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सोमवार, 12 मई, 2025
होमडिफेंस5 मिनट के फर्क में पैदा हुए जुड़वां बच्चों की पुंछ में मौत, पिता को ज़िंदा रखने के लिए मां ने छिपाई बात

5 मिनट के फर्क में पैदा हुए जुड़वां बच्चों की पुंछ में मौत, पिता को ज़िंदा रखने के लिए मां ने छिपाई बात

13-वर्षीय ज़ोया और अयान की मौत पुंछ में उनके घर पर पाकिस्तानी गोला गिरने से हुई. उनके पिता, जो अभी भी अपनी चोटों का इलाज करा रहे हैं, उनकी मौत के बारे में नहीं जानते हैं.

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जम्मू: उर्षा खान दो ज़िंदगियां जी रही हैं — एक दुखी मां की, दूसरी एक मजबूत पत्नी की. जम्मू के जीएमसी अस्पताल में घायल अवस्था में बिस्तर पर लेटे हुए उनके पति रमीज़ खान जब भी अपने जुड़वा बच्चों के बारे में पूछते हैं, तो वह मुस्कुराने की कोशिश करती हैं और धीरे से कहती हैं, “वो पुंछ में अपनी नानी के घर पर महफूज़ हैं.”

कुछ ही देर बाद, वह अस्पताल के शौचालय में जाती हैं, जहां सच्चाई उनके सामने आ जाती है. वह बिखर जाती हैं, अपने हाथों से अपनी सिसकियों को दबाती हैं ताकि कोई सुन न सकें.

5 मिनट के अंतर पर पैदा हुए 13 साल के ज़ोया और अयान की मौत पुंछ में उनके घर पर पाकिस्तानी गोलाबारी में हो गई.

रमीज़ के भाई मुश्ताक खान ने कहा, “मेरे भाई को नहीं पता कि उनके बच्चे मर चुके हैं. अगर उन्हें मालूम होता, तो वह जीने की इच्छा खो देते. वह भी मर जाते.”

रमीज़ खान को शरीर के बाएं हिस्से में गंभीर चोटें आने के कारण जम्मू के जीएमसी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. उन्हें पहले पुंछ के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया, फिर राजौरी ले जाया गया, उसके बाद उनके जख्मों की गंभीरता को देखते हुए उन्हें जम्मू रेफर कर दिया गया.

7 मई को, जिस दिन ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ, पुंछ में पाकिस्तान की ओर से भारी गोलाबारी हुई. तीन दशकों में पहली बार पुंछ शहर के बीचों-बीच नागरिकों को सीधे निशाना बनाया गया. पुलिस के अनुसार, गोलाबारी में एक दर्जन से ज़्यादा लोगों की जान चली गई, जिसमें एक सैन्यकर्मी भी शामिल है.

ज़ोया और अयान के लिए 7 मई की शुरुआत किसी भी आम दिन जैसी ही थी. वह पुंछ के क्राइस्ट स्कूल के लिए तैयार हुए और सुबह 7 बजे के करीब अपने घर से बाहर निकले ही थे कि गोलाबारी शुरू हो गई. कुछ ही मिनटों में एक गोला ज़ोया पर आकर गिरा. वह वहीं गिर पड़ी और तुरंत दम तोड़ दिया. एक मिनट बाद, एक और गोला अयान पर लगा और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई.

उनके पिता रमीज़ विस्फोट की ताकत से कई मीटर दूर जा गिरे. उर्षा घायल हो गईं और उन्होंने अपने बच्चों के बेजान शवों को अपनी बाहों में जकड़ लिया. उनकी आँखें, खोखली और बिना पलक झपकाए, अपने पति पर टिकी थीं — जो सड़क पर खून से लथपथ पड़े थे. उनकी दुनिया एक पल में उजड़ गई थी, लेकिन वह रोई नहीं. उनके घायल पैर से खून बह रहा था, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.

परिवार के एक रिश्तेदार सरफराज़ मीर ने कहा, “वह बेज़ान मुर्दे की तरह खड़ी थीं. उनकी आंखें खून से लथपथ थीं, लेकिन आंसू नहीं आ रहे थे. वह समझ ही नहीं पा रही थी कि हो क्या गया था.”

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के प्रतिशोध में बुधवार सुबह भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (पीओके) और पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों पर किए गए सटीक मिसाइल हमलों के बाद पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने नियंत्रण रेखा पर ड्रोन, गोले और अन्य हथियारों का इस्तेमाल करते हुए कई हमले किए.

गोलाबारी में पुंछ का क्राइस्ट स्कूल भी क्षतिग्रस्त हो गया. ज़ोया और अयान की मौत के बाद, इलाके में डर का माहौल है. परिवार पलायन कर गए हैं और अब यह इलाका वीरान पड़ा है. संघर्ष विराम की घोषणा के बावजूद कोई भी वापस नहीं लौटा है.


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‘कौन जानता था कि वह मरने के लिए पुंछ आए थे’

परिवार अपने बच्चों की पढ़ाई के बेहतर बनाने की उम्मीद में तीन महीने पहले ही पुंछ आया था. तब तक, उन्हें कलान में अपने गांव से पुंछ में क्राइस्ट स्कूल तक जाने में एक घंटे का समय लगता था. माता-पिता को चिंता थी कि लंबी दूरी उनकी पढ़ाई पर असर डाल रही है.

मुश्ताक ने कहा, “कभी-कभी, बच्चों को घर वापस जाने के लिए बस नहीं मिलती थी और उन्हें घंटों इंतज़ार करना पड़ता था.”

इसलिए, उन्होंने स्कूल से कुछ मीटर की दूरी पर एक घर किराए पर ले लिया.

परिवार ने कहा कि ज़ोया उनके परिवार की सबसे प्यारी बच्ची थी. वह काफी वक्त बाद मिली रहमत थी, उन्होंने कहा, “कई दुआओं के बाद मिला तोहफा”. रमीज़ के तीन बड़े भाई थे, जिनमें से हर किसी के बेटे थे और ज़ोया परिवार में पैदा होने वाली पहली लड़की थी — जो सभी की आंखों का तारा थी.

उर्षा खान अपनी बेटी ज़ोया के साथ | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
उर्षा खान अपनी बेटी ज़ोया के साथ | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

मुश्ताक ने कहा, “कौन जानता था कि वह मरने के लिए पुंछ चले आए हैं. यह सब अल्लाह ने लिखा है.”

जबकि उनके पति का पुंछ के अस्पताल में इलाज चल रहा था, उर्षा ने चुपचाप अपने बच्चों को सुला दिया.

जीएमसी जम्मू में, रमीज़ खान — जिन्हें 10 मई को होश आया, जिस दिन संघर्ष विराम की घोषणा की गई थी — अपने बच्चों से मिलने के लिए उत्सुक हैं. हर दिन, अनगिनत बार, वह उर्षा से उन्हें वीडियो कॉल करने के लिए कहते हैं.

हर बार, वह खराब इंटरनेट का बहाना बनाती है या बच्चों ने उस दिन अपनी नानी के घर पर क्या किया, इस बारे में कहानियां गढ़ती हैं.

10 मई को पांच यूनिट खून चढ़ाए गए रमीज़ का कहना है कि वह अपने बच्चों के लिए ज़िंदा रहना चाहते हैं. वह उर्षा से कहते रहते हैं कि वह नहीं चाहता कि वह बिन बाप के बड़े हों.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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