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Monday, 23 December, 2024
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जल्द ही उसका होनेवाला ब्वॉयफ्रेंड, एक IAS ASPIRANT की रोमांचक स्टोरी

एक IAS ASPIRANTS की रोमांचक सक्सेस स्टोरी’ प्रभात प्रकाशन से छपी किताब में पढ़ाई के दिनों में आईएएस की तैयारी करने वाला लड़का क्या क्या सोचता है, इसकी मजेदार कहानियां लिखी हैं पीयूष रोहनकर, DANICS ने.

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‘पेन-गर्ल’ ने मेरा पेन नहीं लौटाया था. मैं हर दिन उसे क्लास में देखता था, लेकिन उससे बात नहीं की. हाँ, हम औपचारिकतावश एक-दूसरे को देखकर मुसकराना नहीं भूलते थे. वह भी अकेली ही लगती थी. मैंने कभी उसे किसी से बात करते नहीं देखा और मैं सोचता था, ‘क्या अपनी तैयारी में ये छात्र इतने रम गए हैं कि उन्हें क्लास में ऐसी खूबसूरत लड़की से बात करने की भी फुरसत नहीं, जिसके पास अक्ल भी है?’

एक दिन मैं जब क्लास में उसे पेनवाली लड़की को ढूँढ़ रहा था, तब मैंने एक चश्मेवाले लड़के को थोड़ी देरी से अंदर आते देखा, जो आखिरी बेंच पर जाकर चुपचाप बैठ गया. आखिरी की लाइनें खाली थीं और वह एकदम अकेला बैठा था. मैंने उसे क्लास में पहले कभी नहीं देखा था. मुझे लगा, जैसे वह परीक्षा को लेकर गंभीर नहीं है, हालाँकि उसे देखकर ऐसा नहीं लगता था.

उसका चेहरा बता रहा था, मानो वह किसी मिशन पर है. उसके बाल अस्त-व्यस्त थे और उसका हुलिया अपनी ही धुन में रहनेवाले किसी वैज्ञानिक के जैसा था. ऐसा लग रहा था, मानो उसे दुनिया को देखने की फुरसत नहीं, क्योंकि उसकी आँखें अपने अंदर झाँकने में व्यस्त हैं.

क्लास के बाद मैं जब नीचे उतरा तो मैंने पेनवाली लड़की और मिस्टर लेट को चहककर बातें करते देखा. मेरे भीतर ईर्ष्या का लावा फूट पड़ा. ‘तुम क्लास में देरी से आनेवाले से क्यों बात कर रही हो?’ मैं मन-ही-मन चीखा. ‘क्या खूबसूरत लड़कियाँ इतनी बेवकूफ होती हैं? उनका कोई भविष्य नहीं, तुम मुझसे बात करो!’

जेब में पड़ा मेरा मोबाइल वायब्रेट कर रहा था, लेकिन ईर्ष्या से अंधी हो चुकी मेरी इंद्रियाँ उसे अब तक अनदेखा कर रही थीं.

“भाई, मेरे लिए क्लासिक माइल्ड का एक पैकेट लेते आना. मेरी सिगरेट खत्म हो गई है.” गौरव ने हाय-हेलो के बिना ही सीधे कह दिया.

“ठीक है…रास्ते में हूँ…लेता आऊँगा. और कुछ?”

“अच्छा… मेरे लिए एक प्लेट छोले-कुल्चे भी लेते आना. बड़ी भूख लगी है. अभी तक नाश्ता नहीं किया.”

“यस सर…” मैंने मजाक में कहा और फोन काट दिया.

अगली सुबह क्लास तेजी से भरने लगी, लेकिन पेन-गर्ल और मिस्टर लेट कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. प्रोफेसर ने पढ़ाना शुरू कर दिया, लेकिन आधे घंटे बाद भी दोनों का कहीं पता नहीं था.

एक बार फिर मेरा दिमाग भटकने लगा. कहीं दोनों साथ-साथ क्लास में आएँ तो? इसका मतलब साफ होगा कि दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे या एक-दूसरे को चाहने लगे थे. मैं इस बात से चिढ़ा हुआ था कि मेरी काल्पनिक प्रेम-कहानी का अंत सच होने से पहले ही हो जाएगा.

मैं समझ चुका था कि वह ऐसी लड़की है, जिसे सिर्फ दोस्त नहीं बनाया जा सकता था, बल्कि पटाया जा सकता था. कुछ देर बाद, मैंने अपनी नजर फिर से आखिरी बेंच की तरफ दौड़ाई. वह वहीं बैठा था! अकेला, चेहरे पर तनाव और नजर बिल्कुल इधर-उधर नहीं, बल्कि सीधे बोर्ड पर. पेन-गर्ल का अब भी कोई अता-पता नहीं था. ‘मेरे पास अब भी एक मौका है!’ मैं खुशी से मुसकराने लगा और दिमाग से इस बात को निकालने लगा कि वह कब आया था.

दिन भर एक के बाद एक दूसरी क्लास से मैं थक चुका था. अकसर दोपहर को सो जाया करता था, ताकि मैं देर रात तक पढ़ सकूँ. मैं दोपहर की क्लास अटैंड नहीं करना चाहता था, लेकिन मेरे पास कोई रास्ता भी नहीं था. पॉलिटी की बारीकियों को समझने से कहीं ज्यादा मैं यह जानना चाहता था कि मिस्टर लेट और पेन-गर्ल के बीच कोई प्यार तो परवान नहीं चढ़ रहा था.

मैंने पास की दुकान से रेड बुल का एक कैन लिया और क्लास में चला गया. दिमागी तौर पर मैं तरोताजा था, लेकिन शरीर से मैं सौ साल के बुढ़ापे को महसूस कर रहा था. क्लास आधी भरी थी और मैंने उसे दूसरी तरफ बैठे देखा. हमेशा की तरह ही क्लास शुरू होते समय हम एक-दूसरे को देखकर मुसकराए. मिस्टर लेट तीस मिनट की देरी से आया और अपनी रोज की जगह पर बैठते ही बोर्ड को एकटक घूरने लगा.

शाम 6 बजे क्लास खत्म हुई और मुझे नीचे उतरने की कोई जल्दी नहीं थी. मैं देखना चाहता था कि पेन-गर्ल और मिस्टर लेट रोजाना की तरह अपनी जगह पर हैं या नहीं, लेकिन दोनों कहीं दिखाई नहीं पड़े.

उसी समय गौरव का फोन आ गया, जिसने मुझसे क्लासिक माइल्ड का एक पैकेट और थोड़े मोमोज लाने को कहा. मैं उस छोटी सी दुकान की तरफ बढ़ गया, जहाँ मिस्टर लेट और पेन-गर्ल को बैठे देखा. मैं उनकी तरफ बढ़ गया.
लड़की ने मेरी तरफ देखा और देखते ही मुसकराने लगी. उसने कहा, “हाय…क्या हाल?”

“हाय, मैं ठीक हूँ. तुम बताओ?”

“मैं ठीक हूँ. आओ बैठो.” उसने मिस्टर लेट की तरफ देखते हुए कहा. मैंने हामी भरी और मोमोज का एक प्लेट ऑर्डर कर दिया. दोनों ने खाने से मना कर दिया.

“यह अंकित गुप्ता हैं.” पेन-गर्ल ने मिस्टर लेट का परिचय कराया. मैं उसकी तरफ देखकर मुसकराया.
“अरे हाँ, यह रहा तुम्हारा पेन! सॉरी, उस दिन मैंने लिया था और फिर लौटाना भूल गई.” उसने प्यारी सी मुसकान के साथ कहा.

“अच्छा, तो तुम्हें याद था?” मैंने भूल जाने का नाटक करते हुए कहा. “थैंक्स…माफ करना, मैं अब तक तुम्हारा नाम नहीं जानता हूँ.” मैंने होशियारी दिखाई.

“साक्षी सिंह चौहान.” उसने मुसकराते हुए कहा. मुझे पता चला कि अंकित और साक्षी इंजीनियर हैं और मुझसे दो साल छोटे हैं. दोनों मेरी ही तरह यू.पी.एस.सी. की परीक्षा पहली बार देनेवाले हैं.

“तो तुम दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते हो?” मैंने अपने भीतर की भयंकर उत्सुकता को शांत करने के लिए पूछा.

“नहीं, हमारी मुलाकात कुमार बुक डिपो पर किताबें खरीदने के दौरान हुई.” अंकित ने कहा.

साक्षी ने सहमत होने के साथ ही कहा, “खान सर की क्लास शुरू होने के बाद हम मिले.” तो उनकी दोस्ती ज्यादा पुरानी नहीं थी. मोमोज की दुकान पर जाना एक घंटे की मुलाकात में तब्दील हो गया. मुझे अंकित और साक्षी के बीच एक कनेक्शन का अहसास हो रहा था. दोनों ही लोकल थे और यहाँ के इलाकों, दुकानों और खास जगहों के बारे में ऐसे बातें कर रहे थे, जैसे उन्हें काफी कुछ मालूम हो. दोनों में कई बातें एक जैसी थीं. दोनों के पिता नौकरशाह थे. अंकित के पिता एक आई.आर.टी.एस. ऑफिसर थे और साक्षी के पिता एक आई.पी.एस. अधिकारी. अंकित दिल्ली में ही जनमा और पला-बढ़ा था, जबकि साक्षी का जन्म बनारस में हुआ था, लेकिन उसने अपनी पढ़ाई दिल्ली से की थी. यू.पी.एस.सी. की तैयारी के साथ-साथ वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ले रही थी.

मेरा मोबाइल फिर से वायब्रेट करने लगा और मैं जानता था कि यह गौरव ही होगा. “अच्छा, तो मुझे अब जाना होगा. अपने दोस्त के लिए कुछ खरीदना भी है. कल मिलते हैं!” मैंने बातचीत को बीच में ही खत्म करते हुए कहा.
“हाँ, कल मिलते हैं!” साक्षी मुसकराई और अंकित ने हाथों से गुडबाय का इशारा किया.

मैंने सिगरेट का पैकेट खरीदा और तेजी से घर की ओर बढ़ गया. दरवाजे पर दस्तक देने के बाद मुझे याद आया कि मैं मोमोज लाना भूल गया था, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी. उसने दरवाजा खोला और शिद्दत से उन्हें ढूँढ़ने लगा.
“कहाँ रह गए थे तुम? और मोमोज कहाँ हैं?” उसने दुःखी होते हुए पूछा.

“सॉरी, मोमोज भूल गया. दिमाग से निकल गया. यह रही तुम्हारी सिगरेट. मुझे एक नोटबुक लेने जाना है, तब मैं मोमोज भी लेता आऊँगा. बस मुझे दस मिनट दे दो!” मैंने उसके हाथों में सिगरेट को जबरदस्ती थमाते हुए कहा और इससे पहले कि वह कुछ कहता, मैं पलटकर तेजी से निकल गया.

स्टेशनरी की दुकान के लिए जाते समय मोमोज ज्वाइंट से गुजरा तो देखा कि साक्षी और अंकित अब तक बातें कर रहे थे. उन्होंने मुझे नहीं देखा. मैं जब गौरव के लिए मोमोज पैक करवाकर लौटा तो दोनों को वहाँ से जाते देखा.

(‘एक IAS ASPIRANTS की रोमांचक सक्सेस स्टोरी’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 300₹ की है.)


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