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शनिवार, 31 मई, 2025
होमडिफेंसऑपरेशन सिंदूर पर बोले CDS—परमाणु मुद्दों से लेकर फेक न्यूज़ और चीन की भूमिका पर की चर्चा

ऑपरेशन सिंदूर पर बोले CDS—परमाणु मुद्दों से लेकर फेक न्यूज़ और चीन की भूमिका पर की चर्चा

सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा कि पाकिस्तान ने शायद चीन के कमर्शियल सैटेलाइट फोटो का इस्तेमाल किया हो, लेकिन यह साबित नहीं हुआ है कि उन्हें रियल-टाइम में निशाना साधने में कोई मदद मिली हो.

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नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पूरी तरह से स्पष्टता और संचालनात्मक स्वतंत्रता बनाए रखी, भले ही वैश्विक राजनीति में जो कुछ भी चल रहा हो—इस बात को रेखांकित करते हुए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा कि यह एक “नॉन-कॉन्टैक्ट, मल्टी-डोमेन कॉन्फ्लिक्ट” था, जिसमें काइनेटिक और नॉन-काइनेटिक दोनों पहलू शामिल थे—और यह भविष्य के युद्धों की झलक देता है.

उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों पर भी बात की और “रणनीतिक दिशाहीनता” की धारणा को खारिज किया.

उन्होंने कहा, “आज़ादी के समय पाकिस्तान कई पैमानों पर भारत से आगे था; आज भारत जीडीपी, सामाजिक सौहार्द और विकास में आगे है. यह प्रगति दीर्घकालिक रणनीति को दर्शाती है. कूटनीतिक प्रयास हुए हैं—जैसे 2014 में प्रधानमंत्री का नवाज शरीफ को बुलाना—लेकिन जवाब नहीं मिला. ऐसे मामलों में रणनीतिक दूरी खुद एक सोची-समझी प्रतिक्रिया होती है.”

शुक्रवार को सिंगापुर में IISS द्वारा आयोजित शांगरी-ला डायलॉग में दुनियाभर के सैन्य नेताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि परमाणु संघर्ष को लेकर सेना को एक “तार्किक पक्ष” के रूप में देखा जाता है और अनौपचारिक युद्धों में परमाणु वृद्धि को उन्होंने “अतार्किक” बताया.

उन्होंने कहा कि बिना युद्ध के लंबे समय तक सेना की तैनाती भारी लागत लाती है. “इसीलिए भारत ऑपरेशनों के बाद जल्दी से पीछे हटता है. लंबे युद्ध राष्ट्रीय विकास में बाधा डालते हैं—और यही दुश्मनों का उद्देश्य भी हो सकता है,” उन्होंने कहा.

महत्वपूर्ण बात यह रही कि अपने भाषण में सीडीएस ने कहा कि भले ही पाकिस्तान ने चीनी कमर्शियल सैटेलाइट इमेजरी का सहारा लिया हो, लेकिन रियल-टाइम टार्गेटिंग सपोर्ट का कोई सबूत नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को जो सैटेलाइट इमेज मिलीं, वे कमर्शियल थीं, न कि किसी सक्रिय चीनी सैन्य सहायता का हिस्सा.

उन्होंने कहा, “इसके उलट भारत ने स्वदेशी प्रणालियों जैसे आकाश पर भरोसा किया और घरेलू एवं विदेशी रडारों को एक नेटवर्क में जोड़कर प्रभावी रक्षा संरचना बनाई.”

उन्होंने पाकिस्तानी सेना द्वारा फैलाए गए गलत सूचना के युद्ध पर भी बात की और कहा, “15 प्रतिशत ऑपरेशनल समय फर्जी नैरेटिव्स से निपटने में लगा, जिससे यह ज़रूरत स्पष्ट हुई कि एक अलग ‘इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर’ विंग होनी चाहिए.”

“भारत की रणनीति तथ्यों पर आधारित संवाद पर थी, भले ही प्रतिक्रिया धीमी हो. शुरुआत में दो महिला अधिकारी प्रवक्ता के रूप में थीं, जबकि वरिष्ठ नेतृत्व ऑपरेशनों में व्यस्त था. केवल 10 मई के बाद ही DGMO ने मीडिया को जानकारी दी,” उन्होंने कहा.

सीडीएस ने नुकसान पर भी बात की और कहा, “कोई भी युद्ध बिना कीमत के नहीं होता—लेकिन मायने यह रखता है कि आप कैसे प्रतिक्रिया देते हैं. भारत ने तीन दिनों के भीतर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दी, बिना किसी और बढ़ाव के.”

ऑटोमेशन और रोबोटिक्स के मुद्दे पर जनरल चौहान ने चेतावनी दी कि युद्ध में मानवीय नुकसान कम करने से संघर्ष बढ़ने की संभावना बढ़ सकती है. उन्होंने कहा, “जब कम जानें दांव पर होती हैं, तब निर्णय लेने वाले ज़्यादा आक्रामक हो सकते हैं. यह बदलाव गंभीर नैतिक और रणनीतिक चुनौतियां लाता है.”

सीडीएस ने कहा कि आधुनिक युद्ध एक जटिल बदलाव से गुजर रहा है—जिसमें रणनीति, डोमेन (जमीन, हवा, समुद्र, साइबर, स्पेस), समय-सीमा और रणनीतियों का मेल हो रहा है.

साइबर ऑपरेशनों के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इसकी भूमिका सीमित रही. “कुछ डिनायल-ऑफ-सर्विस अटैक हुए, लेकिन भारत की एयर-गैप्ड मिलिट्री सिस्टम सुरक्षित रही. सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर हल्की-फुल्की रुकावटें आईं, लेकिन ऑपरेशनल सिस्टम पर कोई असर नहीं पड़ा,” उन्होंने कहा.

स्पेस और सैटेलाइट इंटेलिजेंस के बारे में उन्होंने दोहराया कि कमर्शियल एक्सेस सभी के लिए उपलब्ध है. “भारत ने अपनी क्षमताओं पर भरोसा किया, जबकि विरोधियों ने शायद सहयोगियों से मदद ली हो—लेकिन रियल-टाइम कोऑर्डिनेशन की पुष्टि नहीं है.”

जनरल चौहान ने बताया कि भारत द्वारा स्वदेशी प्लेटफॉर्म जैसे आकाश और आत्मनिर्भर नेटवर्किंग इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान केंद्रित करना फायदेमंद रहा है. विभिन्न रडारों को एकीकृत एयर डिफेंस सिस्टम में जोड़ना एक प्रमुख सफलता रही, उन्होंने ज़ोर देकर कहा.

भारतीय महासागर क्षेत्र, खासकर उत्तरी बंगाल की खाड़ी की बात करते हुए—जहां भौगोलिक और भू-राजनीतिक कारणों से भारत की उत्तर (चीन के कारण) और पूर्व (म्यांमार के कारण) की दिशा में गतिविधियां सीमित हैं—उन्होंने कहा कि समुद्र भारत का रणनीतिक रास्ता बनता है.

उन्होंने कहा, “हालांकि भारत एक महाद्वीपीय देश है, लेकिन वह एक द्वीपीय राष्ट्र की तरह काम करता है, और उसके द्वीप क्षेत्र उसे गहराई देते हैं. कुछ नई चिंताएं ज़रूर उभरी हैं, लेकिन दृष्टिकोण अब दक्षिण की ओर बढ़ रहा है ताकि समुद्री हितों की व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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