scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमसमाज-संस्कृतिबहुचर्चित केरल नन रेप केस में आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल इतने ताकतवर क्यों हैं?

बहुचर्चित केरल नन रेप केस में आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल इतने ताकतवर क्यों हैं?

Text Size:

जमानत मिलने के बाद नन से रेप करने के मामले में आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल का जालंधर में नायक की तरह स्वागत किया गया.

चंडीगढ़: जालंधर बिशप फ्रैंको मुलक्कल जिन पर केरल में नन से बलात्कार करने का आरोप है. वो पंजाब के सबसे शक्तिशाली ईसाइयों में से एक हैं. सभी राजनीतिक दलों से समर्थन प्राप्त करने वाले 54 वर्षीय बिशप का राज्य में कैथोलिक ईसाइयों पर आध्यात्मिक प्रभाव है.

केरल उच्च न्यायालय से सोमवार को जमानत मिलने के बाद, फ्रैंको मुलक्कल का जालंधर में नायक की तरह स्वागत किया गया, जहां उनके समर्थकों ने पंखुड़ियां फेककर और उन्हें माला पहना कर स्वागत किया. वह बुधवार को वापस जालंधर आये.

उन्होंने संवादाताओं से कहा कि ‘पंजाब के लोगों की प्रार्थनाओं ने मुझे समर्थन दिया और मेरा मानना है कि आने वाले दिनों में भी वे मेरे लिए प्रार्थना करेंगे.’

लेकिन क्या उन्हें इतना शक्तिशाली बनाता है?

पंजाब की कुल आबादी की तुलना में 1 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा ईसाई हैं और ज्यादातर अमृतसर, जालंधर और लुधियाना में बसे हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

सितंबर में विवाद के कारण बिशप फ्रैंको मुलक्कल अपने पद से हट गए थे और पूछताछ के लिए केरल जाने से पहले बिशप फ्रैंको मुलक्कल ने दूसरे पादरी को कमान सौंप दी थी.

जून में केरल में एक नन ने आरोप लगाया था कि जालंधर स्थित बिशप ने दक्षिणी भारत की यात्रा के दौरान 2014 और 2016 के बीच 13 बार बलात्कार किया था.

फ्रैंको मुलक्कल ने आरोप को निराधार बताया था और दावा किया कि ‘चर्च विरोधी’ ताकतें संस्थान को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि नन अपने रिश्तेदार के साथ ‘अवैध संबंध’ में शामिल थी और उन्होंने उसके खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया था.

एक शक्तिशाली पादरी

विभाजन से पहले तक जालंधर लाहौर बिशप (डायेसीस) के अधीन था. 1952 में रोम ने ‘जालंधर प्रीफेक्चर’ घोषित कर दिया और एक ब्रिटिश व्यक्ति को प्रभारी बना दिया. बाद में 1971 में इसे डायेसीस का दर्जा दे दिया गया.

जालंधर डायेसीस एक शक्तिशाली निकाय है जो अमृतसर, फरीदकोट, फिरोजपुर, गुरदासपुर, होशियारपुर, जालंधर, कपूरथला, लुधियाना, मोगा, मुक्तासर, नवनशहर, पंजाब में तरण तारण और हिमाचल में चंबा, हमीरपुर, कंगड़ा और उना के अलावा सभी कैथोलिक ईसाई गतिविधियों को बढ़ावा देता है.

दोनों राज्यों में फैले शैक्षिक और धर्मार्थ संस्थान का प्रमुख होने के नाते, बिशप ने सैकड़ों संस्थानों पर नियंत्रण रखा.

पंजाब में कैथोलिक चर्च द्वारा संचालित स्कूलों की सबसे अधिक मांग है. 2016 में बिशप द्वारा संचालित सभी स्कूलों में भारी स्कूल बैग बदलने के लिए ‘कोर्स सीट’ को बढ़ावा देने की कोशिश की. उन्होंने पादरियों द्वारा संचालित स्कूलों में इको-फ्रेंडली दीवाली और क्रिसमस समारोहों के लिए भी प्रयास किया .

बिशप द्वारा संचालित स्कूलों और कॉलेजों के अलावा यह चर्च की सभी आध्यात्मिक गतिविधियों को भी संचालित करते हैं, जो राज्य में कई अभ्यर्थियों, सेमिनारों और घरों को संरक्षण प्रदान करता है.

मुलक्कल केरल में त्रिशूर से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता एक स्थानीय स्कूल में एक हेडमास्टर थे. उन्होंने सेंट मैरी पेटीट सेमिनरी से पढ़ाई की थी.

बिशप कीप्राथ (1971 से 2007 तक जलंधर बिशप के) के काम से प्रभावित होकर मुलक्कल ने अपना आधार पंजाब में बनाने का फैसला किया. उन्हें पहली बार अप्रैल 1990 में जालंधर में एक प्रीस्ट के रूप में नियुक्त किया गया था।

उन्होंने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर से अंग्रेजी और समाजशास्त्र में अपनी मास्टर्स की उपाधि प्राप्त की और रोम के अल्फोन्सियन एकेडमी ऑफ लेटरन यूनिवर्सिटी से नैतिक धर्मशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. जब वह वहां मौजूद थे तब प्रीस्ट यूनियन आॅफ इंडिया के अंतरराष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने रहे.

2001 में अपने डॉक्टरेट के काम से उन्होंने गुरु नानक की नैतिक शिक्षाओं में कैथोलिक परिप्रेक्ष्य में आध्यात्म विद्या संबंधी काम किया. वह जालंधर में होली ट्रिनिटी क्षेत्रीय मेजर सेमिनरी विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर बने रहे और डायोसेसन कॉलेज ऑफ कंसल्टर्स के सदस्य बने. उन्होंने जालंधर में पादरी रहते हुए प्रवक्ता के रूप में भी सेवा दी.

2009 में मुलक्कल को दिल्ली के सहायक बिशप और कुल्ला के टाइटलर बिशप नियुक्त किया गया था. उन्होंने चर्च के संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था. वह उत्तरी क्षेत्रीय युवा आयोग के क्षेत्रीय अध्यक्ष बने, उत्तरी भारत के क्षेत्रीय बिशप सम्मेलन के सचिव और अंतर-धार्मिक वार्ता, रोम के लिए बिशप परिषद के परामर्शकर्ता के रूप में काम किया.

पोप बेनेडिक्ट 16 ने बिशप मुलक्कल को रोम में अंतर-धार्मिक वार्ता की पोप काउंसिल के लिए नियुक्त किया था.

जून 2013 में, पोप फ्रांसिस ने उन्हें जालंधर का बिशप नियुक्त किया. अगस्त के पहले सप्ताह में पदभार संभालने के तुरंत बाद उन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में पूजा की. समारोह में लगभग 25,000 लोग शामिल थे, जिनमें 700 से अधिक सिस्टर्स , 400 पुजारी, 27 बिशप और एक कार्डिनल शामिल थे.

राजनेता उनके पास गए

अगस्त 2014 में पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने जालंधर में ट्रिनिटी कॉलेज में बिशप से मुलाकात की जहां पादरियों द्वारा एक सर्वधर्म प्रार्थना आयोजित की गई थी. तब मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और अकल तख्त जत्थेदार गियानी गुरबचन सिंह ने भी प्रार्थना में भाग लिया था.

मई 2015 में एक पादरी के रूप में बिशप के नामकरण के रजत जयंती समारोह में पंजाब के पूर्व शिक्षा मंत्री दलजीत सिंह चीमा मुख्य अतिथि थे.

केरल के त्रिशूर में बिशप के मूल निवास पर बड़ा उत्सव मनाया गया. वरिष्ठ अकाली दल के नेता के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री ऑस्कर फर्नांडीस त्रिशूर सांसद सीएन जयदेवन और समारोह में अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य भी उपस्थित थे.

2009 के संसदीय चुनावों से पहले मुल्लकल ने यह स्पष्ट कर दिया था कि ईसाई समुदाय ओडिशा में दंगा-आरोपी बीजेपी उम्मीदवारों के खिलाफ मतदान करके अपनी नाराजगी जतायेगा.

पिछले साल, उन्होंने भांगवा गांव में गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान पर निराशा व्यक्त करने के लिए पूर्व अकाल तख्त जत्थेदार गियानी गुरबचन सिंह से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया, जिसके लिए उनको गिरफ्तार किया गया था.

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

share & View comments