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Monday, 23 December, 2024
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अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे- भारत के ‘सबसे मुश्किल’ प्रोजेक्ट्स में से एक, चीन के कारण तेज गति से काम

2,000 किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग सेना के लिए रणनीतिक महत्व का होगा. अधिकारियों का कहना है कि जिस तरह के उपकरण एलएसी के दूसरी तरफ इस्तेमाल किए जा रहे हैं, ठीक वैसे ही उपकरण दुर्गम इलाके में काम करने के लिए तैनात किए गए हैं.

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नई दिल्ली: पूर्वोत्तर में सीमा संपर्क स्थापित करने के सात दशकों के बाद भारत ने बड़े पैमाने पर एक बुनियादी ढांचे के निर्माण की शुरुआत की है. इसका जीता-जागता उदाहरण अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे है, जो देश की सबसे बड़ी और सबसे मुश्किल परियोजनाओं में से एक है.

हालांकि रक्षा प्रतिष्ठान और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के सूत्रों ने यह बताने से इंकार कर दिया कि इस परियोजना को पूरा होने में अभी कितना समय लग जाएगा या ये कब तक पूरी हो जाएगी. उन्होंने कहा कि यह एक ‘रणनीतिक परियोजना है जिस पर तेजी से काम चल रहा है.’

उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट के कुछ हिस्सों पर काम पहले ही शुरू हो चुका है. इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए अत्याधुनिक उपकरणों को वहां तैनात किया गया है.

चीन ने इस प्रोजेक्ट पर पहले अपनी आपत्ति जताई थी. इसमें भारत 2,000 किलोमीटर लंबी सड़क बना रहा है जो मैकमोहन रेखा के साथ-साथ चलती है. यह सड़क भूटान से सटे अरुणाचल प्रदेश के मागो से शुरू होगी और म्यांमार सीमा के पास विजयनगर में खत्म होने से पहले तवांग, अपर सुबनसिरी, टुटिंग, मेचुका, अपर सियांग, देबांग वैली, देसाली, चागलगाम, किबिथू, डोंग से होकर गुजरेगी.

इस तरह अरुणाचल प्रदेश से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पूरी तरह से एक हाईवे से जुड़ जाएगी. इस परियोजना पर कम से कम 40,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे. सूत्रों ने इसे ‘भारत की सबसे बड़ी और सबसे मुश्किल’ सड़क निर्माण परियोजनाओं में से एक बताया है.

इस प्रोजेक्ट के पूरा हो जाने के साथ ही अरुणाचल प्रदेश के पास तीन नेशनल हाईवे हो जाएंगे – फ्रंटियर हाईवे, ट्रांस-अरुणाचल हाईवे और ईस्ट-वेस्ट इंडस्ट्रियल कॉरिडोर हाईवे.

तीनों राजमार्गों को इंटर-कनेक्ट करने के साथ-साथ सीमावर्ती क्षेत्रों तक तेजी से पहुंच बनाने के लिए कुल 2,178 किलोमीटर के छह वर्टिकल और डायगनल इंटर हाईवे कॉरिडोर बनाए जाएंगे.

कोरिडोर में 402 किमी लंबा थेलामारा-तवांग-नेलिया हाईवे, 391 किमी लंबा इटाखोला-पक्के-केसांग-सेप्पा-पारसी पारलो हाईवे, 285 किमी लंबा गोगामुख-तालिहा-तातो हाईवे, 398 किमी लंबा अकाजन -जोर्जिंग-पैंगो हाईवे, 298 किमी लंबा पासीघाट-बिशिंग हाईवे और 404 किमी लंबा कनुबारी-लोंगडिंग हाईवे शामिल हैं.

सूत्रों ने कहा कि अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे सेना के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा. सीमा पर सेना और उपकरणों दोनों की निर्बाध और तेज आवाजाही शुरु हो जाएगी और सुरक्षा बलों को तैनात करना या उन्हें वहां से हटाना भी सेना के लिए आसान हो जाएगा.

इस प्रोजेक्ट की परिकल्पना पहली बार 2014 में की गई थी जब कानून मंत्री किरेन रिजिजू गृह राज्य मंत्री थे और सीमा मामलों की देख रेख कर रहे थे. उसी साल गृह मंत्रालय ने MoRTH को एक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा और इस पर आगे बढ़ना शुरू कर दिया.

जब यह रिपोर्ट सामने आई कि इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री कार्यालय से प्रारंभिक मंजूरी मिल गई है, तो चीन ने 2014 में ही इस प्रोजेक्ट पर अपनी आपत्ति जता दी थी. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने कहा था, ‘हमें उम्मीद है कि सीमा की समस्या के हल होने से पहले भारतीय पक्ष कोई ऐसी कार्रवाई नहीं करेगा जो संबंधित मुद्दे को और अधिक जटिल बना दे, ताकि सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता की वर्तमान स्थिति को बनाए रखा जा सके.’

सूत्रों ने कहा कि सीमा सड़क संगठन, MoRTH और कई अन्य एजेंसियों सहित इस प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है.

एक मुखर चीन का सामना करते हुए, भारत अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम पर पूरा ध्यान देते हुए पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ा रहा है. कई पुलों पर तेजी से काम चल रहा है ताकि सुरंगों, राजमार्गों और फीडर सड़कों के जरिए तेजी से एलएसी तक भारी उपकरण ले जाए जा सके.

सूत्रों ने कहा कि इस काम के लिए बड़ी संख्या में विशिष्ट और अत्याधुनिक सड़क और सुरंग उपकरण शामिल किए गए है. जिस गति से चीनी अपनी तरफ बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, उसी गति से यहां भी काम करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

सूत्रों में से एक ने कहा, ‘हमारी ओर से समस्या यह है कि हमें जिन जगहों पर सुरंग बनाने की जरूरत है, वह इलाके काफी मुश्किल भरे हैं. जबकि इसके उलट चीन के पास एलएसी के किनारे वाले इलाके समतल है. हालांकि, अब हमारे पास वही उपकरण हैं जो चीनियों के पास हैं.’

इस महीने की शुरुआत में पूर्वोत्तर के लिए केंद्र ने 1.6 लाख करोड़ रुपये की कुल राशि राजमार्ग परियोजनाओं के लिए निर्धारित की थी. अरुणाचल प्रदेश को इसमें से 44,000 करोड़ रुपये का एक बड़ा हिस्सा मिला है.

प्रस्तावित राजमार्ग के बारे में बात करते हुए, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने सोमवार को कहा था, ‘1962 का इतिहास था और इसे कभी भी दोहराया नहीं जाएगा. 1962 में परिदृश्य बहुत अलग था. क्षेत्र का बुनियादी ढांचा बहुत खराब था. इसके बावजूद भारतीय सेना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और देश की रक्षा के लिए हजारों जानें कुर्बान की. लेकिन आज हम वो नहीं हैं जो 1962 में थे.

2017 के डोकलाम गतिरोध के बाद सिक्किम में बुनियादी ढांचे के विकास के बारे में पूछे जाने पर सूत्रों ने ज्यादा कुछ बताने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि पहले के विपरीत भारतीय सैनिकों के पास अब सीधे क्षेत्र में तीन पक्के पहुंच मार्ग हैं.

सेना की क्षमता को बढ़ा देगा

सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित हाईवे के साथ-साथ चल रही अन्य परियोजनाएं एक घाटी से दूसरी घाटी में जाने की सेना की क्षमता को बढ़ा देगी.

संयोग से पूर्वोत्तर में लगभग सभी सैन्य अभ्यास सैनिकों और उपकरणों के इंटर-वैली मूवमेंट पर केंद्रित हैं.

सशस्त्र बलों की क्षमता में सबसे पहला उछाल 2.535 किमी लंबी सेला सुरंग – 13,000 फीट से ऊपर की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी द्वि-लेन सुरंग – के पूरी हो जाने के बाद आएगा. इस सुरंग का अगले साल जनवरी में उद्घाटन किया जाएगा. इसके बनने के बाद तवांग के साथ हर मौसम में कनेक्टिविटी बनी रहेगी.

मौजूदा समय में सेना और नागरिक अरुणाचल के तवांग तक पहुंचने के लिए बालीपारा-चारिडुआर रोड (असम) का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि सर्दियों में सेला दर्रा बंद हो जाता है.

अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों की ओर जाने वाली 317 किलोमीटर लंबी बालीपारा-चारदुआर-तवांग (बीसीटी) सड़क पर बनने वाली नेचिफू सुरंग सुनिश्चित करेगी कि रक्षा और निजी दोनों तरह के वाहनों की पूरे साल आवाजाही बनी रहे.

जैसा कि पहले रिपोर्ट किया गया था कि सेला सुरंग प्रोजेक्ट के तहत ट्विन ट्यूब चैनल तैयार किया जा रहा है. इसमें एक बाई-लेन टनल होगी और एक एस्केप टनल होगी. इसमें एक 1,555 मीटर लंबी हैं, और दूसरी सुरंग 980 मीटर लंबी होगी. इस प्रोजेक्ट के तहत लगभग 1.2 किमी सड़क भी बनाई जा रही है. इसके बाद चीन इस इलाके में यातायात की आवाजाही की निगरानी करने में सक्षम नहीं रह पाएगा. मौजूदा समय में सेला दर्रा पर चीन आसानी से अपनी नजर रख सकता हैं.

सुरंगों को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि टैंक और वज्र हॉवित्जर सहित सेना के सभी उपकरण, चीनियों की चुभती नजरों से दूर ही रहे. इसके साथ ही पूरे साल यहां आवाजाही बनी रहेगी और आने-जाने के समय में भी कटौती होगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

अनुवाद- संघप्रिया मौर्य

संपादन- नूतन


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