महाराष्ट्र: देश के अधिकतर छोटे किसान खेती के लिए आज भी बैलों पर निर्भर हैं. मशीनीकरण के दौर में भी लघु भू-धारकों की एक बड़ी संख्या है जो खेती के अधिकतर कार्य बैलों की शक्ति से ही पूरे करते हैं. लिहाजा, बैलों की खरीदी और बिक्री का कार्य मानसून के पहले चरम पर होता है.
महाराष्ट्र का यवतमाल जिला बैल बाजारों के लिए प्रसिद्ध है. यवतमाल जिले में पुसद, उमरखेड और आर्नी में बैलों के बड़े-बड़े बाजार लगते हैं. लेकिन, सीजन के दौरान लॉकडाउन के कारण लंबे समय से बैल बाजार लगने बंद हैं. इसका असर खेती के कार्यों पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.
महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र की खेतीबाड़ी से जुड़े जानकार बताते हैं कि बैल बाजार बंद होने का असर यहां के ज्यादातर छोटे किसानों की माली हालत पर पड़ेगा.
इस बारे में कृषि आधारित बाजार समिति, पुसद के सभापति शेख अख्तर अपने अनुभव साझा करते हैं. वे कहते हैं कि इस क्षेत्र में पुसद, शैबाल-पिंपरी, उबरखेड और आर्नी बैलों के बड़े बाजार हैं. पुसद स्थित बैल बाजार चार एकड़ में लगता है.
अकेले पुसद के बैल बाजार में सीजन के दिनों में एक दिन में पच्चीस से तीस लाख रुपए का कारोबार होता है. इससे कृषि आधार बाजार समिति को भी टैक्स के रूप में खूब पैसा मिलता है.
इन बाजारों में पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसान भी आते हैं और खेती के लिए ऊंची दर पर बड़ी संख्या में बैलों की खरीदी करके लौटते हैं.
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इन बाजारों में सामान्यत: बैलों की एक जोड़ी 50 से 80 हजार रुपए तक में बिकती है. इस कारोबार में लगे परिवार गाय के बछड़े को अच्छी तरह से पाल-पोसकर शारीरिक रूप से इस तरह से तैयार करते हैं कि उन्हें बैल बाजारों में अपने बैलों की उचित कीमत हासिल हो सके.
शेख अख्तर के अनुसार, ‘खरीफ के सीजन में खेतीबाड़ी के लिए बैलों का महत्त्व बढ़ जाता है. पर, इस साल कोरोना के डर से लॉकडाउन के कारण बैल बाजार बंद हैं. इसके कारण किसान न तो बैल बेच पा रहे हैं और न खरीद पा रहे हैं. इस तरह, छोटे किसानों को दुहरी मार पड़ी है और आने वाले दिनों में इनमें से कई किसानों के खेती से जुड़े काम रुक सकते हैं.’
एक छोटे किसान अरुण राउत कहते हैं कि मई महीने में यदि लॉकडाउन की छूट के बाद बैल बाजार लगे भी तो मानसून को ध्यान में रखते हुए किसानों के पास खरीदी और बिक्री के लिए बहुत कम समय रह जाएगा. वजह, मौसम विभाग ने इस बार राज्य में मानसून 7 जून तक मतलब समय पर आने की संभावना जताई है.
अरुण राउत कहते हैं, ‘ऐसे में बाजारों से बैलों की खरीद-बिक्री न होने से कई किसानों की जुताई का पहिया रुक जाएगा. कारण, कई छोटे-छोटे किसानों के पास ट्रैक्टर नहीं. इसके बाद भी खेतीबाड़ी में बैलों की जरूरत पड़ती है. लेकिन, बैल न होने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है.’
बैल बाजार में बैलों की खरीद-बिक्री की गतिविधियों से सिर्फ किसान ही नहीं कई बैल व्यापारी भी रोजगार पाते हैं. ऐसे में वे भी खाली हाथ हो गए हैं.
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एक बैल व्यापारी कौसर शेख बताते हैं, ‘लॉकडाउन के कारण पिछले डेढ़ महीने से बैल बाजार बंद हैं. इससे किसान, दलाल, व्यापारी व बाजार समिति सब पर बुरा असर पड़ा है. खेती में कई काम ठप पड़ जाएंगे. ये बड़ा आर्थिक नुकसान है, क्योंकि हजारों परिवार का गुजारा होता है.’
अंत में, शेख अख्तर राज्य सरकार से अपील करते हैं कि वह बैल बाजार खोलने की अनुमति दे. इससे न सिर्फ छोटे किसानों को बैल बेचने और खरीदने का रास्ता खुल जाएगा और उनकी खेती के कार्य समय पर होंगे, बल्कि बैल बाजार से जुड़े अन्य घटकों को भी लाभ मिलेगा.
(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)