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Wednesday, 6 November, 2024
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इन पांच कारणों से शिक्षक दिवस मनाना बंद कर देना चाहिए

पूरे भारत में शिक्षक दिवस के दिन बच्चों को शिक्षकों का सम्मान करने के लिए ऐसे मजबूर किया जाता है जैसे कि वे ज्ञान की देवी सरस्वती के अवतार हों.

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शिक्षकों ने भारत को निराश किया है…

हम सबके जीवन में एक ऐसा शिक्षक है जिसने हमें सही दिशा दिखाई. हालांकि हर उस महान शिक्षक के साथ साथ कई और ऐसे भी हैं जो इतने पूजनीय नहीं. शिक्षक दिवस मनाना बंद किये जाने के पक्ष में ये पांच दलीलें हैं.

1. शिक्षकों को भगवान न बनाएं : पूरे भारत में शिक्षक दिवस के दिन बच्चों को शिक्षकों का सम्मान करने के लिए ऐसे मजबूर किया जाता है जैसे कि वे ज्ञान की देवी सरस्वती के अवतार हों. शिक्षकों को इस तरह देवता बनाना और उन्हें अनावश्यक रूप से एक पेडेस्टल पर रखना उनसे सवाल करने और उन्हें जवाबदेह बनाने की हमारी क्षमता को प्रभावित करते हैं. शिक्षकों को पेशेवरों की तरह जज करना चाहिए : उनके स्कूलों , विद्यार्थियों और शिक्षा विभाग के द्वारा भी. किसी भी अन्य पेशे की तरह, शिक्षण में अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोग हैं, और हमें उन सभी के योगदान का जश्न मनाने की आवश्यकता नहीं है. अच्छे शिक्षक समाज की सेवा ज़रूर करते हैं, लेकिन बुरे शिक्षक नुक्सान भी पहुंचाते हैं.

2. क्वालिटी शिक्षा का अभाव : शिक्षकों से भारत को बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उन्होंने देश को निराश किया है. अनगिनत अध्ययन बताते हैं कि भारत में शिक्षण की गुणवत्ता कितनी खराब है. कई स्कूलों में वास्तविक शिक्षण पूरी तरह से अनुपस्थित है और यह हालत सरकारी के साथ साथ निजी स्कूलों की भी है. स्कूल में कई साल बिताने के बावजूद छात्रों को जोड़ – घटाव भी नहीं आता. कई ऐसे शिक्षक हैं जो छात्रों को गणित की समस्या को हल करने के चरणों को याद करने के लिए कहते हैं!

हाल ही में विश्व बैंक के एक अध्ययन में पाया गया है कि ग्रामीण भारत में कक्षा 5 के केवल आधे छात्र ही ‘वह बरसात का महीना था ‘ और ‘आसमान में काले बादल थे ‘ जैसे वाक्य अपनी स्थानीय भाषा में धाराप्रवाह पढ़ पाते हैं. बच्चों के बीच सीखने के कौशल की कमी के लिए शिक्षक प्रशिक्षण, मामूली वेतन, और उच्च शिक्षक-छात्र अनुपात की कमी को दोष देना आसान है (यहां कुछ शब्द जोड़े गए हैं). लेकिन सवाल यह उठता है कि इन शिक्षकों का आत्म-विवेक उन्हें जान बूझकर बच्चों का जीवन बर्बाद करने की अनुमति कैसे देता है. अगर हम शिक्षक दिवस मनाना बंद नहीं करना चाहते हैं, तो कम से कम हमें इसे ‘शिक्षक प्रशिक्षण दिवस’ में बदलना चाहिए. यह संभव है कि प्रशिक्षण पर्याप्त न हो. शिक्षकों को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है. सिंगापुर की शिक्षण प्रणाली दुनिया की सबसे अच्छी स्कूली शिक्षा प्रणालियों में से एक है. यह शिक्षकों को अच्छी तनख्वाह देने के साथ शिक्षा अनुसंधान में भारी निवेश करता है और शिक्षकों को एक कठोर वार्षिक मूल्यांकन से भी गुज़रना पड़ता है.

3. सामाजिक बराबरी एवं आलोचनात्मक सोच : शिक्षक दिवस शिक्षकों और छात्रों के बीच शक्ति और अधिकार के संबंध को औपचारिक रूप से लागू करता है. कमतर गुणवत्ता और अपनी नौकरी से ऊब चुके भारत के शिक्षक आमतौर पर छात्रों द्वारा सवाल पूछने को अपने अधिकारों पर हमले के तौर पर देखते हैं. आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए भारत के स्कूली बच्चों को अपने शिक्षकों से डरना बंद करने और बेधड़क होकर सवाल पूछने की आवश्यकता है. दुर्भाग्यवश, शिक्षक दिवस उन्हें उलटी दिशा में ले जाता है. शिक्षकों को श्रद्धांजलि और सम्मान, ग्रीटिंग कार्ड और फूल दिए जाने होते हैं. आप शिक्षकों से प्रश्न नहीं पूछते हैं, आप उनसे केवल आशीर्वाद मांगते हैं.

4. यौन शोषण : छात्रों को शिक्षक दिवस मनाने के लिए मजबूर करना उन्हें उन शिक्षकों का सम्मान करने के लिए मजबूर करता है जो छात्रों को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं या उनका यौन शोषण करते हैं. मैं यह नहीं कह रहा कि सभी शिक्षक ऐसा करते हैं. लेकिन कुछ शिक्षक ऐसा करते हैं, और शिक्षक दिवस सभी शिक्षकों का जश्न मनाता है.

हर 5 सितंबर को स्कूलों में होने वाला यह कर्मकांड छात्रों और शिक्षकों के बीच के पावर डाइनेमिक्स को मजबूत करता है और इसकी ही बदौलत एक ऐसे सम्बन्ध की शुरुआत होती है जो शिक्षकों को छात्रों से दुर्व्यवहार और मारपीट करके भी बच निकलने की अनुमति देता है. यहां कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं. कोलकाता में इस साल की शुरुआत में एक लड़की का कथित रूप से यौन उत्पीड़न करने के लिए एक शिक्षक को गिरफ्तार किया गया था. उसी शहर के एक शौचालय में चार साल की बच्ची का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया था. इंदौर में, दिसंबर 2017 में तीन महिला शिक्षकों को कथित तौर पर एक लड़की के साथ छेड़छाड़ करने के लिए गिरफ्तार किया गया था.

5. शारीरिक दंड: अवैध होने के बावजूद भारत के स्कूलों में शारीरिक दंड धड़ल्ले से जारी है. डर दिखाकर सम्मान पाने में असमर्थ, छात्रों को पढ़ाने में असमर्थ और लर्निंग आउटकम्स बेहतर करने में असमर्थ शिक्षक, सज़ा के रूप में मारपीट का सहारा लेते हैं. स्कूल फीस चुकाने में असमर्थ? बच्चे को दंडित करें। कक्षा में ध्यान नहीं दे रहा है? कथित पिटाई के बाद पांच साल के बच्चे के पूरे शरीर पर निशान मिलते हैं. कविता नहीं पढ़ पाए ? कथित तौर से थप्पड़ों से पिटाई हुई.

मणिपुर में एक कक्षा 1 के छात्र को पाठ्यपुस्तकें नहीं लाने के लिए इतनी बुरी तरह से पीटा गया कि उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. पिछले साल लुधियाना में एक आठ वर्षीय छात्र की मृत्यु हो गई क्योंकि एक शिक्षक ने हकलाने के जुर्म में कथित तौर पर उसकी पिटाई कर दी. हां, ज्यादातर भारतीय माता-पिता अब भी अपने बच्चों को पीटते हैं लेकिन शिक्षा व्यवस्था का काम समाज को रास्ता दिखाना है.

इन गंभीर कारणों की वजह से भारत में शिक्षण के पेशे को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है, उत्सव की नहीं.

(यह लेख इससे पहले 5 सितंबर 2018 को प्रकाशित हो चुका है.)

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