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Wednesday, 20 November, 2024
होमडिफेंस23 साल पहले भारत ने जीता था कारगिल युद्ध, विशेषज्ञों ने कहा- अब उस समय जैसी स्थितियां नहीं हैं

23 साल पहले भारत ने जीता था कारगिल युद्ध, विशेषज्ञों ने कहा- अब उस समय जैसी स्थितियां नहीं हैं

विशेषज्ञों के मुताबिक, 2019 के बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान भारत से भविष्य के संकट की स्थिति से निपटने के लिए 'बड़े लक्ष्यों पर फोकस करने' और 'अधिक दृढ़ता' से प्रतिक्रिया देने के बारे में सोच सकता है. 

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नई दिल्ली: 26 जुलाई 1999 को कारगिल के बर्फीले पहाड़ों पर पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लगभग तीन महीने की लंबी लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने जीत हासिल की थी. लगभग 23 साल बाद भी यह कारगिल युद्ध रक्षा और रणनीतिक समुदाय के लिए एक सबक बना हुआ है.

भारतीय इतिहासकारों, पत्रकारों और रक्षा विशेषज्ञों ने इस संघर्ष से कई सबक सीखे हैं- जैसे ‘पाकिस्तानी लापरवाही’ से सावधान रहने और निगरानी और खुफिया तंत्र में सुधार करने की जरूरत. पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी घुसपैठ के बाद 2020 में इसी तरह की चर्चा सार्वजनिक बहस में फिर से शुमार हो गई.

हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले 20 सालों में चीजें बदली हैं. वे एक नया तर्क पेश कर रहे हैं. उनके मुताबिक 1999 में कारगिल संघर्ष को ‘रोकने’ या ‘सीमित’ रखने वाले कारण और स्थितियां आज वैसी नहीं हैं. उन्होंने कहा कि 2019 के बालाकोट हमले को देखते हुए पाकिस्तान अब भविष्य के संकट की स्थिति में अधिक दृढ़ता से प्रतिक्रिया देने के बारे में सोच सकता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विभाग में 13 साल तक सेवा देने वाले स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक दक्षिण एशिया शोध विद्वान अर्जन तारापुर ने दिप्रिंट को बताया कि पाकिस्तान कारगिल संघर्ष में अपनी स्थिति को मजबूत नहीं कर पाया था लेकिन बालाकोट हमलों के बाद उसने जवाबी कार्रवाई की थी.

उन्होंने कहा, ‘अगर आने वाले समय में कोई भी संकट आता है तो पाकिस्तान अगली बार और अधिक दृढ़ता से प्रतिक्रिया देने के लिए सोच सकता है.’

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन और सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज के एक विशिष्ट फेलो लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा (रिटायर्ड) ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि बालाकोट हमले के बाद जो हुआ उसके विपरीत, पाकिस्तान भविष्य में संकट की स्थिति में जवाब देने के विकल्प के रूप में ‘बड़े लक्ष्यों पर फोकस करेगा’.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना की विश्वसनीयता के साथ-साथ जनता भी इसकी मांग करेगी.

उन्होंने बताया, ‘मैं निश्चित रूप से पाकिस्तान से प्रतिक्रिया की उम्मीद करता हूं. हो सकता है वह एक ‘मजबूत’ प्रतिक्रिया न हो और एक सोची-समझी जवाबी कार्यवाही जैसा कुछ हो. बालाकोट के बाद, पाकिस्तान के विमान ने भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया और जम्मू-राजौरी नेशनल हाईवे के पास नारियन में एक गोला बारूद डिपो के पास एक बम छोड़ा. लेकिन उन्होंने कोई नुकसान नहीं किया.’

उन्होंने कहा, हालांकि, पाकिस्तान आर्थिक रूप से युद्ध के लिए तैयार नहीं है.

वह आगे कहते हैं, ‘यह देश आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा है. मौजूदा समय में मुद्रास्फीति 1999 की तुलना में लगभग दोगुनी है. इसे आईएमएफ की खैरात के लिए भी मंजूरी मिल गई है. पाकिस्तान आर्थिक रूप से युद्ध के लिए आगे आने के लिए तैयार नहीं है.’


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भू-राजनीति, कूटनीति की भूमिका

कारगिल संघर्ष में भारत और पाकिस्तान द्वारा दिखाया गया कथित संयम इस बात का उदाहरण है कि काफी खतरनाक होने के बावजूद कैसे परमाणु प्रसार क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने में मदद कर सकता है. लेकिन तारापुर तर्क देते हुए कहते हैं कि कारगिल युद्ध इसका एक अच्छा उदाहरण नहीं है.

तारापुर ने कहा, ‘हमें यह याद रखना चाहिए कि 1999 में पाकिस्तान और भारत के पास शायद एक ऑपरेशनल परमाणु क्षमता नहीं थी. उन्होंने परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था लेकिन संभवत: परमाणु हथियार तैयार नहीं थे.’

उन्होंने बताया, भारत के मामले में संयम नियंत्रण रेखा को पार नहीं करने के बारे में था.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘आज, निश्चित रूप से दोनों पक्षों की परमाणु क्षमता काफी हद तक ऑपरेशनल है.’

एक सेवारत सैन्य अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत और पाकिस्तान की स्थिति 1999 के बाद से नाटकीय रूप से बदली है और भू-राजनीतिक कारक भविष्य के किसी भी संकट में दोनों देशों की सैन्य प्रतिक्रिया में भूमिका निभाएंगे.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह अनुमान लगाने के लिए कि भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य का संकट कैसा दिखेगा, इसका संबंध न केवल सैन्य क्षमताओं से है, बल्कि भू-राजनीतिक स्थिति से भी है. 1999 में, भारत अपने परमाणु परीक्षणों की वजह से आलोचना झेल रहा था और इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ बेहतर स्थिति में नहीं था. उस पर संयम बरतने और कारगिल में खुद को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति साबित करने का दबाव था.’

उन्होंने कहा, ‘आज भारत क्वाड का हिस्सा है और चीन के खिलाफ अमेरिका के साथ है लेकिन फिर भी सस्ते रूसी तेल का आयात करता है.’

उन्होंने कहा, ‘भारत एक तरह से कूटनीति के उस स्तर पर पहुंच गया है, जहां चीजें उसके हाथ में हैं. इसके उलट, पाकिस्तान को पश्चिमी देश शक की नजर से देखते हैं, खासकर तालिबान के सत्ता में आने के बाद से. इसलिए, दोनों पक्षों की सैन्य रणनीति और भविष्य के संघर्ष की स्थिति में प्रतिक्रिया के पैमाने को भू-राजनीतिक कारक भी काफी हद तक प्रभावित करेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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