नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना (आईएएफ) ने विशेष रूप से भारतीय वेंडर्स से, 10 काउंटर अनमैन्ड एयरक्राफ्ट सिस्टम (सीयूएएस) ख़रीदने की इच्छा जताई है, जिन्हें आम भाषा में एंटी-ड्रोन सिस्टम कहा जाता है.
बोलियां आमंत्रित करने के लिए बल ने पिछले सप्ताह, एक रीक्वेस्ट फॉर इनफर्मेशन (आरएफआई) जारी किया था.
28 जून को आरएफआई तब जारी हुआ जब जम्मू हवाई ठिकाने पर अपनी तरह का पहला हमला किया गया, जिसमें एक ड्रोन से दो कम शक्ति वाले इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस गिराए गए, जो स्टेशन के हेलिकॉप्टर हैंगर के पास फटे, और दो वायुसेना कर्मी घायल हो गए. उसके बाद जम्मू स्टेशन पर एक एंटी-ड्रोन सिस्टम स्थापित किया गया.
रक्षा सूत्रों के अनुसार, सीयूएएस की ख़रीद और आरएफआई पर पिछले कई महीने से काम चल रहा था.
यह भी पढ़ेंः पाकिस्तान और चीन के खिलाफ पुल बनाने की क्षमताओं पर सेना का जोर, 12 स्वदेशी पुल किए तैयार
RFI में क्या लिखा है
आरएफआई के अनुसार, सिस्टम की मुख्य विशेषताओं में एक ‘मल्टी-सेंसर, मल्टीकिल सॉल्यूशन’ का प्रावधान, और आसपास के वातावरण को कम से कम क्षति पहुंचाए बिना, मानव रहित विमान (ड्रोन्स) के लिए ‘नो-फ्लाई’ ज़ोन्स का प्रभावी प्रवर्तन शामिल हैं.
सीयूएएस से ऑपरेटर के लिए एक समग्र वायु स्थितिजन्य चित्र पैदा होना चाहिए, और यूज़र के परिभाषित मानदंडों के आधार पर अलर्ट भी जारी होने चाहिए.
सूत्रों ने समझाया कि इसका मतलब ये है, कि अलग-अलग सेंसर्स की इनपुट्स को एक स्क्रीन पर ले आया जाएगा, ताकि नियंत्रक एजेंसियां और कमांडर स्थिति को समग्रता से समझ सकें.
ऐसा संभव होना चाहिए कि सीयूएएस को क्रॉस कंट्री क्षमता वाले स्वदेशी वाहनों पर लगाया जा सके, जो स्वदेशी बिजली-चालित पावर सप्लाई सिस्टम्स से चलते हों, और जिन्हें वायु और सड़क द्वारा ले जाया जा सके.
सिस्टम में एक फेज़्ड अरे रडार (यूएवी का पता लगाने के लिए); रेडियो फ्रीक्वेंसी सेंसर (यूएवी फ्रीक्वेंसी पकड़ने के लिए); और विज़ुअल तथा हीट सिग्नेचर्स के ज़रिए दुश्मन यूएवी को पकड़ने और ट्रेस करने के लिए, एक इलेक्ट्रो ऑप्टिकल एंड इनफ्रारेड (ईओ/आईआर) सिस्टम होना चाहिए.
उसके अंदर एक सॉफ्ट किल ऑप्शन होना चाहिए, जिसमें ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट जैमर सिस्टम और आरएफ जैमर, और एक हार्ड किल ऑप्शन (लेज़र-डीईडब्लू) शामिल हो सकते हैं.
सॉफ्ट किल से तात्पर्य होता है किसी ड्रोन द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कम्यूनिकेशन या नेविगेशन सिग्नल्स को जाम करना. हार्ड किल का मतलब उसे फिज़िकल रूप से तबाह करना होता है.
आरएफआई में ये जानने की कोशिश की गई है, कि क्या सिस्टम टारगेट ड्रोन और उसके नियंत्रक के बीच रेडियो फ्रीक्वेंसी संचार, और जीपीएस ग्लोनास जैसे ड्रोन्स में इस्तेमाल होने वाले सैटेलाइट-आधारित नेविगेशन सिस्टम्स को जाम करने में सक्षम होगा.
इसने वेंडर्स से ये भी पूछा कि लेज़र-डीईडब्लू किस रेंज पर सूक्ष्म और मिनी यूएवीज़ को नष्ट कर पाएंगे, उसका प्रवास समय क्या होगा, और ये जल्दी जल्दी कितनी बार किसी निशाने को एंगेज कर सकते हैं.
दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी कि सेवाओं को अभी बड़ी संख्या में एंटी-ड्रोन सिस्टम्स की ख़रीद करनी है. सबसे पहली नौसेना ने इज़राइल के एंटी-ड्रोन सिस्टम स्मैश 2000 प्लस का ऑर्डर दिया था, जो असॉल्ट राइफल्स को स्मार्ट वैपंस में बदल देता है, जिससे फर्स्ट-शॉट हिट्स और एंटी-ड्रोन ऑपरेशंस संभव हो पाते हैं.
यह भी पढ़ेंः फिर नजर आए जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान के ड्रोन, बीएसएफ जवानों ने गोलियां बरसाई
CUAS क्या है?
ये सिस्टम दुशमन ड्रोन्स और मानव-रहित हवाई प्रणाली का पता लगाकर उन्हें रोकते हैं, और इनका इस्तेमाल खुफिया जानकारी जुटाने, नशीले पदार्थों की तस्करी या विस्फोटक भेजने के लिए किया जा सकता है.
सीयूएएस को सैन्य ठिकानों, हवाई अड्डों, महत्वपूर्ण इनफ्रास्ट्रक्चर और अन्य अहम स्थलों की सुरक्षा में लगाया जाता है.
आमतौर से किसी भी एंटी-ड्रोन सिस्टम के दो मुख्य पहलू होते हैं- किसी दुष्ट ड्रोन का पता लगाना और वैपन सिस्टम से उसे तबाह करना, या उसके संचार संकेतों को जाम करना.
उनका पता रडार्स या/ रेडियो फ्रीक्वेंसी सेंसर्स, और ईओ/ आईआर सिस्टम्स के ज़रिए लगाया जाता है. आधुनिक एंटी-ड्रोन रडार प्रणालियों में कई रडार तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो रेंज की ज़रूरत, सुरक्षित किए जाने वाले क्षेत्र का आकार, और एक साथ लक्ष्यों की संख्या पर निर्भर करता है.
किसी दुश्मन ड्रोन को तबाह करने के लिए, सीयूएएस में जैमर्स भी लगे हो सकते हैं, और ये अलग अलग वैपन सिस्टम्स से भी लैस हो सकता है. वैपन सिस्टम्स के लिए एंटी-ड्रोन सिस्टम्स में किसी ड्रोन को नष्ट करने के लिए तोपों या मिसाइलों के साथ टारगेटिंग सिस्टम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी तरह, एक उच्च-शक्ति वाले लेज़र या माइक्रोवेव से भी दुष्ट ड्रोन को नष्ट किया जा सकता है.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)ॉ
यह भी पढ़ेंः भारत को एंटी-ड्रोन सिस्टम खरीदने की जरूरत, हम पहले ही इसमें काफी देर कर चुके हैं