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Wednesday, 24 April, 2024
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उज़्बेकिस्तान में ISIS की बढ़ती चिंता के बीच भारत और उज़्बेक सेनाओं की आतंकवाद निरोधक ड्रिल

भारत मध्य एशियाई देशों के साथ, मज़बूत रिश्ते क़ायम करने का इच्छुक है, जहां चीन की मौजूदगी बढ़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार उज़्बेकिस्तान का दौरा कर चुके हैं.

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चौबतिया (उत्तराखंड) : बढ़ती कट्टरता और आईएसआईएस के मंडराते ख़तरे के बीच अपनी आतंकवाद निरोधक विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए उज़्बेकिस्तान भारत के साथ साझा अभ्यास कर रहा है, जबकि नई दिल्ली इस प्रमुख मध्य एशियाई देश के साथ मज़बूत द्विपक्षीय रिश्ते क़ायम करना चाहती है, जहां चीन के बहुत बड़े हित हैं.

2015 के बाद से लॉन्च की गईं बहुत सी पहलक़दमियों के तहत जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उज़्बेकिस्तान गए थे, उज़्बेक सेना यहां रानीखेत के पास चौबतिया के विदेशी प्रशिक्षण नोड में, भारत के साथ साझा सैन्य अभ्यास- डस्टलिक-2 में हिस्सा ले रही है.

इस अभ्यास में, जो 10 मार्च को शुरू हुआ और 19 मार्च तक चलेगा, शहरी और जंगल युद्ध में आतंकवाद-निरोधक ड्रिल्स सीखने पर फोकस किया गया है.

45 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई भारतीय सेना की प्रसिद्ध 13 कुमाऊं बटालियन कर रही है, जिसे रेज़ांग ला बटालियन भी कहा जाता है.

यही वो बटालियन थी जिसे ‘बहादुरों में सबसे बहादुर’ का ख़िताब दिया गया था और जिसने 1962 के युद्ध के दौरान, रेज़ांग ला में चीनियों से जमकर लोहा लिया था.

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13 कुमाऊं के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल अमित मलिक ने कहा, ‘इस अभ्यास में यूएन आदेश के तहत आतंकवाद-निरोधक कार्रवाईयों पर फोकस किया गया है. यहां पर हेलिकॉप्टर द्वारा ऑपरेशंस, जंगल युद्ध, शहरी परिस्थितियों में ऑपरेशंस, जिनमें गहन तलाशी अभियान, कमरे में घुसना और मोबाइल वेहिकल चेक प्वॉइंट्स आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. हमने उनके साथ अपनी विशेषज्ञता साझा की और उन्होंने हमारे साथ अपना जीवित रहने का कौशल शेयर किया’.

उज़्बेक प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई कर रहे कर्नल नामिलोव अज़ीज़बेक बोक्सरिद्दीनोविच ने कहा, ‘हमने 2019 में बहुत सी अच्छी कार्यप्रणालियां साझा की थीं, जब ये अभ्यास पहली बार हुआ था. उस समय भारतीय सैनिक हमारे देश आए थे. हम यहां आतंकवाद-निरोधक ड्रिल्स के साझा प्रशिक्षण के लिए आए हैं, जिसमें भारत के पास काफी महारत है’.

आतंकवाद-निरोधक और उग्रवाद रोधी युद्ध नीतियों में भारत की महारत, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर-पूर्व में बरसों की कार्रवाई के बाद आई है.


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ISIS की बढ़ती चिंता

उज़्बेकिस्तान में आख़िरी आतंकी हमला 1999 में हुआ था लेकिन देश में एक बड़ी युवा आबादी है और कट्टरता उसके लिए चिंता का विषय है. देश की 3.3 करोड़ की आबादी में से 64 प्रतिशत युवा हैं, जो 35 वर्ष से कम आयु के हैं.

चिंता का विषय ये है कि इनमें से कुछ युवा कट्टर बन गए और आईएसआईएस में शामिल हो गए, जहां उन्होंने अफगानिस्तान के अलावा, पश्चिमी बलों तथा शहरियों के खिलाफ कई हमलों को अंजाम दिया है.

दिसंबर 2020 में उज़्बेकिस्तान ऐसी 25 महिलाओं और 73 बच्चों को सीरिया से वापस लाया, जहां वो आईएसआईएस लड़ाकों के दूसरे परिवारों के साथ शिविरों में रह रहे थे.

उज़्बेकिस्तान ने 2019 में सीरिया से आई 220 महिलाओं और बच्चों को भी उनके देश वापस भेज दिया था.

ये पूर्व सोवियत प्रांत हालांकि एक मुस्लिम-बहुत देश है, लेकिन उज़्बेकिस्तान धार्मिक अभिव्यक्ति और धार्मिक परंपराओं पर कड़े नियंत्रण के लिए जाना जाता था जैसा कि 2019 में यूएन की एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘धार्मिक परंपराओं की अत्यधिक निगरानी और राज्य का नियंत्रण’, जिसमें ऐसे क़ानून भी हैं जिनमें, ग़ैर-पंजीकृत धार्मिक गतिविधियों को अपराध माना जाता है.

1991 में सोवियत संघ से आज़ाद होने के बाद, देश के पहले राष्ट्रपति इस्लाम करीमोव ने, कठोर नियंत्रण के साथ शासन किया. उन्होंने बहुत सी धार्मिक आज़ादियों में कटौती कर दी, जिन्होंने एक्सपर्ट्स के मुताबिक़, कट्टरता को जन्म दिया.

लेकिन, 2015 में उनकी मौत के बाद से उनके उत्तराधिकारी राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोयेव ने बहुत से सुधार किए हैं, जिसके नतीजे में अमेरिका ने इसे, उन देशों की सूची से हटा दिया है जो धार्मिक आज़ादी का घोर उल्लंघन करते हैं.

भारत की सेंट्रल एशिया आउटरीच

भारत मध्य एशिया के साथ अपने रिश्ते बढ़ाना चाहता है और इस साल अन्य देशों के साथ भी सैन्य-अभ्यासों की योजना बनाई गई है, जिनमें कज़ाकिस्तान, मंगोलिया और किर्गिज़स्तान शामिल हैं.

तुर्कमेनिस्तान की स्पेशल फोर्सेज़ पहले ही भारत में ट्रेनिंग हासिल कर रही हैं.

जहां तक उज़्बेकिस्तान का संबंध है, हाल के वर्षों में द्विपक्षीय रिश्तों में काफी गहनता आई है. ये बुनियादी रूप से जुलाई 2015 और जून 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ताशकंत दौरों, राष्ट्रपति मिर्ज़ियोयेव द्वारा उज़्बेकिस्तान को खोलने, और अक्टूबर 2018 तथा जनवरी 2019 में उनके भारत दौरों की वजह से आई है.

द्विपक्षीय संबंधों का दायरा अब काफी व्यापक हो चुका है, जिसमें राजनीतिक व रणनीतिक मुद्दे, रक्षा व सुरक्षा, व्यापार तथा निवेश, ऊर्जा, कृषि और शिक्षा आदि शामिल हैं.

द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को बढ़ावा 4-7 सितंबर 2018 के बीच तत्कालीन उज़्बेक रक्षामंत्री मेजर जनरल अब्दुस्सलाम अज़ीज़ोव के दौरे के बाद मिला, जिसके बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 2019 में इस देश का दौरा किया.

उनके दौरे के बाद दोनों पक्ष, स्पेशल फोर्सेज़ की साझा ट्रेनिंग, उज़्बेकों के लिए मिलिटरी इंजीनियरिंग में ट्रेनिंग कैपस्यूल्स, और उज़्बेकिस्तान में क़ार्शी एविएशन स्कूल के विकास में सहायता के लिए वायु सेनाओं के बीच अदला-बदली पर सहमत हो गए. भारत ने ताशकंत की आर्म्ड फोर्सेज़ अकेडमी ऑफ़ उज़्बेकिस्तान में एक इंडिया रूम स्थापित करने में भी सहायता की है.

उज़्बेकिस्तान में चीन का प्रभाव

फोर्ब्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उज़्बेकिस्तान के प्राचीन शहर समरकंद और ताशकंत, जो पुराने सिल्क मार्ग का हिस्सा थे, चीन-अमेरिका के बीच बढ़ते व्यापार युद्ध के बीच विश्व व्यापार में एक अहम भूमिका निभाते हैं. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि दुनिया की निगाहों से दूर, ये देश आज निवेश की सबसे अच्छी कहानी हो सकता है.

चीन के उज़्बेकिस्तान में बड़े भारी हित हैं और वो ताशकंत का एक प्रमुख व्यापार भागीदार बनकर उभरा है.

चीन उज़्बेक गैस का एक प्रमुख आयातक है और 2019 में इस देश में, 500 से अधिक नई चीनी कंपनियां पंजीकृत की गईं.

निकेइ एशिया की एक रिपोर्ट में कहा गया, ‘व्यापार में अब और बढ़ावा हो सकता है, क्योंकि उज़्बेक व्यवसायों को अब उज़्बेकिस्तान के नेशनल बैंक फॉर फॉरेन इकनॉमिक अफेयर्स की युआन करेंसी ऋण सेवा से स्थाई दरों पर क़र्ज़ मिल सकता है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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