रस्ताव भी नहीं दे सका. इससे बैठक में बाकी क्षेत्रों पर कोई सहमति नहीं बन सकी.’


यह भी पढ़ें: SAARC सम्मेलन के लिए पाकिस्तान का न्योता भारत को इन 8 वजहों से कबूल करना चाहिए


चीन की तरफ से यथास्थिति पर जोर देने के संकेत

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने 14वें दौर की वार्ता की तारीखों की पुष्टि करते हुए मंगलवार को कहा कि सीमावर्ती इलाकों में कुल मिलाकर स्थिति स्थिर है.

हालांकि, वांग ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि भारत स्थिति को आपातकालीन स्तर पर सुलझाने के बजाये धीरे-धीरे दैनिक आधार पर हल करने की दिशा में बढ़ने पर काम करेगा.’

‘दैनिक आधार पर प्रबंधन’ पर जोर देने वाले इस सार्वजनिक बयान से रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े विभिन्न वर्गों की भौहें तन गई हैं, क्योंकि इससे यही माना जा रहा है कि चीन अपने मौजूदा कब्जे को ही नई यथास्थिति के तौर पर बनाए रखना चाहता है.

यह कुछ वैसी ही बात है जिस पर चीन 13वें दौर की सैन्य वार्ता से पहले से ही जोर देता रहा है.

चीनी स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले साल सितंबर में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से कहा था कि भारत और चीन को विवादित सीमा के ‘सामान्यीकृत प्रबंधन’ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि केवल किसी ‘आपात प्रतिक्रिया’ का सहारा लेना चाहिए.

एक सूत्र ने कहा, ‘ऐसे में थोड़ा रुककर देखना होगा कि वार्ता कैसे आगे बढ़ती है. भारतीय रुख एकदम स्पष्ट है कि सबसे पहले तो मई 2020 के बाद से सामने आए गतिरोध वाले सभी क्षेत्रों से सैन्य वापसी होनी चाहिए और फिर तनाव घटाने के उपाय होने चाहिए. इसका मतलब है कि सब चीजें वापस उसी तरह होनी चाहिए जैसी अप्रैल 2020 में थीं.’

मौजूदा समय में, भारत और चीन दोनों के सैनिक गलवान घाटी, कैलाश रेंज, पैंगोंग त्सो और गोगरा के उत्तरी तटों में फिंगर एरिया से पीछे हट गए हैं और यहां बफर जोन बन चुके हैं.

इसका मतलब है कि कोई भी पक्ष उन क्षेत्रों में गश्त नहीं करेगा, जहां पहले करता था. सैन्य क्षेत्र से जुड़े कुछ वर्गों में इसे लेकर राय है कि यह भारतीय हितों के प्रतिकूल है.

जुलाई 2020 में तय शर्तों के मुताबिक, यदि इसके सत्यापन के लिए कोई सीमित गश्त करनी जरूरी हो तो सबसे पहले दोनों पक्षों को एक-दूसरे को सूचित करना होगा.

सूत्रों ने कहा कि इस पर सहमति बनी थी कि एक बार गतिरोध वाले सभी बिंदुओं से सैन्य वापसी पूरी हो जाए फिर गश्त के अधिकारों को बहाल करने का मुद्दा सुलझा लिया जाएगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: रक्षा मंत्रालय का 17.78 लाख एकड़ जमीन का ‘काफी बड़ा’ डिजिटल सर्वे पूरा- क्यों, कैसे और आगे क्या


 

share & View comments